साइबरडोम | 28 Sep 2019

चर्चा में क्यों?

केरल पुलिस ने इंटरनेट की डार्कनेट (Dark Net) जैसी आपराधिक गतिविधियों को रोकने हेतु सॉफ्टवेयर को सक्षम करने के लिये एक अत्याधुनिक लैब की स्थापना की है।

प्रमुख बिंदु

  • डार्क नेट की चौबीस घंटे निगरानी के लिये चार विश्लेषकों के समूह को प्रशिक्षित और तैनात किया गया है।
  • इज़राइल के विशेषज्ञों द्वारा 14 दिन का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, क्योंकि देश में डार्क नेट पर नज़र रखने हेतु विशेषज्ञता का अभाव है।
  • केरल साइबरडोम की स्थापना करने वाला पहला राज्य था इससे प्रेरित होकर असम ने भी साइबरडोम की स्थापना की है।

साइबरडोम (Cyberdome)

  • साइबरडोम केरल पुलिस विभाग का एक तकनीकी अनुसंधान और विकास केंद्र है, जो साइबर सुरक्षा हेतु प्रौद्योगिकी संवर्द्धन के माध्यम से प्रभावी पुलिसिंग (Policing) में सक्षमता प्रदान करता है।
  • यह सक्रिय रूप से साइबर अपराधों से निपटने के लिये साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में उच्च तकनीक युक्त सार्वजनिक-निजी साझेदारी केंद्र है।
  • साइबरडोम देश के विभिन्न सरकारी विभागों और एजेंसियों, अनुसंधान समूहों, गैर-लाभकारी संगठनों, समुदाय विशेष के विशेषज्ञों, नैतिक (Ethical) हैकर्स के मध्य सामूहिक समन्वय स्थापित करने का प्रयास करता है।

साइबरडोम (Cyberdome) के कार्य:

साइबरडोम ने साइबर निगरानी उपकरण (Cyber-Surveillance Tools) का विकास किया है, जो औद्योगिक जासूसी (Industrial Espionage) के लिये ज़िम्मेदार लोगों का पता लगाएगा जिससे उन्हें अपराधी घोषित किया जा सकेगा।

  • डार्कनेट पर बढ़ते आपराधिक गतिविधियों की जाँच और इन गतिविधियों को नियंत्रित करने हेतु सॉफ्टवेयर को सक्षम बनाने के लिये एक अत्याधुनिक लैब का निर्माण किया गया है।
  • ब्लू व्हेल (Blue whale) जैसे ऑनलाइन गेम के विरुद्ध प्रचार करना।
  • साइबरडोम ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी की घटनाओं को कम करने के लिये गुप्त साइबर निगरानी और घुसपैठ कार्यक्रम (Covert Cyber Surveillance and Infiltration Programme) शुरू किया है।
  • साइबरडोम ने सोशल इंजीनियरिंग (Social Engineering) का इस्तेमाल कट्टरपंथी समूहों की निगरानी करने के लिये किया है जो चरमपंथी गतिविधियों को अंजाम देते हैं।

डार्कनेट (Dark Net)

डार्कनेट एक प्रकार की इंटरनेट पहुँच (Access) है। पहुँच (Access) के आधार पर डार्कनेट तीन प्रकार के होते हैं-

  • सतही वेब (Surface Web): यह दिन-प्रतिदिन के कार्यों में प्रयुक्त होता है, जिसमें किसी विशिष्ट अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • डीप वेब (Deep Web): डीप वेब के किसी डॉक्यूमेंट तक पहुँचने के लिये उसके URL एड्रेस पर जाकर लॉग-इन करना होता है। इसमें यूज़र आईडी व पासवर्ड की ज़रूरत होती है।

जैसे- जीमेल अकाउंट (Gmail Account), सरकारी प्रकाशन आदि। यह अपनी प्रकृति में वैधानिक होते हैं।

  • डार्क नेट (Dark Net): इसे आमतौर पर प्रयुक्त सर्च इंजन से एक्सेस नहीं किया जा सकता। इन तक पहुँचने के लिये एक विशेष ब्राउज़र टॉर (The Onion Router- TOR) का इस्तेमाल किया जाता है।

इस डार्क नेट का प्रयोग मानव तस्करी, मादक पदार्थों की खरीद और बिक्री, हथियारों की तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों में किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू