राजनीति का अपराधीकरण | 03 Apr 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेशनल इलेक्शन वॉच (National Election Watch) और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (Association of Democratic Reforms- ADR) के अनुसार असम, केरल, पुद्दुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में 6,318 उम्मीदवारों में से कम-से-कम 1,157 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

  • भारत में लोकतंत्र, शासन और चुनावी सुधार के लिये वर्ष 2002 से एक न्यू (NEW) नामक राष्ट्रव्यापी अभियान चल रहा है, जिसमें 1200 से अधिक गैर-सरकारी संगठन (NGO) और ऐसे ही अन्य नागरिक संगठन शामिल हैं।
  • ADR एक गैर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1999 में नई दिल्ली में की गई थी।

प्रमुख बिंदु

राजनीति का अपराधीकरण के बारे में:

  • इसका अर्थ राजनीति में अपराधियों की बढ़ती भागीदारी से है, यानी अपराधी चुनाव लड़कर संसद या राज्य विधानमंडलों में सदस्यों के रूप में निर्वाचित हो सकते हैं। यह मुख्य रूप से नेताओं और अपराधियों के बीच साँठ-गाँठ के कारण होता है।

आपराधिक उम्मीदवारों की अयोग्यता का कानूनी पहलू

  • भारतीय संविधान में संसद या विधानसभाओं के लिये चुनाव लड़ने वाले किसी आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति की अयोग्यता के विषय में उपबंध नहीं किया गया है।
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में विधायिका का चुनाव लड़ने के लिये किसी व्यक्ति को अयोग्य घोषित करने के मानदंडों का उल्लेख है।
    • इस अधिनियम की धारा 8 ऐसे दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से नहीं रोकती है जिन पर केवल मुकदमा चल रहा है और दोष अभी सिद्ध नहीं हुआ है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन पर लगा आरोप कितना गंभीर है।
    • इस अधिनियम की धारा 8(1) और 8(2) के अंतर्गत प्रावधान है कि यदि कोई विधायिका सदस्य (सांसद अथवा विधायक) हत्या, बलात्कार, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने जैसे अपराधों में लिप्त है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा एवं 6 वर्ष की अवधि के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

अपराधीकरण का कारण:

  • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव:
    • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन के बावजूद राजनीतिक दलों के बीच एक सामान्य सहमति बन गई है जो संसद को राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिये मज़बूत कानून बनाने से रोकती है।
  • कार्यान्वयन का अभाव:
    • राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिये बने कानूनों और निर्णयों के कार्यान्वयन की कमी के कारण इसमें बहुत मदद नहीं मिली है।
  • संकीर्ण स्वार्थ:
    • राजनीतिक दलों द्वारा चुने गए उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास का प्रकाशन बहुत प्रभावी नहीं हो सकता है, क्योंकि मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा जाति या धर्म जैसे सामुदायिक हितों से प्रभावित होकर मतदान करता है।
  • बाहुबल और धन का उपयोग:
    • गंभीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के पास अक्सर धन और संपदा काफी अधिक मात्रा में होती है, इसलिये वे दल के चुनावी अभियान में अधिक-से-अधिक पैसा खर्च करते हैं और उनकी राजनीति में प्रवेश करने तथा जीतने की संभावना बढ़ जाती है।
    • इसके अतिरिक्त कभी-कभी तो मतदाताओं के पास कोई विकल्प नहीं होता है, क्योंकि सभी प्रतियोगी उम्मीदवार आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं।

प्रभाव:

  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत के विरुद्ध:
    • यह एक अच्छे उम्मीदवार का चुनाव करने के लिये मतदाताओं की पसंद को सीमित करता है।
    • यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लोकाचार के खिलाफ है जो कि लोकतंत्र का आधार है।
  • सुशासन पर प्रभाव:
    • प्रमुख समस्या यह है कि कानून तोड़ने वाले ही कानून बनाने वाले बन जाते हैं, इससे सुशासन स्थापित करने में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की प्रभावकारिता प्रभावित होती है।
    • भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में यह प्रवृत्ति यहाँ के संस्थानों की प्रकृति तथा विधायिका के चुने हुए प्रतिनिधियों की गुणवत्ता की खराब छवि को दर्शाती है।
  • लोक सेवकों के कार्य पर प्रभाव
    • इससे चुनावों के दौरान और बाद में काले धन का प्रचलन बढ़ जाता है, जिससे समाज में भ्रष्टाचार बढ़ता है तथा लोक सेवकों के काम पर असर पड़ता है।
  • सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा:
    • यह समाज में हिंसा की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है और भावी जनप्रतिनिधियों के लिये एक गलत उदाहरण प्रस्तुत करता है।

राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के हालिया कदम:

  • सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने फरवरी, 2020 में राजनीतिक दलों को विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये अपने उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने का आदेश दिया, साथ ही उन कारणों को भी जिनसे उन्हें अपराधिक  कृत्य करने के लिये मजबूर होना पड़ा था।
  • न्यायालय ने पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ (Public Interest Foundation vs Union Of India), 2018 में राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के लंबित आपराधिक मामलों को ऑनलाइन प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया था।

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आगे की राह

  • चुनाव सुधार पर बनी विभिन्न समितियों (दिनेश गोस्वामी, इंद्रजीत समिति) ने राज्य द्वारा चुनावी खर्च वहन किये जाने की सिफारिश की, जिससे काफी हद तक चुनावों में काले धन के उपयोग पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी और परिणामस्वरूप राजनीति के अपराधीकरण को सीमित किया जा सकेगा।
  • एक स्वच्छ चुनावी प्रक्रिया हेतु राजनीतिक पार्टियों के मामलों को विनियमित करना आवश्यक है, जिसके लिये निर्वाचन आयोग (Election Commission) को मज़बूत करना ज़रूरी है।
  • मतदाताओं को चुनाव के दौरान धन, उपहार जैसे अन्य प्रलोभनों के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है।
  • भारत के राजनीतिक दलों की राजनीति के अपराधीकरण और भारतीय लोकतंत्र पर इसके बढ़ते हानिकारक प्रभावों को रोकने के प्रति अनिच्छा को देखते हुए यहाँ के न्यायालयों को अब गंभीर आपराधिक प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने जैसे फैसले पर विचार करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू