आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 | 12 Aug 2022

प्रिलिम्स के लिये:

लोकसभा, भारतीय दंड संहिता, निवारक निरोध, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, नागरिकों के मौलिक अधिकार, गोपनीयता का अधिकार, आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022।

मेन्स के लिये:

आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022 और मुद्दे, निर्णय और मामले, मौलिक अधिकार।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अप्रैल 2022 में संसद में पारित होने के बाद आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 लागू हुआ है।

  • यह एक औपनिवेशिक युग के कानून, कैदियों की पहचान अधिनियम, 1920 की जगह लाया गया है, और पुलिस अधिकारियों को आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए, गिरफ्तार किये गए या मुकदमे का सामना करने वाले लोगों की पहचान करने के लिये अधिकृत करता है।

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आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022

  • यह पुलिस को अपराधियों के साथ-साथ अपराधों के आरोपियों के शारीरिक और जैविक नमूने लेने के लिये कानूनी मंज़ूरी प्रदान करता है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 53 या धारा 53A के तहत पुलिस डेटा एकत्र कर सकती है।
    • डेटा जो एकत्र किया जा सकता है: फिंगर-इंप्रेशन, हथेली-प्रिंट इंप्रेशन, फुटप्रिंट इंप्रेशन, फोटोग्राफ, आईरिस और रेटिना स्कैन, भौतिक, जैविक नमूने और उनका विश्लेषण, हस्ताक्षर, हस्तलेखन या किसी अन्य परीक्षा सहित व्यवहारिक गुण।
    • CrPC आपराधिक कानून के प्रक्रियात्मक पहलुओं के संबंध में प्राथमिक कानून है।
  • किसी भी निवारक निरोध कानून के तहत दोषी ठहराए गए , गिरफ्तार या हिरासत में लिये गए किसी भी व्यक्ति को पुलिस अधिकारी या जेल अधिकारी को "माप" प्रदान करने की आवश्यकता होगी।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) भौतिक और जैविक नमूनों, हस्ताक्षर तथा हस्तलेखन डेटा के रिपॉज़िटरी के रूप में कार्य करेगा जहाँ इन्हें कम-से-कम 75 वर्षों तक संरक्षित किया जा सकता है।
  • इसका उद्देश्य अपराध में शामिल लोगों की विशिष्ट पहचान सुनिश्चित करना और जाँच एजेंसियों की मामलों को सुलझाने में मदद करना है।

पिछले अधिनियम को बदलने की आवश्यकता:

  • इस विधेयक का उद्देश्य ‘बंदी पहचान अधिनियम, 1920’ (Identification of Prisoners Act,1920) को प्रतिस्थापित करना है।
    • जिसमें संशोधन का प्रस्ताव वर्ष 1980 के दशक में भारत के विधि आयोग की 87वीं रिपोर्ट में और ‘उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राम बाबू मिश्र’ मामले (1980) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में किया गया था।
  • सिफारिशों के पहले समूह में "हथेली के निशान", "हस्ताक्षर या लेखन का नमूना" और "आवाज का नमूना" शामिल करने एवं माप के दायरे का विस्तार करने हेतु अधिनियम में संशोधन करने की आवश्यकता है।
  • सिफारिशों के दूसरे समूह में दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत कार्रवाई के अलावा अन्य कार्यवाही हेतु सैंपल लेने की अनुमति देने की आवश्यकता की मांग की है।
  • विधि आयोग की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि संशोधन की आवश्यकता कई राज्यों द्वारा अधिनियम में किये गए कई संशोधनों से परिलक्षित होती है।
  • यह महसूस किया गया कि फोरेंसिक में प्रगति के साथ अधिक प्रकार के "मापों" को पहचानने की आवश्यकता है जिनका उपयोग कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा जाँच के लिये किया जा सकता है।

अधिनियम का महत्त्व:

  • आधुनिक तकनीक:
    • यह अधिनियम उपयुक्त शरीर मापों को दर्ज करने के लिये आधुनिक तकनीकों के उपयोग का प्रावधान करता है।.
      • मौजूदा कानून सीमित श्रेणी के दोषी व्यक्तियों के केवल ‘फिंगरप्रिंट’ और ‘फुटप्रिंट’ लेने की ही अनुमति देता है।
  • जाँच एजेंसियों की मदद करें:
    • ‘व्यक्तियों’ (जिनकी सैंपल ली जा सकती है) के दायरे का विस्तार जाँच एजेंसियों को कानूनी रूप से स्वीकार्य पर्याप्त सबूत इकट्ठा करने और आरोपी व्यक्ति के अपराध को साबित करने में मदद करेगा।
  • जाँच को और अधिक सक्षम बनाना:
    • यह उन व्यक्तियों के शरीर से उपयुक्त सैंपल लेने के लिये कानूनी स्वीकृति प्रदान करता है, जिन्हें इस तरह के सैंपल देने की आवश्यकता होती है और अपराध की जाँच को अधिक कुशल और त्वरित करने तथा सज़ा दर को बढ़ाने में भी मदद करेगा।

कानूनी मुद्दे:

  • निजता के अधिकार को कमज़ोर करना:
    • यह विधायी प्रस्ताव न केवल अपराध के दोषी व्यक्तियों के बल्कि प्रत्येक सामान्य भारतीय नागरिक के निजता के अधिकार को कमज़ोर करता है।
    • यह विधेयक राजनीतिक विरोध से संलग्न प्रदर्शनकारियों तक के जैविक नमूने एकत्र कर सकने का प्रस्ताव करता है।
  • अस्पष्ट प्रावधान:
    • प्रस्तावित कानून ‘बंदी पहचान अधिनियम, 1920’ को प्रतिस्थापित करने का लक्ष्य रखता है, साथ ही काफी हद तक इसके दायरे और पहुँच का विस्तार करता है।
    • ‘जैविक नमूने’ जैसे पदों का अधिक वर्णन नहीं किया गया है, इसलिये रक्त और बाल के नमूने लेने या डीएनए नमूनों के संग्रह जैसा कोई भी दैहिक हस्तक्षेप किया जा सकता है।
    • वर्तमान में ऐसे हस्तक्षेपों के लिये एक मजिस्ट्रेट की लिखित स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
  • अनुच्छेद 20 का उल्लंघन:
    • आशंकाएँ जताई गई हैं कि विधेयक ने नमूनों के मनमाने संग्रह को सक्षम किया है और इसमें अनुच्छेद 20 (3) के उल्लंघन की क्षमता है जो आत्म-अभिशंसन के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार देता है।
    • विधेयक में जैविक सूचना के संग्रह में बल प्रयोग निहित है, जिससे ‘नार्को परीक्षण’ और ‘ब्रेन मैपिंग’ को बढ़ावा मिल सकता है।
  • डेटा का प्रबंधन:
    • यह विधेयक 75 वर्षों के लिये रिकॉर्ड को संरक्षित करने की अनुमति देता है। अन्य चिंताओं में वे साधन शामिल हैं जिनके द्वारा एकत्र किये गए डेटा को संरक्षित, साझा, प्रसारित और नष्ट किया जाएगा।
    • संग्रह के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर निगरानी भी हो सकती है, इस कानून के तहत डेटाबेस को अन्य डेटाबेस जैसे कि अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (CCTNS) के साथ जोड़ा जा सकता है।
      • अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (CCTNS) की कल्पना कॉमन इंटीग्रेटेड पुलिस एप्लीकेशन (CIPA) के अनुभव से की गई है।
  • बंदियों के बीच जागरूकता की कमी:
  • यद्यपि विधेयक में यह प्रावधान है कि कोई गिरफ्तार व्यक्ति (जो महिला या बच्चे के विरुद्ध अपराध का आरोपी नहीं हो) नमूने देने से इनकार कर सकता है, लेकिन जागरूकता के अभाव में सभी बंदी इस अधिकार का प्रयोग कर सकने में सफल नहीं होंगे।
  • पुलिस के लिये इस तरह के इनकार की अनदेखी करना भी अधिक कठिन नहीं होगा और बाद में वे दावा कर सकते हैं कि उन्होंने बंदी की सहमति से नमूने एकत्र किये हैं।

आगे की राह:

  • गोपनीयता और डेटा की सुरक्षा पर चिंता निःस्संदेह रूप से महत्त्वपूर्ण है। ऐसे कार्य जिनमें व्यक्तिगत प्रकृति के महत्त्वपूर्ण विवरणों का संग्रह, भंडारण और विनाश शामिल है, उन्हें एक मज़बूत डेटा संरक्षण कानून को लागू करने के पश्चात ही किया जाना चाहिये और इन कानूनों का उल्लंघन करने पर सख्त सजा का प्रावधान करना चाहिये।
  • कानून प्रवर्तन एजेंसियों को नवीनतम तकनीकों के उपयोग से वंचित करना अपराधों के शिकार लोगों और बड़े पैमाने पर राष्ट्र के लिये एक गंभीर नुकसान होगा। बेहतर जाँच और डेटा संरक्षण कानून के अलावा, कानून के बेहतर क्रियान्वयन के लिये भी उपाय किये जाने की जरूरत है।
  • अपराध स्थल से नमूने एकत्र करने के लिये अधिक कुशल विशेषज्ञों, फोरेंसिक प्रयोगशालाओं और किसी आपराधिक मामले में शामिल संभावित अभियुक्तों की पहचान एवं विश्लेषण के लिये उन्नत उपकरणों की आवश्यकता को भी पूरा किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू