कोरोनावायरस वैक्सीन के विकास में प्राथमिक सफलता | 21 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये:

टी सेल (T Cell), एंटीबॉडी, COVID-19 

मेन्स के लिये:

COVID-19 महामारी से निपटने के प्रयास, संक्रामक रोग और प्रतिरोधक क्षमता से संबंधित प्रश्न  

चर्चा में क्यों?

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University) के वैज्ञानिकों द्वारा संचालित एक प्रायोगिक कोरोनावायरस वैक्सीन के शुरूआती परीक्षण के दौरान सैकड़ों लोगों में सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (Protective Immune Response) में वृद्धि देखने को मिली है।     

प्रमुख बिंदु:

  • 20 जुलाई, 2020 को ‘लैंसेट’ (Lancet) जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, वैज्ञानिकों ने अपने परीक्षण में पाया कि यह प्रायोगिक वैक्सीन 18 से 55 वर्ष की आयु के लोगों में एक दोहरी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है।
  • इस वैक्सीन के उपयोग से परीक्षण में शामिल लगभग सभी लोगों में एक अच्छी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया देखने को मिली है।
  • ब्रिटिश शोधकर्त्ताओं ने सबसे पहले अप्रैल 2020 में लगभग 1000 लोगों पर इस वैक्सीन का परीक्षण प्रारंभ किया था, जिनमें से आधे लोगों को इस वैक्सीन के टीके दिये गए थे।
  • सामान्यतः इस तरह के शुरूआती परीक्षणों का उद्देश्य वैक्सीन की सुरक्षा का मूल्यांकन करना होता है, परंतु इस परीक्षण के दौरान विशेषज्ञ इस बात का भी अध्ययन कर रहे थे कि यह वैक्सीन किस प्रकार की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित करती है।
  • इस परीक्षण के दौरान लोगों को चार सप्ताह के अंतराल पर इस वैक्सीन की दो खुराक दी गई।   

कार्य प्रणाली:

  • इस परीक्षण के दौरान देखा गया कि यह वैक्सीन लोगों में प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय/प्रेरित करती है।
  • परीक्षण में पाया गया कि किसी व्यक्ति को यह वैक्सीन दिये जाने के बाद उसमें लगभग 56 दिनों तक यह मज़बूत एंटीबॉडी और टी-सेल प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करती है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, संक्रमण को रोकने में  टी-सेल की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

टी सेल (T Cell):

  • टी सेल, एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका होती है।
  • टी सेल मानव प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा हैं और ये अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में स्टेम सेल (Stem cell) से विकसित होती हैं।
  • यह शरीर को संक्रमण से लड़ने में सहायता करती है।
  • टी सेल शरीर में संक्रमित कोशिकाओं को ढूंढकर उन्हें नष्ट कर देती हैं।

लाभ:

  • वैज्ञानिकों के अनुसार, हाल के दिनों में इस बात के अनेक प्रमाण मिले हैं कि COVID-19 को नियंत्रित करने में टी-सेल और एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया क्षमता अत्यंत महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है।
  • इस वैक्सीन के प्रभाव से परीक्षण में शामिल लोगों में COVID-19 से ठीक हुए मरीज़ों के समान ही एंटीबाडी का विकास देखने को मिला। 
  • वैज्ञानिकों के सुझाव के अनुसार, इस वैक्सीन की दूसरी खुराक के बाद प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में वृद्धि देखने को मिल सकती है।
  • इस वैक्सीन के माध्यम से COVID-19 तथा इसके प्रसार को रोकने में बड़ी सफलता प्राप्त हो सकती है।  
  • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा वैश्विक स्तर पर इस दवा के निर्माण के लिये ‘एस्ट्राज़ेनेका’ (AstraZeneca) नामक दवा निर्माता कंपनी के साथ साझेदारी की है। 
  • ‘एस्ट्राज़ेनेका ने पहले ही इस वैक्सीन की 2 अरब खुराक बनाने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है। 

चुनौतियाँ: 

  • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों के बीच बिना किसी वैक्सीन के इस बीमारी को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती होगी। 
  • कोरोनावायरस को नियंत्रित करने के लिये कई खुराक की आवश्यकता को देखते हुए कहा जा सकता है कि वर्तमान में इस वैक्सीन की 2 अरब खुराक भी पर्याप्त नहीं होगी।

अन्य प्रयास:

  • जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैंड, इटली, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम (UK) ने इस वैक्सीन को प्राप्त करने के लिये समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, हालाँकि अभी इस वैक्सीन को बाज़ार में लाने की अनुमति नहीं प्राप्त है।
  • पिछले सप्ताह अमेरिकी शोधकर्त्ताओं ने घोषणा की थी कि अमेरिका में किये गए पहले वैक्सीन परीक्षण में वैज्ञानिकों की उम्मीदों के अनुरूप ही लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली में बढ़ावा देखने को मिला, अब इस वैक्सीन को अंतिम चरण के परीक्षण के लिये भेजा जाएगा। 
    • इस वैक्सीन को ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान’ (National Institutes of Health) और ‘मॉडर्ना’ (Moderna) नामक कंपनी के सहयोग से विकसित किया गया है। 
  • इसके अतिरिक्त चीन, यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में लगभग 12 अलग-अलग प्रायोगिक वैक्सीन पर मानव परीक्षण या तो प्राथमिक स्तर पर हैं या इनके परीक्षण की तैयारी की जा रही है।
  • ब्रिटिश सरकार ने ‘फाईज़र’ (Pfizer) और अन्य कंपनियों द्वारा विकसित की जा रही COVID-19 की प्रायोगिक वैक्सीन की 90 मिलियन खुराक खरीदने के लिये समझौते किये हैं।

निष्कर्ष:

COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद से व्यक्तिगत सुरक्षा के साथ वैक्सीन को इस बीमारी के नियंत्रण के हेतु अंतिम विकल्प बताया जाता रहा है। ऐसे में प्रायोगिक परीक्षणों के सकारात्मक परिणामों से इस महामारी को रोकने की उम्मीदें बढ़ी हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित वैक्सीन यदि भविष्य में भी अन्य सभी आवश्यक परीक्षणों में भी सफल होती है तो यह COVID-19 महामारी को रोकने की दिशा में एक बड़ी सफलता होगी। 

आगे की राह:

  • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित वैक्सीन के सकारात्मक परिणाम COVID-19 की अनिश्चितता को कुछ सीमा तक दूर करने में सफल रहे है, परंतु अभी भी इस वैक्सीन को बाज़ार में उपलब्ध होने में लंबा समय लग सकता है। 
  • साथ ही इस वैक्सीन के प्रभाव की अवधि या किसी दुष्प्रभाव आदि का पता लगाने के लिये अभी कई शोध आवश्यक होंगे। 
  • अतः लोगों को विशेषज्ञों की सलाह के अनुरूप ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ और स्वच्छता जैसे नियमों का पालन करते हुए इस महामारी के प्रसार को रोकने में अपना योगदान देना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू