वैक्सीन हेसिटेंसी: अर्थ और समस्या | 18 Dec 2020

चर्चा में क्यों?

सामान्य लोगों के बीच वैक्सीन की स्वीकृति का अध्ययन करने के लिये हाल ही में कई ऑनलाइन सर्वेक्षण किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु

वैक्सीन हेसिटेंसी अथवा टीका लगवाने में संकोच 

  • अर्थ: यह टीके की उपलब्धता के बावजूद टीके की स्वीकृति अथवा अस्वीकृति में होने वाली देरी को इंगित करता है। यह जटिल और संदर्भ-विशिष्ट अवधारणा है, जो कि समय, स्थान और टीके के आधार पर परिवर्तित होती है। साथ ही यह आत्मसंतुष्टि, सुविधा और आत्मविश्वास जैसे कारकों से प्रभावित होती है। 
  • कारण: गलत जानकारी/सूचना को वैक्सीन हेसिटेंसी अथवा टीका लगवाने में संकोच का सबसे प्रमुख कारण माना जाता है। 
    • धार्मिक प्रचार द्वारा किसी विशिष्ट टीके के निर्माण में ऐसे रोगाणुओं, रसायनों अथवा जानवरों से व्युत्पन्न उत्पाद शामिल किये गए हैं, जो धार्मिक कानूनों द्वारा निषिद्ध हैं, लोगों के समक्ष टीके को लेकर दुविधा उत्पन्न कर सकता है।
    • प्रायः सोशल मीडिया के माध्यम से भी किसी टीके को लेकर गलत सूचनाओं का प्रसार किया जाता है, यह लोगों में किसी टीके के प्रति संकोच का सबसे बड़ा कारण हो सकता है।
      • उदाहरण के लिये भारत में एक वर्ग ऐसा भी है, जो पोलियो की दवा से परहेज करता है, क्योंकि उनके बीच यह गलत धारणा मौजूद है कि पोलियो का टीका बाँझपन की समस्या का कारण है।
    • टीके के कारण उत्पन्न रोग: विदित हो कि ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV)  में तुलनात्मक रूप से कमज़ोर, किंतु जीवित पोलियो वायरस मौजूद होते हैं। चूँकि टीका-जनित वायरस प्रतिरक्षित (Immunized) बच्चों द्वारा उत्सर्जित किया जाता है इसलिये यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी फैल सकता है। 
    • टीकों तक पहुँचने में असुविधा भी टीके के प्रति संकोच का प्रमुख कारण है।

वैक्सीन हेसिटेंसी के मामले

  • चेन्नई स्थित अपोलो अस्पताल के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक ऑनलाइन अध्ययन में 1424 स्वास्थ्य पेशेवरों में से केवल 45 प्रतिशत कोरोना का टीका उपलब्ध होते ही उसे लगवाएंगे।
    • 55 प्रतिशत स्वास्थ्य पेशेवरों ने यह तय नहीं किया है कि उन्हें क्या करना है।
  • ‘लोकल सर्कल्स’ नामक एक अन्य संस्था द्वारा किये गए ऑनलाइन सर्वेक्षण में तकरीबन 59 प्रतिशत लोगों ने टीकाकरण के प्रति दुविधा व्यक्त की।

संबंधित मुद्दे

  • महामारी को नियंत्रित करने के प्रयासों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है।
  • व्यापक पैमाने पर वायरस के प्रसार को बढ़ावा मिल सकता है।

उपाय

  • जनता को जागरूक बनाना
    • दवा/टीके के अनुमोदन से पूर्व उसके विकास में शामिल विभिन्न प्रक्रियाओं जैसे- नैदानिक ​​परीक्षण, निगरानी, विश्लेषण और विनियामक समीक्षाओं आदि संबंधी सूचना और चर्चा आम लोगों के बीच टीके के प्रति विश्वास को बढ़ावा देने में सहायक हो सकती है।
    • आम लोगों के बीच जागरूकता फैलाने और टीके से संबंधित गलत सूचनाओं का मुकाबला करने के लिये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू