न्यायालय अवकाश | 19 Dec 2022

प्रिलिम्स के लिये:

न्यायालय अवकाश, अवकाश पीठ, सर्वोच्च न्यायालय, CJI, पेंडेंसी।

मेन्स के लिये:

अवकाश पीठ और संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय में वार्षिक शीतकालीन अवकाश के दौरान अवकाश पीठ नहीं होगी।

  • हालाँकि इस न्यायिक अवकाश की उत्पत्ति औपनिवेशिक प्रथाओं में हुई है, लेकिन पिछले कुछ समय से इसकी आलोचना की जा रही है।

न्यायालय अवकाश:

  • परिचय:
    • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक कामकाज़ के लिये एक वर्ष में 193 कार्य दिवस होते हैं, जबकि उच्च न्यायालय लगभग 210 दिनों के लिये कार्य करते हैं और ट्रायल कोर्ट 245 दिनों के लिये कार्य करते हैं।
    • उच्च न्यायालयों के पास सेवा नियमों के अनुसार अपने कैलेंडर बनाने की शक्ति है।
    • सर्वोच्च न्यायालय में प्रत्येक वर्ष दो लंबी अवधि के अवकाश होते हैं, ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन अवकाश, लेकिन इन अवधियों के दौरान तकनीकी रूप से पूरी तरह से न्यायालय का कामकाज़ बंद नहीं होता है।
  • अवकाश पीठ (Vacation Bench):
    • सर्वोच्च न्यायालय की अवकाश पीठ CJI द्वारा गठित एक विशेष पीठ है।
    • याचिकाकर्त्ता अभी भी सर्वोच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं और यदि न्यायालय यह निर्णय लेता है कि याचिका ‘अत्यावश्यक मामला’ है, तो अवकाश पीठ मामले के गुण-दोष के आधार पर सुनवाई करती है।
    • जमानत, बेदखली आदि जैसे मामलों को अक्सर अवकाश पीठों के समक्ष सूचीबद्ध करने में प्राथमिकता दी जाती है।
      • अवकाश के दौरान न्यायालयों के लिये महत्त्वपूर्ण मामलों की सुनवाई करना असामान्य नहीं है।
      • वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की स्थापना के लिये संवैधानिक संशोधन की चुनौती पर सुनवाई की।
      • वर्ष 2017 में एक संविधान पीठ ने ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देने वाले मामले में छह दिन तक सुनवाई की।
  • वैधानिक प्रावधान:
    • सर्वोच्च न्यायालय के नियम, 2013 के आदेश II के नियम 6 के तहत CJI ने ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान आवश्यक विविध मामलों की सुनवाई और नियमित सुनवाई हेतु खंडपीठों को नामित किया है।
    • नियम में कहा गया है कि CJI ग्रीष्मकालीन या सर्दियों के अवकाश के दौरान तत्काल प्रकृति के सभी मामलों की सुनवाई के लिये एक या एक से अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकता है, जो इन नियमों के तहत एकल न्यायाधीश द्वारा सुने जा सकते हैं।
    • और जब भी आवश्यक हो, वह अवकाश के दौरान अत्यावश्यक मामलों की सुनवाई के लिये एक खंडपीठ भी नियुक्त कर सकता है, जिसमें सुनवाई न्यायाधीशों की एक पीठ द्वारा की जानी चाहिये।

न्यायालय अवकाश संबंधी मुद्दे:

  • न्याय चाहने वालों के लिये असुविधाजनक:
    • न्यायालयों को मिलने वाला लंबा अवकाश न्याय चाहने वालों के लिये बहुत सुविधाजनक नहीं है।
  • लंबित मामलों के संदर्भ में बुरे संकेत:
    • विशेष रूप से मामलों की बढ़ती लंबितता और न्यायिक कार्यवाही की धीमी गति के आलोक में विस्तारित लगातार अवकाश अच्छे संकेत नहीं हैं।
    • सामान्य मुकदमेबाज़ी के मामले में अवकाश का मतलब मामलों को सूचीबद्ध करने में और अधिक अपरिहार्य देरी से है।
  • यूरोपीय प्रथाओं के साथ असंगत:
    • ग्रीष्मकालीन अवकाश की शुरुआत शायद इसलिये हुई क्योंकि भारत के संघीय न्यायालय के यूरोपीय न्यायाधीशों के अनुसार, भारतीय ग्रीष्मकालीन समय में काफी गर्मी रहती थी और इसी प्रकार क्रिसमस के लिये शीतकालीन अवकाश का भी प्रावधान किया गया।

आगे की राह

  • इस मुद्दे को हल तब तक नहीं किया जा सकता है जब तक न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु एक "नई प्रणाली" विकसित नहीं की जाती है।
  • वर्ष 2000 में आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधारों की सिफारिश करने के लिये न्यायमूर्ति मालिमथ समिति ने सुझाव दिया कि लंबित मामलों को ध्यान में रखते हुए अवकाश की अवधि को 21 दिनों तक कम किया जाना चाहिये। इसमें सर्वोच्च न्यायालय के लिये 206 दिन और उच्च न्यायालय के लिये 231 दिन काम करने का सुझाव दिया गया।
  • भारत के विधि आयोग ने वर्ष 2009 में अपनी 230वीं रिपोर्ट में इस प्रणाली में सुधार का आह्वान किया, अचंभित कर देने वाले बकाया मामलों को देखते हुए सुझाव दिया कि उच्च न्यायपालिका में अवकाश को कम-से-कम 10 से 15 दिनों तक कम किया जाना चाहिये और न्यायालय के काम के घंटों को कम-से-कम आधा घंटा बढ़ाया जाना चाहिये।
  • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने नए नियमों को अधिसूचित किया और इसके अनुसार ग्रीष्मकालीन अवकाश की अवधि पहले के 10 सप्ताह की अवधि की तुलना में अब सात सप्ताह से अधिक नहीं होगी।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ): 

प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भारत के राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने के लिये वापस बुलाया जा सकता है।
  2. भारत में एक उच्च न्यायालय को अपने स्वयं के निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति प्राप्त है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 128 के अनुसार, भारत का मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से निम्नलिखित योग्यता वाले किसी भी व्यक्ति से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकता है:
    • जिसने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर कार्य किया हो। अतः कथन 1 सही है।
    • जिसने किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण किया हो और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये विधिवत अर्हता प्राप्त कर चुका हो।
  • कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड होने के कारण उच्च न्यायालय भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने स्वयं के निर्णयों की समीक्षा कर सकता है। इसी तरह अनुच्छेद 137 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी निर्णय या उसके द्वारा दिये गए आदेश की समीक्षा करने की शक्ति होगी। अत: कथन 2 सही है।
  • अतः विकल्प C सही उत्तर है।

स्रोत: द हिंदू