उत्तर भारत में कपास की खेती | 19 Apr 2024

प्रिलिम्स के लिये:

पिंक बॉलवार्म, कपास, बीटी कपास, कपास को नुकसान पहुँचाने वाले कीट, खरीफ, कस्तूरी कपास

मेन्स के लिये:

भारत के लिये कपास का महत्त्व, भारत में कपास उत्पादन में परिणामी गिरावट से जुड़े कारण, भारत के कपास क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता।

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन 

चर्चा में क्यों? 

हितधारकों को 2024-25 में उत्तर भारतीय खरीफ रोपण सीज़न के करीब आने पर  कपास के रकबे में संभावित गिरावट की आशंका है।

  • यह बदलाव कई कारकों के एक साथ घटित होने से प्रेरित है, जिसमें गंभीर पिंक बॉलवार्म संक्रमण, फाइबर फसल की कम कीमतें और बढ़ती श्रम लागत शामिल है।
  • इन चुनौतियों का सामना करने वाले किसान धान, मक्का और ग्वार जैसी वैकल्पिक फसलों का विकल्प चुन सकते हैं।

पिंक बॉलवर्म (PBW) संक्रमण क्या है?

  • परिचय:
    • पिंक बॉलवर्म या PBW (Pectinophora gossypiella) अमेरिकी बॉलवॉर्म एक प्रमुख जटिल कीट है, जो मुख्य रूप से कपास की फसलों को प्रभावित करता है।
    • PBW को सॉन्डर्स के नाम से भी जाना जाता है जो फूल की कली (वर्ग) और बीज युक्त बीजकोष जैसे विकसित हो रहे कपास के फलों को नुकसान पहुँचाता है।
    • कीट कलियों, फूलों और बीजकोषों पर अंडे देता है, जिससे निकलने वाले लार्वा बीजों को खाने के लिये बीजकोषों में घुस जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप लिंट को नुकसान होता है और गुणवत्ता में गिरावट आती है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • PBW जैसे कीटों का प्रतिरोध करने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित बीटी कपास की शुरुआत करने का उद्देश्य जोखिमों को कम करना था। हालाँकि PBW ने समय के साथ बीटी कॉटन के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लिया है, जिससे समस्या बढ़ गई है।
  • विकास में योगदान देने वाले प्रतिरोधी कारक:
    • मध्य और दक्षिणी कपास उत्पादन क्षेत्रों में फसल चक्र के बिना कपास की निरंतर बुआई ने PBW को बढ़ावा दिया है।
    • किसानों द्वारा अस्वीकृत Bt/HT बीजों की अवैध कृषि ने PBW प्रतिरोधी विकास में योगदान दिया है।
    • दीर्घावधि के संकरण की विस्तारित कृषि ने PBW हेतु निरंतर मेज़बान उपलब्धता की स्थिति प्रदान की।
    • कपास की फसल को अनुशंसित अवधि से आगे बढ़ाने की वजह से PBW के जीवित रहने और उसे प्रजनन में मदद दी।
    • विदेशज रोपण (Refugia Planting) में कमी के कारण PBW के Bt प्रोटीन के निरंतर संपर्क में रहने से प्रतिरोधी विकास में वृद्धि हुई है।
      • विदेशज पौधे जैवविविधता वाले पौधे हैं, जो कृषिगत पौधों के आसपास उगते हैं और प्राकृतिक कीटों को संरक्षण हेतु स्थान एवं भोजन प्रदान करते हैं।
  • फसल की पैदावार और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
    • PBW संक्रमण के परिणामस्वरूप उपज में काफी नुकसान होता है और कपास के रेशे की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे किसानों की आय और स्थिरता प्रभावित होती है।
    • कीट विज्ञानियों के अनुसार, हरियाणा में कपास के खेतों को काफी नुकसान हुआ है, लगभग 25% खेतों में 50% नुकसान की सूचना है।
    • पंजाब में 65% नुकसान देखा गया है, हालाँकि राजस्थान 90% नुकसान के साथ सूची में शीर्ष पर है, जो किसानों और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के लिये गंभीर आर्थिक परिणामों को रेखांकित करता है।

कपास के कीट:

        कीट

          लक्षण 

चित्तीदार सुंडी
(Earias vitella)

  • केंद्रीय अंकुर सूख जाते हैं, मुरझा जाते हैं और गिर जाते हैं।
  • यह फूलों की कलियों, बीजकोषों में छेद कर देता है और उनके टूटने का कारण बनता है।

अमेरिकी सुंडी
(Helicoverpa armigera)

  • छालों का उभरना (फूल की कली को पिरामिड जैसी आकृति में घेरना)।
  • चौकों (squares) पर कीटमल से भरे बोरहोल।

तंबाकू कैटरपिलर
(Spodoptera litura) 

  • अनियमित बोरहोल।
  • पत्तियों का शैलमृदाभवन (Skeletonization)
  • भारी पतझड़

सफेद मक्खी
(Bemicia tabaci)

  • पत्तियों से रस चूसना
  • निम्न गुणवत्ता वाला लिंट (Lint)
  • गंभीर मामलों में बोल शेडिंग (Boll Shedding)।

कॉटन एफिड
(Aphis gossypii)

  • शिशु और वयस्क दोनों ही पत्तियों से रस चूसते हैं।
  • मधुमय स्राव के कारण चमकदार उपस्थिति।

कपास मीली बग 
(Phenacoccus solenopsis)

  • झाड़ीदार अंकुर
  • कपास की बुआई के प्रारंभिक चरण में फसल का  मुर्झाना (वृद्धावस्था) जैसी स्थिति देखी जा सकती है।
  • कालिखयुक्त फफूँद का बनना।

उत्तर भारत में कपास की खेती के रुझान क्या हैं?

  • उत्तर भारतीय राज्यों पर प्रभाव:
    • पंजाब, राजस्थान और हरियाणा उत्तर भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं, सभी में कपास के क्षेत्रफल (Cotton Acreages) में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है।
    • पंजाब में वर्ष 2023-24 के खरीफ सीज़न के दौरान कपास के क्षेत्रफल में 32% की उल्लेखनीय गिरावट देखी गई, जबकि राजस्थान में थोड़ी कमी देखी गई और हरियाणा में मामूली वृद्धि देखी गई।
  • वैकल्पिक फसलों की ओर बदलाव: 
    • उत्तर भारत में किसान गुणवत्ता संबंधी चिंताओं और कम विक्रय के कारण धान, मक्का, ग्वार, मूँग और मूँगफली जैसी वैकल्पिक फसलों का विकल्प तलाश रहे हैं।
    • पंजाब में जहाँ पानी की उपलब्धता अनुकूल है, किसान धान की खेती की ओर लौट सकते हैं। राजस्थान में ग्वार की खेती को प्राथमिकता दी जा सकती है, जबकि मक्का और मूँग अन्य क्षेत्रों में विकल्प के रूप में उभर सकते हैं।
  • श्रम लागत और विक्रय: 
    • बढ़ती श्रम लागत ने उत्तर भारत में कपास किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। इसके अतिरिक्त कीटों के संक्रमण के कारण खराब गुणवत्ता ने किसानों की आय को प्रभावित किया है, जिससे फसल के नुकसान के मुआवज़े को लेकर चिंता उत्पन्न हो गई है।
  • आगामी सीज़न (2024) को लेकर आशाएँ: 
    • मौजूदा चुनौतियों के बावजूद आगामी कपास सीज़न के संबंध में कुछ उम्मीदें हैं। अनुकूल मानसून पूर्वानुमान और अपेक्षाकृत बेहतर कीमतें कपास के रकबे में मामूली वृद्धि की उम्मीद जगाती हैं। हालाँकि चिंताएँ बनी हुई हैं, जिनमें उन्नत तकनीक की कमी और कुछ क्षेत्रों में देखी गई PBW द्वारा क्षति जैसी गंभीर मुद्दे शामिल हैं।

                                                      कपास

बढ़ती परिस्थितियाँ

  • कपास एक खरीफ फसल है जिसे पकने में 6 से 8 महीने लगते हैं।
  • तापमान: 21-30 डिग्री सेल्सियस के बीच (लंबी ठंढ-मुक्त अवधि के साथ गर्म, धूप वाली जलवायु की आवश्यकता होती है)
  • वर्षा: लगभग 50-100 सेमी. (गर्म और आर्द्र परिस्थितियों में सबसे अधिक उत्पादक)।
  • मृदा आवश्यकता: कपास को मध्यम से लेकर भारी प्रकार की मृदा में बोया जा सकता है, लेकिन कपास की खेती के लिये काली कपास मृदा सबसे आदर्श है।
  • यह 5.5 से 8.5 की pH रेंज को सहन कर सकता है लेकिन जलभराव के प्रति संवेदनशील है।

प्रमुख कपास उत्पादक राज्य

  • उत्तरी क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा, राजस्थान।
  • मध्य क्षेत्र: गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश।
  • दक्षिणी क्षेत्र: तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु।

महत्त्व

  • कपड़ा उद्योग के लिये प्राथमिक स्रोत, जो भारत की कुल कपड़ा फाइबर खपत का दो-तिहाई हिस्सा है।
  • बिनौला तेल और केक/भोजन का उपयोग खाना पकाने तथा पशुओं एवं मुर्गीपालन के लिये चारे के रूप में किया जाता है।
  • बिनौला तेल भारत का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू उत्पादित वनस्पति तेल है।
  • कपास भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से एक है, जो वैश्विक कपास उत्पादन का लगभग 25% हिस्सा है।
  • इसके आर्थिक महत्त्व के कारण इसे अक्सर "व्हाइट-गोल्ड" कहा जाता है।

पहल

COTTON CULTIVATION

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. कपास की खेती करने वाले किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये तथा खाद्य एवं आय सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु फसल विविधीकरण के साथ सतत् कृषि पद्धतियों के महत्त्व की जाँच कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में काली कपास मृदा की रचना निम्नलिखित में से किसके अपक्षयण से हुई है? (2021)

(a) भूरी वन मृदा
(b) विदरी (फिशर) ज्वालामुखीय चट्टान
(c) ग्रेनाइट और शिस्ट
(d) शेल और चूना-पत्थर

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित विशेषताएँ भारत के एक राज्य की विशिष्टताएँ हैंः (2011)

  1. उसका उत्तरी भाग शुष्क एवं अर्द्धशुष्क है।
  2. उसके मध्य भाग में कपास का उत्पादन होता है।
  3. उस राज्य में खाद्य फसलों की तुलना में नकदी फसलों की खेती अधिक होती है।

उपर्युक्त सभी विशिष्टताएँ निम्नलिखित में से किस एक राज्य में पाई जाती हैं?

(a) आंध्र प्रदेश
(b) गुजरात
(c) कर्नाटक
(d) तमिलनाडु

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. भारत में अत्यधिक विकेंद्रीकृत सूती वस्त्र उद्योग के लिये कारकों का विश्लेषण कीजिये। (2013)