आयुध निर्माणी बोर्ड का निगमीकरण | 18 Jun 2021

प्रिलिम्स के लिये:

आयुध निर्माणी बोर्ड, आत्मनिर्भर भारत पहल

मेन्स के लिये: 

आयुध निर्माणी बोर्ड के निगमीकरण का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) के निगमीकरण की योजना को मंज़ूरी दी है।

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प्रमुख बिंदु: 

नई संरचना: 

  • देश भर में 41 कारखानों को रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के सात नए उपक्रमों (DPSU) में बदल दिया जाएगा। नवनिर्मित संस्थाएँ सरकार के 100% स्वामित्व में होंगी।
  • ये संस्थाएँ उत्पादों के विभिन्न कार्यक्षेत्रों के लिये ज़िम्मेदार होंगी जैसे कि गोला-बारूद और विस्फोटक समूह गोला-बारूद का उत्पादन करेंगे, जबकि एक वाहन समूह रक्षा गतिशीलता और लड़ाकू वाहनों के उत्पादन में संलग्न होगा।
  • उत्पादन इकाइयों में सभी OFB कर्मचारियों को केंद्र सरकार के कर्मचारियों के रूप में उनकी सेवा शर्तों में बदलाव किये बिना शुरू में दो वर्ष की अवधि के लिये एक डीम्ड प्रतिनियुक्ति पर नई कॉर्पोरेट संस्थाओं में स्थानांतरित किया जाएगा।
  • सेवानिवृत्त और मौजूदा कर्मचारियों की पेंशन देनदारियाँ सरकार द्वारा वहन की जाती रहेंगी।

OFB:

  • यह आयुध कारखानों और संबंधित संस्थानों के लिये एक पूर्ण निकाय है तथा वर्तमान में रक्षा मंत्रालय (MoD) का एक अधीनस्थ कार्यालय है।
    • पहला भारतीय आयुध कारखाना वर्ष 1712 में डच कंपनी द्वारा गन पाउडर फैक्ट्री, पश्चिम बंगाल के रूप में स्थापित किया गया था।
  • यह 41 कारखानों, 9 प्रशिक्षण संस्थानों, 3 क्षेत्रीय विपणन केंद्रों और 5 क्षेत्रीय सुरक्षा नियंत्रकों का समूह है।
  • मुख्यालय: कोलकाता
  • महत्त्व: न केवल सशस्त्र बलों के लिये बल्कि अर्द्धसैनिक और पुलिस बलों हेतु हथियार, गोला-बारूद और आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा OFB द्वारा संचालित कारखानों से आता है।
  • उत्पादन में शामिल हैं: नागरिक और सैन्य-ग्रेड हथियार और गोला-बारूद, विस्फोटक, मिसाइल सिस्टम के लिये प्रणोदक और रसायन, सैन्य वाहन, बख्तरबंद वाहन, ऑप्टिकल उपकरण, पैराशूट, रक्षा उपकरण, सेना के कपड़े और सामान्य भंडार।

निगमीकरण का कारण:

  • OFB पर वर्ष 2019 के लिये अपनी रिपोर्ट में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा प्रदर्शन मूल्यांकन में कुछ कमियों पर प्रकाश डाला गया है, जो इस संगठन के सामने कठिनाइयाँ पैदा करती हैं।
    • ओवरहेड्स (उत्पाद बनाने या सेवा के लिये सीधे तौर पर ज़िम्मेदार नहीं) वर्ष के लिये कुल आवंटित बजट का 33% बाकी रह गया।
      • इसमें प्रमुख योगदानकर्त्ता पर्यवेक्षण लागत और अप्रत्यक्ष श्रम लागत हैं।
    • विलंबित उत्पादन: आयुध कारखानों ने केवल 49% वस्तुओं के उत्पादन का लक्ष्य हासिल किया।
      • आधे से अधिक सामान (52%) निर्माण हेतु खरीदा गया था लेकिन कारखानों द्वारा एक वर्ष के भीतर उपयोग नहीं किया गया था।
  • आत्मनिर्भर भारत पहल में भी OFB के निगमीकरण का प्रावधान किया गया है- 'आयुध आपूर्तिकर्ताओं की स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार'।

नई व्यवस्था का महत्त्व: 

  • यह पुनर्गठन अक्षम आपूर्ति शृंखलाओं को समाप्त करके OFB की मौजूदा प्रणाली में विभिन्न कमियों को दूर करने में भी मदद करेगा और इन कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धी बनने तथा बाज़ार में नए अवसरों का पता लगाने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करेगा।
  • यह इन कंपनियों को स्वायत्तता के साथ-साथ जवाबदेही और दक्षता में सुधार करने में मदद करेगा।
  • इस पुनर्गठन का एक अन्य उद्देश्य आयुध कारखानों को उत्पादक और लाभदायक संपत्तियों में बदलना, उत्पाद शृंखला में उनकी विशेषज्ञता को बढ़ाना, प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना और गुणवत्ता और लागत-दक्षता में सुधार करना है।

आशंकाएँ:

  • कर्मचारियों की मुख्य आशंकाओं में से एक यह है कि निगमीकरण (स्वामित्व और प्रबंधन सरकार के पास है) अंततः निजीकरण (निजी संस्थाओं को स्वामित्व और प्रबंधन अधिकारों का हस्तांतरण) की ओर ले जाएगा।
  • नई कॉर्पोरेट संस्थाएँ रक्षा उत्पादों के प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार के माहौल से बचने में सक्षम नहीं होंगी, जिसका एक प्रमुख कारण अस्थिर मांग और आपूर्ति की गतिशीलता है।
  • पुनर्गठन के परिणामस्वरूप अधिक स्वायत्तता और निगम पर कम सरकारी नियंत्रण होगा, साथ ही रोज़गार कम होने का डर है।

आगे की राह: 

  • OFB के निगमीकरण से आयुध कारखानों को एक अत्याधुनिक सुविधा में बदलने की संभावना है, जिससे कामकाज में लचीलापन आएगा और बेहतर निर्णय लेने की क्षमता विकसित होगी।
  • इस योजना के लिये एक चिंतनशील रोड-मैप की आवश्यकता है। इससे निगमीकरण के संबंध में आशंकाओं को कम करने में मदद मिल सकती है।

स्रोत- द हिंदू