COP-13 | 27 Feb 2020

प्रीलिम्स के लिये:

कोप-13, गांधीनगर डिक्लेरेशन

मेन्स के लिये:

प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण, जैव-विविधता

चर्चा में क्यों?

15-22 फरवरी, 2020 तक गुजरात की राजधानी गांधीनगर में ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS) की शीर्ष निर्णय निर्मात्री निकाय कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP) के 13वें सत्र का आयोजन किया गया।

विषय (Theme)

“प्रवासी प्रजातियाँ पृथ्वी को जोड़ती हैं और हम मिलकर उनका अपने घर में स्वागत करते हैं।”

(Migratory species connect the planet and together we welcome them home)

शुभंकर (Mascot)

गिबी (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड)

प्रतीक चिह्न (Logo)

COP-13 के प्रतीक चिह्न में दक्षिण भारत की एक पारंपरिक कला ‘कोलम’ का प्रयोग करते हुए भारत के महत्त्वपूर्ण प्रवासी जीवों-अमूर फाल्कन, मरीन टर्टल को दर्शाया गया है।

COP-13 की पृष्ठभूमि:

  • CMS सदस्य देशों का यह सम्मेलन प्रवासी पक्षियों, उनके प्रवास स्थान और प्रवास मार्ग के संरक्षण पर होने वाला विश्व का एकमात्र सम्मेलन है।
  • इस सम्मेलन का आयोजन हर 3 वर्ष में किया जाता है।
  • यह सम्मेलन इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मई 2019 में ‘जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच (IPBES)’ द्वारा जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर जारी एक समीक्षा रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में वन्यजीवों और वनस्पतियों की लगभग 10 लाख प्रजातियाँ लुप्तप्राय की स्थिति में हैं।
  • सम्मेलन में लिये गए निर्णय ‘पोस्ट 2020 वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क’ रणनीति के लिये आधार प्रदान करेंगे।
  • वर्ष 2020 में ही ‘पोस्ट 2020 वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क’ के तहत भविष्य की नीतियों की रूपरेखा तथा संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के अंतिम दशक (2020-2030) के लक्ष्य निर्धारित किये जायेंगे। अतः COP-13 सम्मेलन में लिये गए निर्णय आगामी दशक में विकास और प्रकृति के बीच समन्वय के लिये महत्त्वपूर्ण होंगे।

वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण (CMS)

  • CMS एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि है, इसे बॉन कन्वेंशन (Bonn Convention) के नाम से भी जाना जाता है।
  • वर्ष 1979 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nation Environment Programme-UNEP) के तहत जर्मनी के बॉन (Bonn) शहर में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
  • यह समझौता वर्ष 1983 में आधिकारिक रूप से लागू हुआ और वर्तमान में इस समझौते के 130 सक्रिय सदस्य (यूरोपियन यूनियन व 129 अन्य देश) हैं।
  • CMS का मुख्यालय बॉन (Bonn), जर्मनी में स्थित है।

CMS के कार्य:

  • CMS के अनुसार, सभी वन्यजीव अपनी विविधताओं के साथ पृथ्वी की प्राकृतिक संरचना का महत्त्वपूर्ण अंग हैं और हर स्थिति में इनका संरक्षण किया जाना चाहिये।
  • CMS प्रवासी जीवों के प्रवास मार्ग और प्रवास क्षेत्र से संबंधित देशों को एक साथ लाने का काम करता है।
  • इसके साथ ही CMS प्रवासी जीवों के संरक्षण के लिये संबंधित देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित प्रयासों को कानूनी आधार प्रदान करता है।
  • प्रवासी प्रजातियों, उनके आवास और प्रवास मार्गों के संरक्षण में विशेषज्ञता वाले एकमात्र वैश्विक सम्मेलन के रूप में CMS कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, गैर-सरकारी तथा निजी क्षेत्र के संगठनों एवं मीडिया के साथ मिलकर काम करता है।
  • वर्तमान में CMS के तहत 173 प्रजातियों को संरक्षण प्राप्त है।

CMS और भारत

  • भारत वर्ष 1983 से इस सम्मेलन का सदस्य रहा है।
  • इसके साथ ही भारत ने कुछ प्रजातियों के संरक्षण और प्रबंधन के लिये गैर-बाध्यकारी MOU पर हस्ताक्षर भी किये हैं। इनमें साइबेरियन क्रेन (1998), मरीन टर्टल (2007), डूगोंग (2008) और रैप्टर (2016) शामिल हैं।

COP-13 के परिणाम

  • COP-13 में CMS की संरक्षित प्रजातियों की सूची में 10 नई प्रजातियों को जोड़ा गया है।
  • इस सूची के परिशिष्ट-I में 7 प्रजातियों ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एशियाई हाथी, बंगाल फ्लोरिकन, जगुआर, वाइट-टिप शार्क, लिटिल बस्टर्ड और एंटीपोडियन अल्बाट्राॅस को शामिल किया है। ध्यातव्य है कि CMS के परिशिष्ट-I में वन्यजीवों की लुप्तप्राय (Endangered) प्रजातियों को रखा जाता है।
  • परिशिष्ट-II में प्रवासी जीवों की 3 प्रजातियों को जोड़ा गया है। परिशिष्ट-II में वन्यजीवों की उन प्रजातियों को शामिल किया जाता है, जिनकी संख्या में असामान्य कमी दर्ज की गई हो तथा उनके संरक्षण के लिये वैश्विक सहयोग की ज़रूरत हो।
  • परिशिष्ट-II में जोड़ी गई प्रजातियों में उरियल (Urial), स्मूथ हैमरहेड शार्क और टोपे शार्क (Tope shark) शामिल हैं।
  • इसके साथ ही वन्य जीवों की लक्षित 14 अन्य प्रजातियों के संरक्षण हेतु ठोस कदम उठाने के लिये कार्ययोजना पर सहमति।

गांधीनगर घोषणा (डिक्लेरेशन):

  • COP-13 सम्मेलन के दौरान “गांधीनगर डिक्लेरेशन” नामक एक घोषणा-पत्र जारी किया गया, इस घोषणा-पत्र में प्रवासी पक्षियों और उनके वास स्थान के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में CMS की भूमिका की सराहना की गई।
  • इस घोषणा-पत्र में प्रवासी जीवों के वास स्थान के क्षरण और उनके अनियंत्रित दोहन को प्रवासी जीवों के अस्तित्व के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया गया।
  • घोषणा-पत्र में वर्तमान वैश्विक ‘पारिस्थितिक संकट’ (Ecological Crisis) को स्वीकार करते हुए इस समस्या से निपटने के लिये शीघ्र और मज़बूत कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
  • घोषणा-पत्र में CMS और अन्य जैव-विविधता से संबंधित सम्मेलनों के लक्ष्यों की प्राप्ति में ‘जलवायु परिवर्तन पर UNFCCC’ के पेरिस समझौते के महत्त्व को स्वीकार किया गया।
  • पोस्ट 2020 ग्लोबल फ्रेमवर्क:
    • आगामी दशकों में जैव-विविधता में सकारात्मक सुधार के लिये नीति-निर्धारण में ‘Post 2020 ग्लोबल फ्रेमवर्क’ के महत्त्व को स्वीकार किया गया है।
    • घोषणापत्र में ‘पोस्ट-2020 वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क’ के अंतर्गत पर्यावरण संवर्द्धन के क्षेत्र में बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों, क्षेत्रीय और सीमा पार सहयोग प्रणाली, आदि के माध्यम से वैश्विक सहयोग बढ़ाने तथा सामुदायिक स्तर पर योजनाओं के बीच अनुभव साझा करने जैसे प्रयास शामिल करने की सलाह दी गई है।
    • इसके साथ ही ‘पोस्ट-2020 वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क’ के तहत योजना की सफलता (लक्ष्यों पर प्रगति की स्थिति, जैव-विविधताओं को जोड़ने पर कार्य-प्रगति) के मूल्यांकन के लिये प्रवासी प्रजातियों की स्थिति के विभिन्न सूचकांकों जैसे-वाइल्ड बर्ड इंडेक्स, लिविंग प्लैनेट इंडेक्स, आदि को शामिल करने की बात कही गई है।
  • गांधीनगर घोषणा-पत्र में CMS सदस्यों और अन्य हितधारकों को प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण तथा जैव-पारिस्थितिकी के क्षेत्र में संपर्क एवं कार्य क्षमता को बढ़ाने के लिये ‘पोस्ट-2020 वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क’, 2030 सतत् विकास लक्ष्य आदि योजनाओं के तहत वैश्विक सहयोग बढ़ाने व आवश्यक संसाधनों को उपलब्ध कराने की मांग की गई है।

रैप्टर समझौता-ज्ञापन (Raptor MOU):

COP-13 सम्मेलन में पूर्वी अफ्रीका के देश इथिओपिया (Ethiopia) ने CMS द्वारा प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिये स्थापित ‘CMS एमओयू ऑन कंजर्वेशन ऑफ माइग्रेटरी बर्ड्स ऑफ प्रे इन अफ्रीका एंड यूरेशिया’ नामक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, इस समझौते को ‘रैप्टर समझौता-ज्ञापन (Raptor MOU)’ के नाम से भी जाना जाता है। यह समझौता अफ्रीका और यूरेशिया क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध और उनके संरक्षण को बढ़ावा देता है। भारत ने मार्च 2016 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।

अन्य महत्त्वपूर्ण समझौते:

COP-13 सम्मेलन में प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिये विभिन्न प्रयासों को आम सहमति से स्वीकार किया गया, इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • जैव-विविधता और प्रवासी प्रजातियों के मुद्दों को राष्ट्रीय ऊर्जा तथा जलवायु नीति में शामिल करना एवं वन्यजीव अनुकूल अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना।
  • प्रवासी पक्षियों के गैर-कानूनी शिकार और उनके व्यापार को रोकने के लिये प्रयासों को तेज़ करना।
  • मूलभूत आधारिक संरचनाओं (सड़क, रेल आदि) के विकास के दौरान प्रवासी प्रजातियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम करना।
  • जलीय वन्यजीवों के मांस के अनियंत्रित उपयोग पर अंकुश लगाना।
  • समुद्र में मछली पकड़ने के दौरान शार्क या अन्य संरक्षित प्रजातियों के अनैच्छिक शिकार की निगरानी करना एवं इसके समाधान के लिये नीति बनाना।
  • संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिये जीवों के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश के प्रति समझ को बढ़ाना।
  • CMS के परिशिष्ट-I में सूचीबद्ध प्रजातियों के व्यापार पर नियंत्रण और उनके संवर्द्धन के लिये सामूहिक प्रयास।

CMS राजदूत:

CMS के कार्यों और प्रवासी प्रजातियों की समस्याओं के प्रति विश्व भर में जागरूकता फैलाने के लिये COP-13 में तीन नए CMS राजदूत नियुक्त किये गए हैं:

  1. ईयन रेडमंड - स्थलीय प्रवासी प्रजातियों के लिये
  2. साशा डेंच (पर्यावरणविद्) - प्रवासी पक्षियों के लिये
  3. रणदीप हुड्डा (अभिनेता और पर्यावरण कार्यकर्त्ता) - प्रवासी जलीय जीवों के लिये

COP-13 में भारत की भूमिका

  • COP-13 समेलन में CMS के ‘चैंपियन प्रोग्राम’(Champion Programme) के तहत भारत को ‘स्माल ग्रांट्स प्रोग्राम’ (Small Grants Program) के लिये अवार्ड से सम्मानित किया गया।
  • इस सम्मेलन के बाद भारत को अगले तीन वर्षों के लिये COP का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
  • भारत सेंट्रल एशियाई फ्लाईवे (CAF) के मुद्दे का नेतृत्व करते हुए CAF के लिये एक फ्रेमवर्क का निर्माण करेगा।
  • CAF के विकास के लिये भारत सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय कार्ययोजना जारी की गई है, इसके तहत सभी हितधारकों के सहयोग से प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के साथ आर्द्रभूमि (wetland) का संरक्षण एवं विकास किया जाएगा।
  • भारत प्रवासी पक्षियों के संरक्षण और इस क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने के लिये संस्थान की स्थापना करेगा।
  • मरीन टर्टल पॉलिसी: भारत सरकार द्वारा समुद्री कछुओं की प्रवासी प्रजातियों और उनके वास स्थान (Habitat) के संरक्षण तथा विकास के लिये कार्ययोजना का निर्माण किया जा रहा है।
    • इसके तहत समुद्री कछुओं के प्रवास स्थान की पहचान कर उनके संरक्षण और उन्हें चिकित्सा सहायता प्रदान करने जैसे प्रयास किये जाएंगे।
    • संबंधित क्षेत्र को प्लास्टिक मुक्त बनाने के साथ ही योजना के कार्यान्वयन में सभी हितधारकों (मछुआरों आदि) को शामिल किया जाएगा।
    • इस योजना में सर्वेक्षण के लिये केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान की सहायता ली जाएगी, इस परियोजना पर 5 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है।
  • इसके अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा सीमावर्ती देशों के साथ प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिये ‘ट्रांस-बाउंड्री संरक्षित क्षेत्र’ चिह्नित करने जैसे प्रयास किये जाएंगे।

कौन हैं प्रवासी प्रजातियाँ?

प्रवासी प्रजातियाँ जीवों की वे प्रजातियाँ हैं, जो वर्ष के विभिन्न समयों/भागों में भोजन, तापमान, जलवायु जैसे विभिन्न कारकों के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। अलग-अलग प्रवास स्थानों के बीच प्रवासी जीवों की यह यात्रा कई बार हज़ारों किमी. से अधिक होती है।

भारत में प्रवासी प्रजातियों के प्रमुख प्रवास क्षेत्र:

हिंद महासागर के साथ लंबी तटीय सीमा होने के अलावा भारतीय उपमहाद्वीप इस क्षेत्र में पक्षियों के महत्त्वपूर्ण प्रवास मार्ग सेंट्रल एशियन फ्लाईवे (Central Asian Flyway-CAF) का हिस्सा है। इसके कारण वर्ष भर बहुत से प्रवासी जीव भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रवास के लिये आते रहते हैं। भारत के कुछ प्रवासी क्षेत्रों में ‘नलबाना पक्षी अभयारण्य’ (ओड़िसा) बार-हेडेड गीज (कलहंस) के लिये, ‘केवलादेव नेशनल पार्क’ (राजस्थान) साइबेरियाई पक्षियों के लिये और नगालैंड का वोखा (Wokha) ज़िला- अमूर फाल्कन के लिये जाने जाते हैं।

प्रवास में होने वाली समस्याएँ:

पिछले कुछ वर्षों में प्रवासी जीवों की संख्या में भारी कमी देखी गई है, जीवों की घटती संख्या और उनके प्रवास में होने वाली समस्याओं में जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और इनका अवैध शिकार प्रमुख हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण प्रवासी जीवों को अपने प्राकृतिक स्थान को छोड़कर नए स्थानों पर जाना पड़ता है, असुरक्षित तथा प्रतिकूल वातावरण का प्रभाव प्रजातियों की उत्तरजीविता और उनकी प्रजनन क्षमता पर पड़ता है। इसके साथ ही नए स्थानों पर प्रवास से उनका शिकार किये जाने का भी खतरा बढ़ जाता है।

  • अवैध शिकार: कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा संरक्षित घोषित होने के बावजूद प्रवासी पक्षियों का अवैध शिकार ऐसे जीवों के अस्तित्व के लिये एक बड़ी समस्या है। उदाहरण- नगालैंड में अमूर फाल्कन या पाकिस्तान में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का शिकार आदि।
  • प्रदूषण: प्रदूषण के कई प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव प्रवासी जीवों की घटी संख्या का कारण रहे हैं। इनमें समुद्री कचरे से प्रवासी कछुओं के वास स्थान को क्षति, पक्षियों के प्राकृतिक आवास का क्षरण व जल प्रदूषण शामिल हैं।
  • अन्य कारण: प्रवासी प्रजातियों की उत्तरजीविता की अन्य चुनौतियों में कई मानवीय विकास गतिविधियाँ जैसे-सड़क या रेल मार्ग, विद्युत तार, कृषि में प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशक आदि हैं।

क्या है फ्लाई-वे (Flyway)?

प्रवासी जीवों द्वारा, विभिन्न देशों या महाद्वीपों में अपने प्रवास के दौरान, उपयोग किये जाने वाले एक निश्चित मार्ग को फ्लाई-वे के रूप में जाना जाता है।

वस्तुतः फ्लाई-वे विभिन्न देशों और महाद्वीपों के पारिस्थितिक तंत्रों तथा प्रवास स्थानों को जोड़ने का कार्य करते हैं।

Central Asian Flyway-CAF: सेन्ट्रल एशियन फ्लाई-वे प्रवासी पक्षियों के विश्व के 9 प्रवास मार्गों में से एक है, इस फ्लाई-वे के अंतर्गत आर्कटिक और हिंद महासागर के बीच यूरेशिया के लगभग 30 देश शामिल हैं। संपूर्ण विश्व के जलीय प्रवासी पक्षियों की लगभग 182 प्रजातियाँ CAF क्षेत्र में प्रवास करती हैं, जिनमें से 29 प्रजातियों को वैश्विक रूप से संकटग्रस्त या निकट संकटग्रस्त की श्रेणी में रखा गया है। यह मार्ग इन प्रजातियों के प्रवास और प्रजनन के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

Asian-migratory

चुनौतियाँ:

  • कई महत्त्वपूर्ण देशों जैसे-इज़राइल, ऑस्ट्रेलिया,दक्षिण अफ्रीका, यूरोपीय संघ आदि ने संरक्षित प्रजातियों के आयात या निर्यात से संबंधित जानकारी CMS सचिवालय को साझा करने को अनिवार्य नहीं माना है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, CMS के पास अपने निर्णयों को अनिवार्य रूप से लागू कराने के लिये कोई प्रावधान नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि सदस्य देश किसी समझौते का हिस्सा बनकर भी उसका पालन नहीं करते हैं तो CMS उस समझौते के सफल क्रियान्वयन के लिये कुछ नहीं कर सकता।

आगे की राह:

  • प्रवासी प्रजातियाँ देशों को वैश्विक स्तर पर जोड़ने के साथ ही पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, अतः सभी देशों को इनके संरक्षण के लिये मिलकर प्रयास करना चाहिये।
  • विभिन्न वैश्विक संगठनों के माध्यम से सतत् विकास और प्रकृति संरक्षण में समन्वय के लिये आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये।
  • प्रवासी प्रजातियों व जैव-विविधता के संवर्द्धन में सभी देशों की भूमिका और उनके अनिवार्य योगदान को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू एवं इंडियन एक्सप्रेस