उपभोक्‍ता संरक्षण विधेयक, 2019 | 06 Aug 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोक सभा में चर्चा के उपरांत उपभोक्‍ता संरक्षण विधेयक, 2019 (Consumer Protection Bill, 2019) पारित हो गया।

प्रमुख बिंदु

  • इस विधेयक का उद्देश्‍य उपभोक्‍ता विवादों का निपटारा करने के लिये उपभोक्‍ता प्राधिकरणों की स्‍थापना करना है जिससे उपभोक्‍ता के हितों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।
  • केंद्रीय उपभोक्‍ता मामले तथा खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने इस विधेयक में नियमों को सरल बनाया है।
  • विधेयक के पारित होने से उपभोक्‍ताओं को त्‍वरित न्‍याय प्राप्त होगा।
  • इस विधेयक के माध्यम से सरकार उपभोक्‍ता शिकायतों से संबंधित पूरी प्रक्रिया को सरल बनाने के पक्ष में है।
  • विधेयक में केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय उपभोक्‍ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority- CCPA) के गठन का प्रस्‍ताव है।
    • प्राधिकरण का उद्देश्‍य उपभोक्‍ता के अधिकारों को बढ़ावा देना एवं कार्यान्‍वयन करना है।
    • प्राधिकरण को शिकायत की जाँच करने और आर्थिक दंड लगाने का अधिकार होगा।
    • यह गलत सूचना देने वाले विज्ञापनों, व्‍यापार के गलत तरीकों तथा उपभोक्‍ताओं के अधिकारों के उल्‍लंघन के मामलों का नियमन करेगा।
    • प्राधिकरण को गलतफहमी पैदा करने वाले या झूठे विज्ञापनों के निर्माताओं या उनका समर्थन करने वालों पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना तथा दो वर्ष के कारावास का दंड लगाने का अधिकार होगा।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ

  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के अधिकार:
    • उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन और संस्थान की शिकायतों की जाँच करना।
    • असुरक्षित वस्तुओं और सेवाओं को वापस लेना।
    • अनुचित व्‍यापार और भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाना।
    • भ्रामक विज्ञापनों के निर्माता / समर्थक/ प्रकाशक पर जुर्माना लगाना।
  • सरलीकृत विवाद समाधान प्रक्रिया
    • आर्थिक क्षेत्राधिकार को बढ़ाया गया है:
      • जिला आयोग -1 करोड़ रुपए तक।
      • राज्य आयोग- 1 करोड़ रुपए से 10 करोड़ रुपए तक।
      • राष्ट्रीय आयोग -10 करोड़ रुपए से अधिक।
    • दाखिल करने के 21 दिनों के बाद शिकायत की स्‍वत: स्वीकार्यता।
    • उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने आदेशों को लागू कराने का अधिकार।
    • दूसरे चरण के बाद केवल कानून के सवालों पर अपील का अधिकार।
    • उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में आसानी:
      • निवास स्थान से फाइलिंग की सुविधा।
      • ई- फाइलिंग।
      • सुनवाई के लिये वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा।
  • मध्यस्थता
    • एक वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र।
    • उपभोक्ता फोरम द्वारा मध्यस्थता, जहाँ भी शुरु में ही समाधान की गुंजाइश हो और दोनों पक्ष इसके लिये सहमत हों।
    • मध्यस्थता केंद्रों को उपभोक्ता फोरम से जोड़ा जाएगा।
    • मध्यस्थता के माध्यम से होने वाले समाधान में अपील की सुविधा नहीं।
  • उत्पाद की ज़िम्मेदारी
    • यदि किसी उत्‍पाद या सेवा में दोष पाया जाता है तो उत्पाद निर्माता/विक्रेता या सेवा प्रदाता को क्षतिपूर्ति के लिये ज़िम्मेदार माना जाएगा।
    • दोषपूर्ण उत्‍पाद का आधार:
      • निर्माण में खराबी।
      • डिज़ाइन में दोष।
      • वास्‍तविक उत्‍पाद का उत्‍पाद की घोषित विशेषताओं से अलग होना।
      • प्रदान की जाने वाली सेवाओं का दोषपूर्ण होना।

विधेयक से उपभोक्ताओं को लाभ

  • वर्तमान में न्याय पाने के लिये उपभोक्‍ताओं के पास एक ही विकल्‍प है, जिसमें काफी समय लगता है। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के माध्यम से विधेयक में त्‍वरित न्‍याय की व्‍यवस्‍था की गई है।
  • भ्रामक विज्ञापनों तथा उत्पादों में मिलावट की रोकथाम के लिये कठोर सज़ा का प्रावधान।
  • दोषपूर्ण उत्पादों या सेवाओं को रोकने के लिये निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं पर ज़िम्मेदारी का प्रावधान:
    • उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में आसानी और प्रक्रिया का सरलीकरण।
    • मध्यस्थता के माध्यम से मामलों के शीघ्र निपटान की गुंजाइश।
    • नए युग के उपभोक्ता मुद्दों- ई कॉमर्स और सीधी बिक्री के लिये नियमों का प्रावधान।

स्रोत: PIB