आधार मामला अब संवैधानिक पीठ के हवाले | 31 Oct 2017

चर्चा में क्यों

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला किया है कि कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों के लिये आधार की अनिवार्यता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार के लिये एक संविधान पीठ गठित की जाएगी।

गौरतलब है कि हाल ही में आधार की वैधानिकता को चुनौती देने और इसे निजता के अधिकार का हनन बताने वाली याचिकाओं पर नौ-सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया था।

आधार की पृष्ठभूमि

  • आधार का आरम्भ इस उद्देश्य से किया गया था कि प्रत्येक भारतीय को एक विशेष पहचान संख्या दे दी जाए, जिसकी मदद से सरकार द्वारा प्रदान किये जाने वाले लाभों का एक समान वितरण सुनिश्चित किया जा सके।
  • इस योजना के तहत भारत सरकार एक ऐसा पहचान पत्र देती है जिसमें 12 अंकों का एक विशेष नंबर दिया जाता है। अब किसी व्यक्ति के बारे में अधिकांश बातें 12 अंकों वाले एक कार्ड के ज़रिये प्राप्त की सकती हैं। जिसमें उसका नाम, पता, उम्र, जन्म-तिथि, उसके उँगलियों के निशान यानी फिंगरप्रिंट और आँखों की स्कैनिंग तक शामिल है।
  • विदित हो कि आधार योजना को यूपीए सरकार ने पहले बिना किसी कानूनी सरंक्षण के ही जारी कर दिया था। हालाँकि बाद में सरकार को अपनी गलती का एहसास हुआ और वर्ष 2010 के अंत में ‘आधार’ को कानूनी आधार देने के उद्देश्य से एक साधारण विधेयक लाया गया।
  • साधारण विधेयक लाने का अर्थ यही था कि राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों में पारित हो जाने के पश्चात् ही यह कानून का रूप ले सकता था। दोनों सदनों में आधार को लेकर खूब हो-हल्ला मचा, आधार और निजता के अधिकार को लेकर एक व्यापक बहस छिड़ गई।
  • संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में आधार को लेकर अहम् चिंताएँ व्यक्त कीं और सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर की गई। तब सुप्रीम कोर्ट द्वारा आधार को अनिवार्य किये जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और कहा कि सरकार की कुछ ही योजनाओं में आधार की अनिवार्यता बनी रहनी चाहिये।
  • हालाँकि वर्ष 2014 में सत्ता में आते ही एनडीए सरकार ने आधार को हर मर्ज़ की दवा समझ लिया और धीरे-धीरे सभी योजनाओं में आधार अनिवार्य करने की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया। हालाँकि इस संबंध में न्यायालय के आदेशों का जमकर उल्लंघन भी हुआ। बाद में आधार को संसद में धन-विधेयक के तौर पर पेश कर दिया गया।

क्या है वर्तमान स्थिति ? 

  • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सरकार और उसकी एजेंसियाँ समाज कल्याण योजनाओं के लिये  आधार कार्ड अनिवार्य नहीं कर सकती। शीर्ष अदालत ने हालाँकि यह भी स्पष्ट किया कि गैर कल्याणकारी कार्यों, जैसे बैंक खाता खुलवाने में आधार कार्ड मांगने से मना नहीं किया जा सकता। 
  • आधार की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका कई साल से सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। तब से अदालत ने समय-समय पर कुछ अंतरिम निर्णय सुनाए हैं, पर कभी भी कल्याणकारी योजनाओं में आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने की इज़ाज़त नहीं दी है।

निष्कर्ष

गौरतलब है कि आधार एक कल्याणकारी उद्देश्यों वाली योजना है, जिसकी सहायता से “डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर” जैसे उपक्रमों को आसान बनाया जा सकता है, भ्रष्टाचार में कमी लाई जा सकती है और अपराधियों को कानून की जद में लेना आसान बनाया जा सकता है, लेकिन इससे जुड़ी हुई तमाम चिंताओं को नज़रन्दाज करना उचित नहीं कहा जा सकता है। इन परिस्थितियों में संविधान पीठ द्वारा मामले की सुनवाई एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम है।