भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) | 23 May 2022

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI), प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002

मेन्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) के मुद्दे और उपलब्धियाँ, विभिन्न प्रकार के सांविधिक निकाय

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वित्त मंत्री ने भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) के 13वें वार्षिक दिवस समारोह में भाग लिया।

  • इस अवसर पर वित्त मंत्री ने कोलकाता में क्षेत्रीय कार्यालय का उद्घाटन किया और CCI के लिये एक उन्नत वेबसाइट का शुभारंभ भी किया।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI):

  • परिचय:  
  • संरंचना: 
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के अनुसार, आयोग में एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
    • आयोग एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय (Quasi-Judicial Body) है जो सांविधिक प्राधिकरणों को परामर्श देने के साथ-साथ अन्य मामलों को भी संबोधित करता है। इसके अध्यक्ष और अन्य सदस्य पूर्णकालिक होते हैं।
  • सदस्यों की पात्रता: 
    • इसके अध्यक्ष और सदस्य बनने के लिये ऐसा व्यक्ति पात्र होगा जो सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा के साथ-साथ उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो या उच्च न्यायालय के  न्यायाधीश के पद पर नियुक्त होने की योग्यता रखता हो या जिसके पास अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, अर्थशास्त्र, कारोबार, वाणिज्य, विधि, वित्त, लेखा कार्य, प्रबंधन, उद्योग, लोक कार्य या प्रतिस्पर्द्धा संबंधी विषयों में कम-से-कम पंद्रह वर्ष का विशेष ज्ञान एवं वृत्तिक अनुभव हो और केंद्र सरकार की राय में आयोग के लिये उपयोगी हो।      

प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002:

  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम वर्ष 2002 में पारित किया गया था और प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2007 द्वारा इसे संशोधित किया गया। यह आधुनिक प्रतिस्पर्द्धा विधानों के दर्शन का अनुसरण करता है।
    • यह अधिनियम प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी करारों और उद्यमों द्वारा अपनी प्रधान स्थिति के दुरुपयोग का प्रतिषेध करता है तथा समुच्चयों [अर्जन, नियंत्रण, 'विलय एवं अधिग्रहण' (M&A)] का विनियमन करता है, क्योंकि इनकी वजह से भारत में प्रतिस्पर्द्धा पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है या इसकी संभावना बनी रहती है।
    • संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग और प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (Competition Appellate Tribunal- COMPAT) की स्थापना की गई
    • वर्ष 2017 में सरकार ने प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) से प्रतिस्थापित कर दिया।   

CCI की भूमिका और कार्य:

  • प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले अभ्यासों को समाप्त करना, प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और उसे जारी रखना, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना तथा भारतीय बाज़ारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
  • किसी विधान के तहत स्थापित किसी सांविधिक प्राधिकरण से प्राप्त संदर्भ के लिये प्रतिस्पर्द्धा संबंधी विषयों पर परामर्श देना एवं प्रतिस्पर्द्धा की भावना को संपोषित करना, सार्वजनिक जागरूकता पैदा करना एवं प्रतिस्पर्द्धा के विषयों पर प्रशिक्षण प्रदान करना।
  •  उपभोक्ता कल्याण: उपभोक्ताओं के लाभ और कल्याण के लिये बाज़ारों को सक्षम बनाना।
  • अर्थव्यवस्था के तीव्र तथा समावेशी विकास एवं वृद्धि के लिये देश की आर्थिक गतिविधियों हेतु निष्पक्ष और स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना
  • आर्थिक संसाधनों के कुशलतम उपयोग को कार्यान्वित करने के उद्देश्य से प्रतिस्पर्द्धा नीतियों को लागू करना।
  • प्रतिस्पर्द्धा के पक्ष-समर्थन को प्रभावी रूप से आगे बढ़ाना और सभी हितधारकों के बीच प्रतिस्पर्द्धा के लाभों को लेकर सूचना का प्रसार करना ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा की संस्कृति का विकास तथा संपोषण किया जा सके। 

CCI की अब तक की उपलब्धियांँ: 

  • आयोग ने 1,200 से अधिक स्पर्द्धारोधी  मामलों का निर्णय किया है, यानी स्पर्द्धारोधी मामलों में केस निपटान दर 89% है।
  • इसने अब तक 900 से अधिक विलय और अधिग्रहण के मामलों की समीक्षा की है, उनमें से अधिकांश को 30 दिनों के रिकॉर्ड औसत समय के भीतर मंजूँरी दी है।
  • आयोग ने संयोजनों/लेन-देनों पर स्वचालित अनुमोदन के लिये 'ग्रीन चैनल' प्रावधान जैसे कई नवाचार भी किये हैं तथा ऐसे 50 से अधिक लेन-देन को मंजूँरी दी है। 

चुनौतियांँ:

  • डिजिटलीकरण से उत्पन्न चुनौतियांँ: चूंँकि प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम (2002) के समय हमारे पास एक मज़बूत डिजिटल अर्थव्यवस्था नहीं थी, अतः CCI को नए डिजिटल युग की तकनीकी बारीकियों को समझना चाहिये।
  • नई बाज़ार परिभाषा की आवश्यकता: भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग को अब बाज़ार की अपनी परिभाषा को आधुनिक बनाने की आवश्यकता है। चूंँकि डिजिटल स्पेस की कोई सीमा नहीं है, अतः प्रासंगिक बाज़ारों को परिभाषित करना विश्व भर के नियामकों के लिये एक कठिन काम रहा है।
  • कार्टेलाइज़ेशन से खतरा: कार्टेलाइज़ेशन से खतरे की संभावना है। चूंँकि महामारी के कारण वस्तुओं की वैश्विक कमी देखी गई है और पूर्वी यूरोप में युद्ध के परिणामस्वरूप आपूर्ति शृंखला पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 
    • इनकी जांँच कर यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कीमतों में वृद्धि और आपूर्ति पक्ष में उतार-चढ़ाव के पीछे कोई एकाधिकार/द्वैतवादी प्रवृत्ति तो नहीं है।

आगे की राह

  • वेब 3.0, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ब्लॉकचेन और अन्य तकनीकी उन्नयनों के साथ ही डेटा सुरक्षा एवं गोपनीयता, प्लेटफॉर्म तटस्थता, डीप डिस्काउंटिंग, किलर एक्विज़िशन आदि जैसे मुद्दों का उद्भव हुआ है जिसके परिणामस्वरूप भारत के लिये एक मज़बूत प्रतिस्पर्द्धा कानून-जो प्रौद्योगिकी की वर्तमान दुनिया में कानूनी आवश्यकताओं को पूरा कर सके, अपरिहार्य हो गया है। इस तरह का कानून डिजिटल बाज़ार के अभिकर्त्ताओंओ को व्यावहारिक स्तर पर सहभागिता में सक्षम बनाएगा।
    • CCI को नए डिजिटल युग की तकनीकी बारीकियों के साथ यह समझने की आवश्यकता है कि उपभोक्ताओं के लाभ के लिये इन बाज़ारों का उचित, प्रभावी और पारदर्शी तरीके से उपयोग किया जा रहा है या नहीं।  
  • FAQS एक स्थायी समर्थन साधन बन सकते हैं जिसका प्रयोग “उपयोग के लिये तैयार आधार (Ready-to-Use Basis)” के रूप में सूचना प्रसारित करने के लिये किया जा सकता है।
    • यह एक सक्रिय और प्रगतिशील नियामक के रूप के रूप में CCI की स्थिति को मज़बूत करेगा तथा इस तरह के मार्गदर्शन से बाज़ार सहभागियों को निवारक उपाय प्रदान करने में मदद मिलेगी।

स्रोत: पी.आई.बी.