GM सरसों की व्यावसायिक खेती | 28 Oct 2022

प्रिलिम्स के लिये:

जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (GEAC), आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों, धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (DMH-11), सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स।

मेन्स के लिये:

GM फसलें और उनका महत्त्व। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत कार्य करने वाली आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों के व्यावसायिक रिलीज़ से पहले बीज उत्पादन को मंज़ूरी दी है।

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें: 

  • परिचय: 
    • GM फसलों के जीन कृत्रिम रूप से संशोधित किये जाते हैं, आमतौर इसमें किसी अन्य फसल  से आनुवंशिक गुणों जैसे- उपज में वृद्धि, खरपतवार के प्रति सहिष्णुता, रोग या सूखे से  प्रतिरोध, या बेहतर पोषण मूल्य का समामेलन किया जा सके।
    • GM चावल की सबसे प्रसिद्ध किस्म गोल्डन राइस है।
      • गोल्डन राइस के एक पौधे में डैफोडील्स और मक्का के जीन का उपयोग किया गया है जिसके परिणामस्वरूप इसमें विटामिन A की मात्रा समृद्ध हो जाती है।
    • इससे पहले, भारत ने केवल एक GM फसल, BT कपास की व्यावसायिक खेती को मंज़ूरी दी थी, लेकिन GEAC ने व्यावसायिक उपयोग के लिये GM सरसों की सिफारिश की है। 
  • लाभ:  
    • बढ़ती उपज: आनुवंशिक रूप से संशोधित बीज पौधे की उपज में वृद्धि देखी गई है। इसका मतलब है कि उतनी भूमि के साथ ही किसान अब काफी अधिक फसल पैदा कर सकता है।
    • विशिष्ट जलवायु में लाभकारी: विशिष्ट परिस्थितियों या जलवायु के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों का उत्पादन भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, सूखा प्रतिरोधी बीजों का उपयोग कम पानी वाले स्थानों पर किया जा सकता है ताकि फसल विकास सुनिश्चित किया जा सके। 
  • हानि: 
    • बीज लागत में जटिलता: संशोधित बीज बनाने और बेचने के लिये केवल कुछ कंपनियांँ ही प्रभारी हैं। एकाधिकार की स्थिति में बीज खरीदने वालों के पास केवल कुछ ही विकल्प उपलब्ध हैं।
    • बीजों का प्रयोग दोबारा नहीं किया जा सकता: आनुवंशिक रूप से संशोधित बीज डिज़ाइन द्वारा व्यवहार्य बीज नहीं बनाते हैं। इसका मतलब यह है कि हर बार जब आप एक नई फसल बोना चाहते हैं, तो आपको नए बीजों का प्रयोग करना होगा।
    • पर्यावरणीय चिंता: वे प्रजातियों की विविधता को कम कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, कीट-प्रतिरोधी पौधे उन कीड़ों को नुकसान पहुंँचा सकते हैं जो उनका इच्छित लक्ष्य नहीं हैं और उस विशेष कीट प्रजाति को नष्ट कर सकते हैं।
    • नैतिक चिंता: GM फसल प्रजातियों के बीच मिश्रण करके प्राकृतिक जीवों के आंतरिक मूल्यों का उल्लंघन है।
    • पौधों में जानवरों के जीन के मिश्रण की भी चिंताएंँ हैं।.  

GM सरसों:

  • परिचय: 
    • धारा सरसों हाइब्रिड (DMH-11) एक स्वदेशी रूप से विकसित ट्रांसजेनिक सरसों है। यह हर्बिसाइड टॉलरेंट (HT) सरसों का आनुवंशिक तौर पर संशोधित रूप है।
    • इसमें दो एलियन जीन ('बार्नेज' और 'बारस्टार') होते हैं जो बैसिलस एमाइलोलिफेशियन्स नामक मिट्टी के जीवाणु से आइसोलेट होते हैं जो उच्च उपज वाली वाणिज्यिक सरसों की संकर प्रजाति विकसित करने में सहायक है।
    • इसे दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (CGMCP) द्वारा विकसित किया गया है।
    • 2017 में GEAC ने HT सरसों की फसल के वाणिज्यिक अनुमोदन की सिफारिश की थी। हालांँकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी और केंद्र सरकार से इस संदर्भ में जनता की राय लेने को कहा। 
  • महत्त्व: भारत प्रतिवर्ष केवल 8.5-9 मिलियन टन (mt) खाद्य तेल का उत्पादन करता है जबकि यह 14-14.5 मिलियन टन आयात करता है जिसमें 31 मार्च, 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में 18.99 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा व्यय किया गया। इसके अलावा जीएम सरसों भारत को तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने और विदेशी मुद्रा बचाने में सहायक होगी।
    • भारत में सरसों की किस्मों का आनुवंशिक आधार संकीर्ण है। 'बार्नेज'-बारस्टार प्रणाली पूर्वी यूरोपीय मूल की सरसों जैसे 'हीरा' और 'डोंस्काजा' सहित सरसों की किस्मों की एक विस्तृत शृंखला का मार्ग प्रशस्त करती है। 

भारत में अन्य GM फसलों की स्थिति:

  • BT कपास:
    • अतीत में कपास की फसलों को तबाह करने वाले बॉलवर्म के हमले से निपटने के लिये BT कपास की शुरुआत की गई थी, जिसे महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी (महिको) और अमेरिकी बीज कंपनी मोनसेंटो द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया था।
    • 2002 में GEAC ने आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे 6 राज्यों में व्यावसायिक खेती के लिये BT कपास को मंज़ूरी दी। यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि BT कपास जीईएसी द्वारा अनुमोदित पहली और एकमात्र ट्रांसजेनिक फसल है।
  • BT बैंगन:
    • माहिको ने धारवाड़ कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय और तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के साथ संयुक्त रूप से BT बैंगन विकसित किया।
    • भले ही GEAC ने वर्ष  2007 में BT बैंगन की व्यावसायिक रिलीज़ की सिफारिश की थी, लेकिन वर्ष  2010 में इस पहल को रोक दिया गया था।

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC): 

  • यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों और पुनः संयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग से जुड़ी गतिविधियों के मूल्यांकन के लिये ज़िम्मेदार है।
  • समिति प्रायोगिक क्षेत्र परीक्षणों सहित पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उत्पादों के निर्गमन से संबंधित प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिये भी ज़िम्मेदार है।
  • GEAC की अध्यक्षता MoEF&CC के विशेष सचिव/अतिरिक्त सचिव करते हैं और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के एक प्रतिनिधि द्वारा सह-अध्यक्षता की जाती है।

आगे की राह

  • सुरक्षा प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिये कठोर निगरानी की आवश्यकता है, और अवैध GM फसलों के प्रसार को रोकने के लिये प्रवर्तन को गंभीरता से लिया जाना चाहिये।
  • इसके अलावा पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन स्वतंत्र पर्यावरणविदों द्वारा किया जाना चाहिये, क्योंकि किसान पारिस्थितिकी और स्वास्थ्य पर GM फसलों के दीर्घकालिक प्रभाव का आकलन नहीं कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

Q. पीड़को को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ है जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपो का निर्माण किया गया है?

1- सूखा सहन करने के लिये उन्हे सक्षम बनाना
2- उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना
3- अंतरिक्ष यानों और स्टेशनों में उन्हें उगने और प्रकाश-संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना
4- उनकी शेत्फ लाइफ बढ़ाना

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: C 

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें (जीएम फसलें या बायोटेक फसलें) कृषि में उपयोग किये जाने वाले पौधे हैं, जिनके डीएनए को आनुवंशिक इंजीनियरिंग विधियों का उपयोग करके संशोधित किया गया है। अधिकतर मामलों में इसका उद्देश्य पौधे में एक नया लक्षण पैदा करना है जो प्रजातियों में स्वाभाविक रूप से नहीं होता है। खाद्य फसलों में लक्षणों के उदाहरणों में कुछ कीटों, रोगों, पर्यावरणीय परिस्थितियों, खराब होने में कमी, रासायनिक उपचारों के प्रतिरोध (जैसे- जड़ी-बूटियों के प्रतिरोध) या फसल के पोषक तत्त्व प्रोफाइल में सुधार शामिल हैं।
  •  जीएम फसल प्रौद्योगिकी के कुछ संभावित अनुप्रयोग हैं:
    • पोषण वृद्धि - उच्च विटामिन सामग्री; अधिक स्वस्थ फैटी एसिड प्रोफाइल; अत: 2 सही है।
    • तनाव सहनशीलता - उच्च और निम्न तापमान, लवणता और सूखे के प्रति सहनशीलता; अत: 1 सही है।
    • ऐसी कोई संभावना नहीं है जो जीएम फसलों को अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष स्टेशनों में बढ़ने और प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम बनाती हो। अत: 3 सही नहीं है।
    • वैज्ञानिक कुछ आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें बनाने में सक्षम हैं जो सामान्य रूप से  एक महीने तक ताज़ा रहती हैं। अत: 4 सही है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

प्रश्न. बोल्गार्ड I और बोल्गार्ड II प्रौद्योगिकियों का उल्लेख किसके संदर्भ में किया गया है?

(a) फसल पौधों का क्लोनल प्रवर्धन
(b) आनुवंशिक रूप से संशोधित फसली पौधों का विकास
(c) पादप वृद्धिकर पदार्थों का उत्पादन
(d) जैव उर्वरकों का उत्पादन

उत्तर:b

  • बोल्गार्ड I बीटी कपास (एकल-जीन प्रौद्योगिकी) 2002 में भारत में व्यावसायीकरण के लिये अनुमोदित पहली बायोटेक फसल प्रौद्योगिकी है, इसके बाद वर्ष 2006 के मध्य में बोल्गार्ड II- डबल-जीन प्रौद्योगिकी, जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमोदन समिति, बायोटेक के लिये भारतीय नियामक निकाय द्वारा अनुमोदित फसलें है।
  • बोल्गार्ड I कपास एक कीट-प्रतिरोधी ट्रांसजेनिक फसल है जिसे बोलवर्म से निपटने के लिये डिज़ाइन किया गया है। यह जीवाणु बैसिलस थुरिंगिनेसिस से एक माइक्रोबियल प्रोटीन को व्यक्त करने के लिये कपास जीनोम को आनुवंशिक रूप से बदलकर बनाया गया था।
  • बोल्गार्ड II तकनीक में एक बेहतर डबल-जीन तकनीक शामिल है - cry1ac और cry2ab, जो बोलवर्म तथा स्पोडोप्टेरा कैटरपिलर से सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे बेहतर बोलवर्म प्रतिधारण, अधिकतम उपज, कम कीटनाशकों की लागत एवं कीट प्रतिरोध के खिलाफ सुरक्षा मिलती है।
  • बोल्गार्ड I और बोल्गार्ड II दोनों कीट-संरक्षित कपास दुनिया भर में व्यापक रूप से बोलवर्म को नियंत्रित करने के पर्यावरण के अनुकूल तरीके के रूप में अपनाए जाते हैं। अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।
  • प्रश्न. किसानों के जीवन स्तर को सुधारने में जैव प्रौद्योगिकी कैसे मदद कर सकती है? (मेन्स-2019)

 स्रोत: द हिंदू