कृषि-खाद्य प्रणालियों में संलग्न महिलाओं पर जलवायु का प्रभाव | 23 Nov 2023

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय महिला किसान दिवस, लॉस एंड डैमेज फंड, जलवायु परिवर्तन

मेन्स के लिये:

महिला किसानों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, कृषि, रोज़गार और उत्पादन, खाद्य सुरक्षा में महिलाओं की भूमिका

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

फ्रंटियर्स इन सस्टेनेबल फूड सिस्टम्स जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में पूरे विश्व में कृषि-खाद्य प्रणालियों में संग्लग्न महिलाओं पर जलवायु संकट के असमान प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है।

  • यह शोध कृषि क्षेत्र में महिलाओं की असुरक्षा पर प्रकाश डालते हुए उन हॉटस्पॉट की पहचान करता है जहाँ जलवायु जोखिम की सबसे गंभीर स्थिति है।

नोट:

  • कृषि-खाद्य प्रणालियाँ व्यक्तियों, गतिविधियों और संसाधनों का नेटवर्क हैं जो खाद्यान्न का उत्पादन, प्रसंस्करण, वितरण तथा उपभोग करते हैं।
    • इनमें किसान, व्यापारी, प्रोसेसर, खुदरा विक्रेता, उपभोक्ता आदि शामिल हैं, जो कि खाद्य मूल्य शृंखला में शामिल हैं।

अध्ययन के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • जलवायु परिवर्तन के खतरों की वैश्विक रैंकिंग:
    • अध्ययन में कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं द्वारा सामना किये जाने वाले जलवायु परिवर्तन के खतरे के आधार पर 87 देशों को रैंक दिया गया है।
      •  भारत 12वें स्थान पर है, अन्य एशियाई देशों बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं नेपाल को भी गंभीर जोखिम का सामना करना पड़ रहा है।
  • उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान:
    • कृषि-खाद्य प्रणालियाँ, जिनमें उत्पादन, कटाई के बाद देख-रेख और वितरण शामिल है, विशेष रूप से जोखिम में हैं।    
    • अफ्रीकी और एशियाई क्षेत्रों में मध्य, पूर्व व दक्षिणी अफ्रीका तथा पश्चिम एवं दक्षिण एशिया अत्यधिक भेद्यता वाले क्षेत्रों के रूप में उभरे हैं।
      • निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में रहने वाले व्यक्तियों को अधिक जोखिम है।
  • जलवायु-कृषि-लिंग असमानता हॉटस्पॉट:
    • अनुसंधान ने क्षेत्रों को 'जलवायु-कृषि-लिंग असमानता हॉटस्पॉट' के रूप में मैप करने के लिये जलवायु, लिंग और कृषि-खाद्य प्रणालियों पर संयुक्त अंतर्दृष्टि प्रदान की।
    • अध्ययन ने इन संकेतकों के आधार पर प्रत्येक देश के जोखिम की गणना की और प्रत्येक LMIC देश के लिये रंग-कोडित मानचित्र पर स्कोर अंकित किया।
    • ये हॉटस्पॉट मानचित्र लिंग-उत्तरदायी जलवायु कार्रवाई के संबंध में मार्गदर्शन कर सकते हैं, विशेष रूप से जलवायु सम्मेलन (COP 28) और जलवायु निवेश जैसे आगामी जलवायु सम्मेलनों में।
      • यह लॉस एंड डैमेज फंड और अन्य जलवायु निवेशों के संबंध में जारी वार्ता में विशेष रूप से प्रासंगिक है।

  • नीति निर्माण और जलवायु कार्रवाई:
    • यह अध्ययन कृषि में महिलाओं पर खतरों के असमान प्रभाव को दर्शाते हुए नीति निर्माण के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश बिंदु के रूप में कार्य करता है।
    • पिछले अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी प्राकृतिक आपदाओं के बाद महिलाओं और लड़कियों के भूखे रहने की संभावना अधिक है।
      • भारत में पुरुषों की तुलना में दोगुनी संख्या में महिलाओं ने सूखे के कारण कम खाना खाने की बात कही।
    • हॉटस्पॉट मानचित्र निर्णय निर्माताओं और निवेशकों को उन क्षेत्रों में वित्त और निवेश को लक्षित करने में सहायता कर सकते हैं, जहाँ महिलाएँ जलवायु परिवर्तन के जोखिमों से सबसे ज़्यादा प्रभावित होती हैं।

कृषि-खाद्य प्रणालियों में संलग्न महिलाओं को जलवायु परिवर्तन कैसे प्रभावित करता है?

  • खाद्य सुरक्षा और आय में कमी:
    • जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादन को बाधित करता है, फसल की पैदावार और गुणवत्ता को कम करता है तथा कीटों और बीमारियों का खतरा बढ़ाता है।
      • इससे महिला किसानों की खाद्य सुरक्षा और आय प्रभावित होती है, जो प्राय अपनी आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर रहती हैं।
      • महिला किसानों को बाज़ार, ऋण, इनपुट और विस्तार सेवाओं तक पहुँचने में भी अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे जलवायु संकट एवं तनाव से निपटने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
  • बढ़ा हुआ कार्यभार:
    • जलवायु परिवर्तन से जल, श्रम और प्राकृतिक संसाधनों की मांग बढ़ जाती है, जिससे महिला किसानों पर कार्य का बोझ बढ़ जाता है, उन पर अक्सर जल, ईंधन हेतु लकड़ी और चारा इकट्ठा करने के साथ-साथ घरेलू एवं देखभाल कर्त्तव्यों का पालन करने की ज़िम्मेदारी होती है।
    • महिला किसानों को भी बदलते मौसम और वर्षा पैटर्न के अनुरूप ढलना पड़ता है, जिसके लिये उन्हें नई फसलें, तकनीकें या प्रथाएँ अपनाने या अन्य क्षेत्रों में पलायन करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • स्वास्थ्य और खुशहाली में कमी:
    • जलवायु परिवर्तन महिला किसानों के स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित करता है, जो हीट स्ट्रोक, जलजनित एवं वेक्टर जनित बीमारियों, कुपोषण व  मानसिक तनाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
      • महिला किसानों के पास स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता और स्वच्छता सुविधाओं तक भी कम पहुँच है, जिससे जलवायु से संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
      • जलवायु परिवर्तन लिंग आधारित हिंसा को भी बढ़ाता है, विशेषकर संघर्ष और आपदा स्थितियों में।
  • सीमित भागीदारी तथा सशक्तीकरण:
    • जलवायु परिवर्तन महिला किसानों की भागीदारी तथा सशक्तीकरण प्रयासों को प्रभावित करता है, जिन्हें अमूमन कृषि तथा जलवायु परिवर्तन से संबंधित निर्णय लेने की प्रक्रियाओं एवं संस्थानों से बाहर रखा जाता है
    • महिला किसानों की पहुँच सूचना, शिक्षा तथा प्रशिक्षण तक कम है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी जागरूकता एवं अनुकूलन की क्षमता सीमित हो जाती है।
      • महिला किसानों को सामाजिक एवं सांस्कृतिक मानदंडों व बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है जो उनकी गतिशीलता, स्वायत्तता तथा अधिकारों को प्रतिबंधित करते हैं।

कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं से संबंधित सरकारी पहलें क्या हैं?

आगे की राह 

  • भूमि, जल, ऋण, इनपुट, बाज़ार, विस्तार तथा सामाजिक सुरक्षा जैसे संसाधनों, सेवाओं एवं अवसरों तक महिलाओं की पहुँच व नियंत्रण बढ़ाना।
  • कृषक समूह, सहकारी समिति, बैठक तथा नीति प्लेटफॉर्म जैसे निर्णय लेने एवं शासन संरचनाओं में महिलाओं की भागीदारी व नेतृत्व को बढ़ावा देना।
  • जलवायु-स्मार्ट कृषि, आपदा जोखिम में कमी, जलवायु सूचना एवं प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों पर महिलाओं के ज्ञान तथा कौशल को सशक्त करना।
  • सामाजिक व सांस्कृतिक मानदंडों, कानूनी एवं संस्थागत बाधाओं व लिंग आधारित हिंसा जैसे लैंगिक असमानता के अंतर्निहित कारणों का संधान कर महिला सशक्तीकरण एवं अभिकरण का समर्थन करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. उन विभिन्न आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक बलों पर चर्चा कीजिये जिनसे भारत में कृषि में महिलाकरण को बढ़ावा मिल रहा है। (2014)