भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाम केंद्रीय जाँच ब्यूरो | 02 Apr 2022

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का मुख्य न्यायाधीश (CJI), केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI), दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय सतर्कता आयोग एवं लोकपाल।

मेन्स के लिये:

CBI से संबद्ध चुनौतियाँ, कानून प्रवर्तन में सुधार, पुलिस सुधार।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एन.वी. रमना ने कहा कि केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) गंभीर सार्वजनिक जाँच के दायरे में आ गया है। इसके कार्यों एवं निष्क्रियता ने इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

  • कानून प्रवर्तन एजेंसियों में सुधार के प्रयास के रूप में मुख्य न्यायाधीश ने एक अम्ब्रेला, स्वतंत्र एवं स्वायत्त जाँच एजेंसी का प्रस्ताव रखा है।

केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI): 

  • केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) की स्थापना वर्ष 1963 में गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव द्वारा की गई थी।
    • अब CBI कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के प्रशासनिक नियंत्रण में आती है।
  • CBI को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 से जाँच संबंधी शक्ति प्राप्त होती है।
  • भ्रष्टाचार की रोकथाम पर संथानम समिति (1962-1964) द्वारा CBI की स्थापना की सिफारिश की गई थी।
  • CBI केंद्र सरकार की प्रमुख जाँच एजेंसी है।
    • यह केंद्रीय सतर्कता आयोग एवं लोकपाल को भी सहायता प्रदान करती है।
    • यह भारत में नोडल पुलिस एजेंसी भी है, जो इंटरपोल सदस्य देशों की ओर से जाँच का समन्वय करती है।

CBI से संबद्ध चुनौतियाँ:

  • राजनीतिक हस्तक्षेप: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने CBI के कार्यकलापों में अत्यधिक राजनीतिक हस्तक्षेप किये जाने के कारण इसकी आलोचना की थी और इसे "अपने स्वामी की आवाज़ में बोलने वाला पिंजराबंद तोता" कहा था।
    • इसका दुरुपयोग प्रायः निवर्तमान सरकार द्वारा अपने गलत कार्यों को छुपाने, गठबंधन के सहयोगियों पर दबाव बनाने और राजनीतिक विरोधियों के उत्पीड़न के लिये किया जाता रहा है।
  • अतिव्यापी एजेंसियाँ: मौजूदा समय में एक ही घटना की कई एजेंसियों द्वारा जाँच की जाती है, जिससे अक्सर सबूत कमज़ोर पड़ जाते हैं, बयानों में विरोधाभास होता है और बेगुनाहों को लंबे समय तक जेल में रखा जाता है।
  • कर्मियों की भारी कमी: इसका एक मुख्य कारण सीबीआई के कार्यबल का सरकार द्वारा कुप्रबंधन है, जो अक्षम और बेवजह पक्षपाती भर्ती नीतियों के माध्यम से होता है, जिसका इस्तेमाल इच्छित अधिकारियों को लाने के लिये किया जाता है, जो कि संगठन की कार्य क्षमता को प्रभावित करता है।
  • सीमित शक्तियाँ: जाँच हेतु CBI के सदस्यों की शक्तियाँ और अधिकार क्षेत्र राज्य सरकार की सहमति के अधीन हैं, इस प्रकार CBI द्वारा जाँच की सीमा को सीमित किया जाता है।
  • प्रतिबंधित पहुँच: केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव और उससे उच्च स्तर के कर्मचारियों पर जाँच या जाँच करने के लिये केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति नौकरशाही के उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार का मुकाबला करने में एक बड़ी बाधा है।

कानून प्रवर्तन को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है?

  • स्वतंत्र अंब्रेला इंस्टीट्यूशन का निर्माण: CJI ने CBI, प्रवर्तन निदेशालय और गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय जैसी विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों को एक छत के नीचे लाने का प्रस्ताव रखा है।
    • उसके संगठन का नेतृत्त्व किसी एक समिति द्वारा नियुक्त स्वतंत्र और निष्पक्ष प्राधिकरण द्वारा किया जाना चाहिये, जिसके द्वारा CBI निदेशक को नियुक्त किया जाना चाहिये।
    • CJI ने कहा कि पूर्ण स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये अभियोजन और जाँच हेतु अलग एवं स्वायत्त विंग रखना एक अतिरिक्त अंतर्निहित सुरक्षा है।
    • नियुक्ति समिति द्वारा संस्थान के प्रदर्शन की वार्षिक लेखा परीक्षा के लिये प्रस्तावित कानून में एक उचित जाँच और संतुलन का प्रावधान होगा।
  • राज्यों और केंद्र के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध: राज्य सूची के तहत पुलिस तथा सार्वजनिक व्यवस्था एवं जाँच का बोझ मुख्य रूप से राज्य पुलिस पर है।
    • जाँच के क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिये राज्य एजेंसियों को मज़बूत किया जाना चाहिये।
    • अम्ब्रेला जाँच निकाय हेतु प्रस्तावित केंद्रीय कानून को राज्यों द्वारा उपयुक्त रूप से दोहराया जा सकता है।
  • लैंगिक समानता लाना: आपराधिक न्याय प्रणाली में महिलाओं के पर्याप्त प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है।
  • सामाजिक वैधता समय की मांग है ताकि सामाजिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास को पुनः प्राप्त किया जा सके एवं इसे हासिल करने के लिये पहला कदम राजनीतिक कार्यपालिका के साथ गठजोड़ को तोड़ना है।
  • आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार: लंबे समय से लंबित पुलिस सुधारों को लागू करने और लंबित मामलों से निपटने की आवश्यकता है।

सोत: द हिंदू