नागरिकता संशोधन विधेयक पर नहीं बनी सहमति | 29 Nov 2018

चर्चा में क्यों?


हाल ही में नागरिकता संशोधन विधेयक पर संयुक्त संसदीय बैठक (Joint Parliamentry Committee) का आयोजन किया। उल्लेखनीय है कि इस बैठक के दौरान नागरिकता (citizenship) संशोधन संबंधी विधेयक पर कोई सहमति नहीं बन सकी।

  • नागरिकता संशोधन विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति बैठक में यह कहते हुए सहमति देने से इनकार कर दिया गया कि भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है इसलिये भारत में धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं प्रदान की जानी चाहिये।

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016

  • नागरिकता संशोधन अधिनियम का प्रस्ताव नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिये पारित किया गया था।
  • नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 में पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान) से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अल्पसंख्यकों (मुस्लिम शामिल नहीं) को नागरिकता प्रदान करने की बात कही गई है, चाहे उनके पास ज़रूरी दस्तावेज़ हों या नहीं।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार नैसर्गिक नागरिकता के लिये अप्रवासी को तभी आवेदन करने की अनुमति है, जब वह आवेदन करने से ठीक पहले 12 महीने से भारत में रह रहा हो और पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा हो। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 में इस संबंध में अधिनियम की अनुसूची 3 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि वे 11 वर्ष की बजाय 6 वर्ष पूरे होने पर नागरिकता के पात्र हो सकें।
  • भारत के विदेशी नागरिक (Overseas Citizen of India -OCI) कार्डधारक यदि किसी भी कानून का उल्लंघन करते हैं तो उनका पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा।

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 से संबंधित समस्याएँ

  • यह संशोधन पड़ोसी देशों से आने वाले मुस्लिम लोगों को ही ‘अवैध प्रवासी’ मानता है, जबकि लगभग अन्य सभी लोगों को इस परिभाषा के दायरे से बाहर कर देता है। इस प्रकार यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
  • यह विधेयक किसी भी कानून का उल्लंघन करने पर OCI पंजीकरण को रद्द करने की अनुमति देता है। यह एक ऐसा व्यापक आधार है जिसमें मामूली अपराधों सहित कई प्रकार के उल्लंघन शामिल हो सकते हैं (जैसे नो पार्किंग क्षेत्र में पार्किंग)।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस