भारत के रूफटॉप सोलर प्रोग्राम में चुनौतियाँ | 13 Jan 2022

प्रिलिम्स के लिये:

अक्षय ऊर्जा लक्ष्य प्राप्त करने के लिये योजनाएँ और कार्यक्रम

मेन्स के लिये: 

अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य, चुनौतियाँ और इसे प्राप्त करने के लिये शुरू की गई प्रमुख पहल।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत रूफटॉप सोलर योजना के तहत अक्तूबर 2021 के अंत तक सिर्फ 6GW रूफटॉप सोलर (RTS) बिजली स्थापित कर सका।

  • हालाँकि उपयोगिता-पैमाने पर सौर परियोजनाओं के लिये अग्रणी खिलाड़ियों के साथ जबरदस्त प्रगति देखी गई है और टैरिफ में गिरावट एवं मेगा परियोजनाओं को आगे बढ़ाने वाली सरकारी एजेंसियाँ ​​आरटीएस उपेक्षित बनी हुई हैं।

रूफटॉप सोलर

  • रूफटॉप सोलर एक फोटोवोल्टिक प्रणाली है जिसमें बिजली पैदा करने वाले सौर पैनल आवासीय या व्यावसायिक भवन या संरचना की छत पर लगे होते हैं।
  • रूफटॉप माउंटेड सिस्टम मेगावाट रेंज में क्षमता वाले ग्राउंड-माउंटेड फोटोवोल्टिक पावर स्टेशनों की तुलना में छोटे होते हैं।
  • आवासीय भवनों पर रूफटॉप पीवी सिस्टम में आमतौर पर लगभग 5 से 20 किलोवाट (kW) की क्षमता होती है, जबकि वाणिज्यिक भवनों पर 100 किलोवाट या उससे अधिक पहुँच जाती हैं।

प्रमुख बिंदु

  • रूफटॉप सोलर योजना:
    • योजना का मुख्य उद्देश्य घरों की छत पर सोलर पैनल लगाकर सौर ऊर्जा उत्पन्न करना है।
    • साथ ही नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने ग्रिड से जुड़ी रूफटॉप सोलर योजना के चरण 2 के कार्यान्वयन की घोषणा की है।
    • इस योजना का उद्देश्य वर्ष 2022 तक रूफटॉप सौर परियोजनाओं से 40 गीगावाट की अंतिम क्षमता हासिल करना है।
    • 40GW का लक्ष्य 175GW के नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता प्राप्त करने के भारत के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य का हिस्सा है, जिसमें वर्ष 2022 तक 100GW सौर ऊर्जा शामिल है।
      • सितंबर 2021 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन ने देश में नवीकरणीय ऊर्जा प्रतिष्ठानों की गति को धीमा कर दिया और ऐसे प्रतिष्ठानों की गति भारत के वर्ष 2
      • 022 के लक्ष्य से पीछे है।
  • चुनौतियाँ
    • फ्लिप-फ्लॉपिंग नीतियाँ:
      • हालाँकि कई कंपनियों ने सौर ऊर्जा का उपयोग करना शुरू कर दिया है, किंतु ‘फ्लिप-फ्लॉपिंग’ नीतियाँ (नीतियों का अचानक परिवर्तन) इस संबंध में एक बड़ी बाधा बनी हुई हैं, खासकर जब बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के संदर्भ में।
      • उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि जब डिस्कॉम और राज्य सरकारों ने इस क्षेत्र के लिये नियमों को कड़ा करना शुरू किया तो RTS कई उपभोक्ता क्षेत्रों के लिये आकर्षक होता जा रहा था।
        • भारत के वस्तु और सेवा कर (GST) परिषद ने हाल ही में सौर प्रणाली के कई घटकों के GST को 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया है।
        • इससे RTS की पूंजीगत लागत 4-5% बढ़ जाएगी।
    • नियामक ढाँचा:
      • RTS खंड का विकास नियामक ढाँचे पर अत्यधिक निर्भर है।
      • धीमी वृद्धि मुख्य रूप से RTS खंड हेतु राज्य-स्तरीय नीति समर्थन की अनुपस्थिति या वापसी के कारण हुई है, विशेष रूप से व्यापार और औद्योगिक खंड के लिये, जो लक्षित उपभोक्ताओं का बड़ा हिस्सा है।
    • नेट और ग्रॉस मीटरिंग पर असंगत नियम:
      • नेट मीटरिंग नियम इस क्षेत्र की प्रमुख बाधाओं में से एक हैं।
      • एक रिपोर्ट के अनुसार, बिजली मंत्रालय के नए नियम, जो 10 किलोवाट (kW) से ऊपर के रूफटॉप सोलर सिस्टम को नेट-मीटरिंग से बाहर रखते हैं, भारत में बड़े इंस्टॉलेशन को अपनाने से देश के रूफटॉप सोलर टारगेट को प्रभावित करेंगे।
        • नए नियमों में रूफटॉप सोलर प्रोजेक्ट्स के लिये 10 kW तक नेट-मीटरिंग और 10 kW से ऊपर के लोड वाले सिस्टम के लिये ग्रॉस मीटरिंग अनिवार्य है।
        • नेट मीटरिंग आरटीएस सिस्टम द्वारा उत्पादित अधिशेष बिजली को ग्रिड में वापस फीड करने की अनुमति देता है।
        • सकल मीटरिंग योजना के तहत, राज्य बिजली वितरण कंपनियां (DISCOMS) उपभोक्ताओं द्वारा ग्रिड को आपूर्ति की जाने वाली सौर ऊर्जा के लिये एक निश्चित फीड-इन-टैरिफ के साथ उपभोक्ताओं को मुआवज़ा देती हैं।
    • कम वित्तपोषण:
      • वाणिज्यिक संस्थान और आवासीय क्षेत्र बैंक ऋण प्राप्त करके ग्रिड से जुड़े आरटीएस स्थापित करने के इच्छुक हैं।
      • केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने बैंकों को आरटीएस के लिये रियायती दरों पर ऋण देने की सलाह दी है। हालाँकि राष्ट्रीयकृत बैंक शायद ही RTS को ऋण देते हैं।
      • इस प्रकार कई निजी संस्थान बाज़ार में आ गए हैं जो आरटीएस के लिये 10-12% जैसी उच्च दरों पर ऋण प्रदान करते हैं।

सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये योजनाएँ:   

  • अल्ट्रा मेगा रिन्यूएबल एनर्जी पावर पार्क के विकास के लिये योजना: यह मौजूदा सौर पार्क योजना के तहत अल्ट्रा मेगा रिन्यूएबल एनर्जी पावर पार्क (UMREPPs) विकसित करने की एक योजना है।
  • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति 2018: इस नीति का मुख्य उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, बुनियादी ढांँचे और भूमि के इष्टतम व कुशल उपयोग के लिये ग्रिड कनेक्टेड विंड-सोलर पीवी सिस्टम (Wind-Solar PV Hybrid Systems) को बढ़ावा देने हेतु एक रूपरेखा प्रस्तुत करना है।
  • अटल ज्योति योजना (AJAY): AJAY योजना को सितंबर 2016 में ग्रिड पावर (2011 की जनगणना के अनुसार) में 50% से कम घरों वाले राज्यों में सौर स्ट्रीट लाइटिंग (Solar Street Lighting- SSL) सिस्टम की स्थापना के लिये शुरू किया गया था।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) : ISA, भारत की एक पहल है जिसे 30 नवंबर, 2015 को पेरिस, फ्रांँस में भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांँस के राष्ट्रपति द्वारा पार्टियों के सम्मेलन (COP-21) में शुरू किया गया था। इस संगठन के सदस्य देशों में वे 121 सौर संसाधन संपन्न देश शामिल हैं जो पूर्ण या आंशिक रूप से कर्क और मकर रेखा के मध्य स्थित हैं।
  • वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG): यह वैश्विक सहयोग को सुविधाजनक बनाने हेतु एक रूपरेखा पर केंद्रित है, जो परस्पर नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों (मुख्य रूप से सौर ऊर्जा) के वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर उसे साझा करता है।
  • राष्ट्रीय सौर मिशन (जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में राष्ट्रीय कार्ययोजना का एक हिस्सा)।
  • सूर्यमित्र कौशल विकास कार्यक्रम: इसका उद्देश्य सौर प्रतिष्ठानों की निगरानी हेतु ग्रामीण युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।

आगे की राह 

  • RTS को आसान वित्तपोषण, अप्रतिबंधित नेट मीटरिंग और एक आसान नियामक प्रक्रिया की आवश्यकता है। सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों व अन्य प्रमुख उधारदाताओं को खंड को उधार देने के लिये  निर्धारित किया जा सकता है।
  • भारतीय RTS खंड की चुनौतियों का सामना करने के लिये कुछ मौजूदा बैंक लाइन ऑफ क्रेडिट को अनुकूलित किया जा सकता है जिससे इस क्षेत्र को डेवलपर्स के लिये और अधिक आकर्षक बना दिया जा सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ