केंद्र बनाम संघ | 11 Jan 2023

प्रिलिम्स के लिये:

आठवीं अनुसूची, भारतीय संविधान, संघवाद, राष्ट्रपति, केंद्रीकरण और सत्ता का विकेंद्रीकरण। 

मेन्स के लिये:

केंद्र बनाम संघ, इसकी संवैधानिकता और केंद्र सरकार के साथ मुद्दे। 

चर्चा में क्यों?

चूँकि तमिलनाडु सरकार ने अपने आधिकारिक संचार में 'केंद्र सरकार' शब्द के स्थान पर 'संघ सरकार' शब्द  के प्रयोग का फैसला किया है, फलतः इसने संघ बनाम केंद्र को लेकर बहस छेड़ दी है। 

  • इसे भारतीय संविधान की चेतना को पुनः प्राप्त करने की दिशा में एक बड़े कदम के रूप में देखा गया है।  

संघ/केंद्र शब्द की संवैधानिकता: 

  • भारत के संविधान में 'केंद्र सरकार' शब्द का कोई उल्लेख नहीं है क्योंकि संविधान सभा ने मूल संविधान में 22 भागों और आठ अनुसूचियों के अपने सभी 395 अनुच्छेदों में 'केंद्र' या 'केंद्र सरकार' शब्द का उपयोग नहीं किया था।  
  • 'संघ' और 'राज्यों' का संदर्भ केवल उनसे है, जिनके पास संघ की कार्यकारी शक्तियाँ हैं, जो राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करते हैं। 
  • भले ही संविधान में 'केंद्र सरकार' का कोई संदर्भ नहीं है, लेकिन सामान्य खंड अधिनियम, 1897 इसके लिये एक परिभाषा प्रदान करता है।  
    • 'केंद्र सरकार' के सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिये संविधान प्रमुख राष्ट्रपति को माना जाता है। 

संविधान सभा की मंशा:

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 1(1) में कहा गया है कि ‘इंडिया यानी भारत, राज्यों का एक संघ होगा’।
  • 13 दिसंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा के लक्ष्यों और उद्देश्यों को इस संकल्प के साथ पेश किया कि भारत "स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य" में शामिल होने के इच्छुक क्षेत्रों का एक संघ होगा।
    • एक मज़बूत, एकजुट देश बनाने के लिये विभिन्न प्रांतों और क्षेत्रों के समेकन एवं संगम पर बल दिया गया था। 
  • वर्ष 1948 में प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ बीआर अंबेडकर ने संविधान का मसौदा प्रस्तुत करते हुए कहा था कि समिति ने 'संघ' शब्द का इस्तेमाल किया है क्योंकि:
    • भारतीय संघ इकाइयों द्वारा एक समझौते का परिणाम नहीं है।
    • घटक इकाइयों को संघ से अलग होने की कोई स्वतंत्रता नहीं है।
  • संविधान सभा के सदस्य संविधान में 'केंद्र' या 'केंद्र सरकार' शब्द का उपयोग न करने के प्रति बहुत सतर्क थे क्योंकि उनका उद्देश्य एक इकाई में शक्तियों के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को दूर रखना था।

संघ और केंद्र के बीच अंतर:

  • संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार, शब्दों के प्रयोग की दृष्टि से 'केंद्र' एक वृत्त के मध्य में एक बिंदु को इंगित करता है, जबकि 'संघ' संपूर्ण वृत्त है।
    • भारत में संविधान के अनुसार तथाकथित 'केंद्र' और राज्यों के बीच का संबंध वास्तव में संपूर्ण एवं उसके भागों के बीच का संबंध है।
  • संघ और राज्य दोनों ही संविधान द्वारा बनाए गए हैं, दोनों संविधान से अपने संबंधित अधिकार प्राप्त करते हैं।
    • एक अपने क्षेत्र में दूसरे का अधीनस्थ नहीं है और एक का अधिकार दूसरे के साथ समन्वय करना है।
  • न्यायपालिका को संविधान में इस प्रकार अभिकल्पित किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय देश का शीर्ष न्यायालय तो है लेकिन उच्च न्यायालय इसकेअधीनस्थ नहीं है।
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के पास न केवल उच्च न्यायालयों पर बल्कि अन्य न्यायालयों और न्यायाधिकरणों पर भी अपीलीय क्षेत्राधिकार है, उन्हें इसके अधीनस्थ घोषित नहीं किया गया है।
    • वास्तव में उच्च न्यायालयों के पास ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों पर अधीक्षण की शक्ति होने के बावजूद विशेषाधिकार रिट जारी करने की व्यापक शक्तियाँ हैं।
  • सामान्य शब्दों में ‘संघ’, संघीय भावना को इंगित करता है, जबकि ‘केंद्र’ एकात्मक सरकार की भावना को इंगित करता है।
    • किंतु व्यावहारिक रूप से दोनों शब्द भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में समान हैं।

केंद्र सरकार पद से संबद्ध मुद्दे:

  • संविधान सभा द्वारा खारिज़: संविधान में 'केंद्र' शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है; संविधान निर्माताओं ने इसे विशेष रूप से खारिज़ कर दिया और इसके बजाय 'संघ' शब्द का इस्तेमाल किया।
  • औपनिवेशिक विरासत: 'केंद्र' औपनिवेशिक काल का अवशेष है और नौकरशाही केंद्रीय कानून, केंद्रीय विधायिका आदि शब्द का उपयोग करने की आदी हो गई है, इसलिये मीडिया सहित अन्य सभी ने इस शब्द का उपयोग करना शुरू कर दिया। 
  • संघवाद के विचार के साथ संघर्ष: भारत एक संघीय सरकार है। शासन करने की शक्ति पूरे देश के लिये एक सरकार के बीच विभाजित है, जो सामान्य राष्ट्रीय हित के विषयों और राज्यों हेतु ज़िम्मेदार है, जो राज्य के विस्तृत दिन-प्रतिदिन के शासन की देखभाल करती है।
    • सुभाष कश्यप के अनुसार, 'केंद्र' या 'केंद्र सरकार' शब्द का उपयोग करने का मतलब होगा कि राज्य सरकारें इसके अधीन हैं। 

आगे की राह 

  • संविधान की संघीय प्रकृति इसकी मूल विशेषता है और इसे बदला नहीं जा सकता है, इस प्रकार सत्ता में रहने वाले हितधारक हमारे संविधान की संघीय विशेषता की रक्षा करना चाहते हैं।
  • भारत जैसे विविध और बड़े देश में संघवाद के स्तंभों, यानी राज्यों की स्वायत्तता, राष्ट्रीय एकीकरण, केंद्रीकरण, विकेंद्रीकरण, राष्ट्रीयकरण तथा क्षेत्रीयकरण के बीच एक उचित संतुलन की आवश्यकता है।
    • अत्यधिक राजनीतिक केंद्रीकरण या अराजक राजनीतिक विकेंद्रीकरण दोनों ही भारतीय संघवाद को कमज़ोर कर सकते हैं।
  • विकट समस्या का संतोषजनक और स्थायी समाधान विधान-पुस्तक में नहीं बल्कि सत्ता में बैठे लोगों की अंतरात्मा में खोजना होगा।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी भारतीय संघवाद की विशेषता नहीं है? (2017)

(a) भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है। 
(b) शक्तियों को केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट रूप से विभाजित किया गया है।
(c) संघ की इकाइयों को राज्यसभा में असमान प्रतिनिधित्त्व दिया गया है।
(d) यह संघबद्ध इकाइयों के बीच एक समझौते का परिणाम है।

उत्तर: (d)  


मेन्स: 

प्रश्न. यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज़्म) सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये।(2014) 

स्रोत: द हिंदू