केंद्र ने किया चुनाव सुधारों का वादा | 19 Apr 2017

संदर्भ
केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में यह तर्क प्रस्तुत किया है कि वह राजनीति से अपराधीकरण की समाप्ति (decriminalization of politics) पर विधि आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन हेतु रोडमैप तैयार करने के लिये एक कार्यबल का गठन कर चुकी है|

प्रमुख बिंदु

  • विदित हो कि न्यायाधीश रंजन गोगोई और नवीन सिन्हा की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से जनहित याचिका पर एक हलफनामा दर्ज करने को कहा है, जिसमें केंद्र सरकार से अपराधियों को चुनाव लड़ने  से रोकने और न्यायपालिका एवं कार्यपालिका में उनके प्रवेश को निषेध करने की मांग उठाई गई है|
  • खंडपीठ ने कहा कि “यदि राजनीतिज्ञों के खिलाफ कई सारे मामले लंबित हैं तो फिर उनसे संबंधित आँकड़े कहाँ हैं?” खंडपीठ के अनुसार, न्यायालय के पीठासीन अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे मामलों की सुनवाई को प्राथमिकता दे| इसके अलावा, यह भी निर्णय दिया गया कि न्यायालय इस मामले पर केंद्र से जवाबी प्रतिक्रिया चाहता है| 

विधि एवं न्याय मंत्रालय का तर्क

  • मंत्रालय के अनुसार, प्रतिवादी देश में चुनावी सुधारों की आवश्यकता के प्रति जागरूक हैं| हालाँकि चुनावी सुधारों की प्रक्रिया जटिल, अविराम, दीर्घकालिक और व्यापक है, परन्तु भारत सरकार विधायी विभाग के माध्यम से देश में चुनाव सुधार करने के लिये हितधारकों के साथ परामर्श, बैठक, ई-दृष्टिकोण इत्यादि के माध्यम आवश्यक सभी संभव उपाय कर रही है|
  • ध्यातव्य है कि चुनाव सुधारों की यह पेशकश, अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका के प्रतिक्रियास्वरूप विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा एक हलफनामा दायर करके की गई थी| इस हलफनामे में अपराधियों को चुनाव में प्रत्याशी न बनाने और उन्हें न्यायपालिका और कार्यपालिका में प्रवेश करने से रोकने की मांग की गई थी|

मंत्रालय व न्यायालय का पक्ष

  • मंत्रालय के अनुसार, ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम,1951’ के अंतर्गत वर्णित अयोग्यता अवधि एक नीतिगत निर्णय था जिसे राजनीतिक क्षेत्र में अपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्तियों के प्रवेश को रोकने के लिये काफी विचार-विमर्श के पश्चात संसद द्वारा लागू किया गया था| 
  • केन्द्रीय विधि और न्याय मंत्रालय ने अपने हलफनामे में न्यायालय को बताया था कि सरकार सक्रियतापूर्वक विधि पैनल की एक रिपोर्ट को संज्ञान में ले रही है और वह इस मामले का अवलोकन करने के लिये वरिष्ठ अधिकारियों के एक समूह को भी नियुक्त कर चुकी है|
  • न्यायालय ने उन सभी मामलों की सुनवाई की जिनमें सरकार के लिये कानूनों के निर्माण अथवा मौजूदा कानूनों में संशोधनों (जैसे- नीति निर्माण, मानकों को निर्धारित करना और विधायिका के कार्यकारी डोमेन के तहत आने वाले कानूनों का निर्माण) के विषय में कोई परमादेश जारी नहीं किया गया था| 
  • न्यायालय के अनुसार, जहाँ भी सांविधिक अंतराल होगा वहाँ न्यायपालिका इस अंतराल को कम करने के लिये कदम उठा सकती है, परन्तु यह वहाँ कोई कार्यवाही नहीं कर सकती है जहाँ कोई वैध नियम पहले से ही मौजूद है|
  • आपराधिक मामलों के निराकरण के लिये विधायकों और सांसदों के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना करने के मुद्दे पर विधि एवं न्याय मंत्रालय ने कहा कि ऐसी अपील करना तब तक अवांछनीय है जब तक कि मामलों का निपटारा एक वर्ष के अन्दर नहीं हो जाता|

निष्कर्ष
वस्तुतः चुनाव सुधार वर्तमान समय की एक आवश्यकता है, लेकिन इनका समुचित क्रियान्वयन तभी किया जा सकता है जब राजनीति में अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का प्रवेश न हो क्योंकि ऐसे लोग भारतीय लोकतंत्र के लिये एक बड़ा खतरा साबित होंगे|