CCUS पॉलिसी फ्रेमवर्क | 30 Nov 2022

प्रिलिम्स के लिये:

CCUS प्रौद्योगिकी, पेरिस समझौता.

मेन्स के लिये:

CCUS प्रौद्योगिकी, अनुप्रयोग, 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन , पर्यावरण क्षरण, संरक्षण।

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग ने कार्बन संकलन, उपयोग और भंडारण (Carbon Capture, Utilisation, and Storage- CCUS) नीति के ढाँचे और भारत में इसके लागू करने की व्‍यवस्‍था” शीर्षक से एक अध्ययन रिपोर्ट जारी किया।

  • इस रिपोर्ट में चुनौतीपूर्ण उद्योगों को कार्बनरहित बनाने के माध्यम से उत्सर्जन को कम करने के तरीके के रूप में कार्बन संकलन, उपयोग और भंडारण के महत्त्व के बारे में पता लगाया गया है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • परिचय:
    • CCUS संकलित किये गए CO2 को विभिन्न मूल्य वर्धित उत्पादों जैसे कि ग्रीन यूरिया, खाद्य और निर्माण सामग्री, रसायन (मेथनॉल और इथेनॉल), पॉलीमर (जैव-प्लास्टिक सहित) और एनहांस्ड ऑयल रिकवरी में परिवर्तित करने के अवसरों की एक विस्तृत विविधता प्रदान कर सकता है, इस प्रकार यह भारत में व्यापक बाज़ार के अवसरों के साथ काफी योगदान देता है।
    • CCUS परियोजनाओं से महत्त्वपूर्ण रोज़गार सृजन भी होगा। यह अनुमान है कि वर्ष 2050 तक लगभग 750 प्रतिवर्ष मिलियन टन कार्बन संकलन चरणबद्ध तरीके से पूर्णकालिक समतुल्य (full time equivalent - FTE) आधार पर लगभग 8-10 मिलियन रोज़गार के अवसर पैदा कर सकता है।
  • सुझाव:
    • इसके आवेदन के लिये विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक स्तर के नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
    • जैसा कि भारत ने अपने NDC लक्ष्यों को अद्यतन करते हुए गैर-जीवाश्म-आधारित ऊर्जा स्रोतों से अपनी कुल स्थापित क्षमता का 50% प्राप्त करने तथा वर्ष 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी और 2070 तक शुद्ध शून्य प्राप्त करने की दिशा में कदम उठाया है , इससे CCUS की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि कठिन क्षेत्रों से डीकार्बोनाइजेशन में कटौती करने के लिये  रणनीति बनाना ज़रूरी  है।
    • जीवाश्म आधारित ऊर्जा संसाधनों पर भारत की निर्भरता भविष्य में जारी रहने की संभावना है, इसलिये भारतीय संदर्भ में CCUS नीति की आवश्यकता है।

कार्बन संकलन, उपयोग और भंडारण:

  • कार्बन संकलन, उपयोग और भंडारण (CCUS) में फ्लू गैस (चिमनियों या पाइप से निकलने वाली गैसें) और वातावरण से CO2 को हटाने के तरीकों एवं प्रौद्योगिकियों को शामिल किया गया है। इसके बाद CO2 को उपयोग करने के लिये उसका पुनर्चक्रण तथा सुरक्षित और स्थायी भंडारण विकल्पों का निर्धारण किया जाता है।
  • CO2 को CCUS का उपयोग करके ईंधन (मीथेन और मेथनॉल) निर्माण संबंधित सामग्री में परिवर्तित किया जाता है।
    • संचय की गई गैस का उपयोग सीधे आग बुझाने वाले यंत्रों, फार्मा, खाद्य और पेय उद्योगों के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में भी किया जाता है।
  • CCUS प्रौद्योगिकियाँ नेट ज़ीरो लक्ष्यों को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं, जिसमें भारी उद्योगो से उत्सर्जित कार्बन से निपटने और वातावरण से कार्बन को हटाने से संबंधित कुछ समाधान शामिल हैं।
  • CCUS को वर्ष 2030 तक देशों को अपने उत्सर्जन को आधा करने तथा वर्ष 2050 तक नेट ज़ीरो के लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण उपकरण माना जाता है।
    • यह ग्लोबल वार्मिंग को 2°C (डिग्री सेल्सियस) तक सीमित रखने के लिये पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने हेतु महत्त्वपूर्ण है, साथ ही पूर्व-औद्योगिक स्तरों पर5 डिग्री सेल्सियस के लिये बेहतर भूमिका निभा सकती है।

CCUS के अनुप्रयोग:

  • जलवायु परिवर्तन को कम करना: CO2 उत्सर्जन की दर को कम करने के लिये वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों और ऊर्जा कुशल प्रणालियों को अपनाने के बावजूद जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों को सीमित करने के लिये वातावरण में CO2 की संचयी मात्रा को कम करने की आवश्यकता है।
  • कृषि: ग्रीनहाउस वातावरण में फसल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये पौधों और मिट्टी जैसे बायोजेनिक स्रोतों से CO2 का संचय किया जा सकता है।
  • औद्योगिक उपयोग: पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुकूल निर्माण सामग्री के लिये स्टील निर्माण प्रक्रिया का एक औद्योगिक उपोत्पाद (स्टील स्लैग के साथ CO2 का संयोजन)।
  • बढ़ी हुई तेल रिकवरी: CCU प्रौद्योगिकी का उपयोग पहले से ही भारत में किया जा रहा है। उदाहरण के लिये ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन ने CO2 को इंजेक्ट करके एन्हांस्ड ऑयल रिकवरी (EOR) हेतु इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।

CO2

CCUS से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • महँगा: कार्बन कैप्चर में सॉर्बेंट्स का विकास शामिल है जो प्रभावी रूप से ग्रिप गैस या वातावरण में मौजूद CO2 के संयोजन से हो सकता है, यह अपेक्षाकृत महँगी प्रक्रिया है।
  • पुनर्नवीनीकृत CO2 की कम मांग: CO2 को व्यावसायिक महत्त्व के उपयोगी रसायनों में परिवर्तित करना या CO2 का उपयोग तेल निष्कर्षण या क्षारीय औद्योगिक कचरे के उपचार के लिये करना, इस ग्रीनहाउस गैस के मूल्य में वृद्धि कर देगा।
    • CO2 की विशाल मात्रा की तुलना में मांग सीमित है, इसे वातावरण से हटाने की आवश्यकता है, ताकि जलवायु परिवर्तन के हानिकारक पर्यावरणीय प्रभावों को कम किया जा सके।

आगे की राह

  • कार्बन के भंडारण के लिये कोई भी व्यवहार्य प्रणाली प्रभावी एवं लागत प्रतिस्पर्द्धी, दीर्घकालिक भंडारण के रूप में स्थिर एवं पर्यावरण के अनुकूल होनी चाहिये।
  • देशों को उन चुनिंदा तकनीकों पर ज़ोर देना चाहिये, जो अधिक निवेश आकर्षित कर सकती हैं।
  • कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइज़ेशन के माध्यम से उत्पादित मेथनॉल जैसे सिंथेटिक ईंधन के साथ पारंपरिक ईंधन को प्रतिस्थापित करना केवल तभी एक सफल शमन रणनीति होगी, जब CO2 को कैप्चर करने और इसे सिंथेटिक ईंधन में बदलने के लिये स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग किया जाएगा।

स्रोत: द हिंदू