कार्बन अभिग्रहण, उपयोग और भंडारण | 13 Oct 2025

प्रिलिम्स के लिये: कार्बन अभिग्रहण, उपयोग और भंडारण (CCUS); ग्रीनहाउस गैसें; जैव-ऊर्जा (Bioenergy); डायरेक्ट एयर कैप्चर; तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG)                                          

मेन्स के लिये: जलवायु शमन रणनीति (Climate Mitigation Strategy) के रूप में कार्बन अभिग्रहण, उपयोग और भंडारण (CCUS) की प्रभावशीलता एवं जोखिम; इससे जुड़ी चुनौतियाँ; भारत की स्थिति तथा CCUS संबंधी पहलें।

स्रोत: TH 

चर्चा में क्यों?

क्लाइमेट एनालिटिक्स रिपोर्ट के अनुसार, एशिया की व्यापक कार्बन अभिग्रहण, उपयोग और भंडारण (CCUS) योजनाएँ वर्ष 2050 तक लगभग 25 अरब टन अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसों का कारण बन सकती हैं।

  • ऐसा इसलिये है क्योंकि चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया में अधिकांश CCUS योजनाएँ उत्सर्जन कम करने के बजाय कोयला, तेल और गैस के जीवन काल को बढ़ाने के उद्देश्य से डिजाइन की गई हैं।

कार्बन अभिग्रहण, उपयोग और भंडारण क्या है?

  • परिचय: CCUS तकनीकों का एक समूह है जो बड़े स्रोतों जैसे पावर प्लांट्स, रिफाइनरियों और औद्योगिक इकाइयों से CO₂ उत्सर्जन को अभिगृहीत करता है या वायुमंडल में मौजूद CO₂ को निर्मूलित करता है।
  • कार्यप्रणाली: CCUS में मुख्यतः तीन चरण शामिल हैं — CO₂ का अभिग्रहण, परिवहन एवं भंडारण या उपयोग।
    • अभिग्रहण की विधियाँ:
      • पोस्ट-कंबस्टियन (Post-combustion): ईंधन दहन के पश्चात फ्लू गैस से CO₂ को सॉल्वेंट्स की मदद से पृथक किया जाता है।
      • प्री-कंबस्टियन (Pre-combustion): ईंधन दहन के पूर्व हाइड्रोजन–CO₂ मिश्रण में परिवर्तित किया जाता है, फिर CO₂ को पृथक किया जाता है।
      • ऑक्सी-फ्यूल कंबस्टियन (Oxy-fuel combustion): ईंधन का दहन शुद्ध ऑक्सीजन में किया जाता है, जिससे CO₂ और भाप का उत्पादन होता है, जो अभिग्रहण को आसान बनाता है।
    • परिवहन और भंडारण: अभिगृहीत किये गए CO₂ को संपीड़ित करके पाइपलाइन, जहाज, रेल या सड़क के माध्यम से ले जाया जाता है और गहरी भूवैज्ञानिक संरचनाओं  जैसे- दोहित तेल और गैस क्षेत्र या लवणीय जल वाले भूमिगत जलाशय (saline aquifers) आदि में लंबे समय तक भंडारण के लिये इंजेक्ट किया जाता है। वैकल्पिक रूप से, इसे वाणिज्यिक उपयोग में भी लाया जा सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन से निपटने में भूमिका: CCUS वैश्विक डीकार्बोनाइजेशन में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है:
    • हार्ड-टू-एबेट सेक्टर जैसे स्टील, सीमेंट (वैश्विक उत्सर्जन का 7%) और रसायन उद्योग में उत्सर्जन कम करने में सहायक।
    • उद्योग और परिवहन में जीवाश्म ईंधनों के स्थान पर कम-कार्बन वाले विद्युत् और हाइड्रोजन का उत्पादन।
    • BECCS (Bioenergy with CCS) और डायरेक्ट एयर कैप्चर (DACCS) के माध्यम से वायुमंडल से मौजूदा CO₂ को हटाना।
    • अनुकूलता: CCUS को कोयला, गैस या बायोमास संयंत्रों में स्थापित किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा बढ़ती है और कम-कार्बन उत्सर्जन ऊर्जा स्रोतों में विविधता आती है।

CCUS पर एशिया की बढ़ती निर्भरता जलवायु के संबंध में क्यों चिंतनीय है?

  • व्यापक अतिरिक्त उत्सर्जन: CCUS परिदृश्य के आधार पर, एशिया में वर्ष 2050 तक अतिरिक्त 24.9 गीगाटन CO₂-समतुल्य उत्सर्जन हो सकता है—जो दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के संयुक्त जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन से भी अधिक है।
    • यह अतिवृद्धि मामूली नहीं है; यह एक संभावित आपदा है जो एकल रूप से ही वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के लिये खतरा है।
  • आर्थिक अवरोध: एक उच्च-CCS मार्ग से देशों का महॅंगे, पुराने जीवाश्म ईंधन बुनियादी ढाँचे में अभिबद्ध होने का ख़तरा रहता है जिससे अनुपयुक्त संसाधनों के निर्माण और अधिक स्वच्छ विकल्पों से निवेश के बहिर्गमन का जोखिम होता है।
  • क्षेत्रीय सुभेद्यताएँ: एक उच्च-CCS मार्ग से जलवायु संबंधी उन खतरों को बढ़ावा मिलता है जिनसे एशिया को सबसे अधिक खतरा है जैसे समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, मानसून की अस्थिरता और हीट वेव्स—और इसके साथ ही अप्रग्रहीत NOx और SOx से प्राणघातक वायु प्रदूषण बना रहता है।
  • बढ़ती ऊर्जा मांग: सरकारें कोयला और गैस जैसे घरेलू जीवाश्म ईंधनों का दोहन करने के लिये ऊर्जा सुरक्षा रणनीति के रूप में CCUS का उपयोग कर रही हैं और साथ ही वे जलवायु लक्ष्यों के प्रति मात्र दिखावा कर रही हैं, जबकि पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा में संक्रमण से बच रही हैं।

CCUS में भारत की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • सीमित विस्तारण: भारत में वर्तमान में न्यूनतम CCS अवसंरचना है जिसमें किसी व्यापक परिचालन परियोजनाओं या भंडारण सुविधाओं का अभाव है, जिससे यह क्षेत्रीय CCS नेटवर्क से एक सीमा तक असंयोजित रह जाता है।
  • सीमेंट क्षेत्र के लिये CCU टेस्टबेड: भारत ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत सीमेंट क्षेत्र के लिये पाँच CCU टेस्टबेड का अपना पहला क्लस्टर लॉन्च किया है, जो निम्नलिखित पर केंद्रित है:
    • ऑक्सीजन-एन्हांस्ड कैल्सीनेशन: CO₂ को कंक्रीट ब्लॉक और ओलेफिन (जैसे, एथिलीन, प्रोपलीन) में परिवर्तित करना।
    • कार्बन-ऋणात्मक खनिजीकरण: CO₂ को स्थायी रूप से चट्टानों में पाशन करना।
    • वैक्यूम स्विंग अधिशोषण: सीमेंट भट्ठा गैसों से CO₂ को अलग करना और इसे वापस निर्माण सामग्री में एकीकृत करना।
  • कार्बन कैप्चर में राष्ट्रीय केंद्र: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से, भारत में कार्बन प्रग्रहण और उपयोग (CCU) हेतु दो राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र (CoE) स्थापित किये जा रहे हैं:
    • NCoE-CCU, IIT बॉम्बे, मुंबई और
    • NCCCU, JNCASR, बंगलुरु
  • नवीकरणीय लाभ: सौर, वात, विद्युत गतिशीलता और हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में भारत की प्रगति, भारी कार्बन प्रग्रहण और उपयोग (CCU) के बिना कार्बन उत्सर्जन को कम करने का मार्ग प्रदान करती है। 
    • CCS के लिये 4.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सरकारी सहायता से नवीकरणीय ऊर्जा और हरित नवाचार के लिये निधि के उपयोग पर विचार विमर्श जारी है।

CCUS से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?

  • कम अभिग्रहण दक्षता: अधिकांश CCS परियोजनाएँ केवल 50% CO₂ ही अभिग्रहण कर पाती हैं, जो कि सार्थक उत्सर्जन कटौती के लिये आवश्यक 95% से काफी कम है, जिससे वे जलवायु समाधान के रूप में कम प्रभावी हो जाती हैं।
  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता: मौजूदा CCS परियोजनाओं में से लगभग 80% संवर्धित तेल पुनर्प्राप्ति (EOR) के लिये संचित CO₂ का उपयोग करती हैं, जो जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण को कम करने के बजाय उसे बढ़ाती है।
  • उच्च आर्थिक लागत: CCS-आधारित विद्युत उत्पादन, भंडारण वाली नवीकरणीय ऊर्जा की तुलना में विद्युत को दोगुना तक महॅंगा बना सकता है। CCUS सुविधाएँ पूँजी और ऊर्जा दोनों-प्रधान हैं, जिससे विशेष रूप से एशिया में आर्थिक व्यवहार्यता को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • क्षेत्रवार विसंगति: अधिकांश CCS परियोजनाएँ गैस, LNG और हाइड्रोजन उत्पादन क्षेत्रों जैसे जीवाश्म ईंधन क्षेत्रों को लक्षित करती हैं, जिनके पास पहले से ही शून्य-उत्सर्जन विकल्प मौजूद हैं, जबकि इस्पात व सीमेंट जैसे हार्ड-टू-एबेट सेक्टर को न्यूनतम निवेश प्राप्त होता है।
  • किफायती विकल्पों का उदय: नवीकरणीय ऊर्जा, विद्युतीकरण और ऊर्जा दक्षता, CCS के साथ जीवाश्म ईंधन की तुलना में पहले से ही अधिक लागत प्रभावी हैं। उच्च-CCS की लागत, निम्न-CCS की तुलना में, वर्ष 2050 तक वैश्विक स्तर पर 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक अधिक हो सकती है।
  • पर्यावरणीय जोखिम: भूमिगत भंडारण से संभावित CO₂ रिसाव उत्सर्जन में कमी को निम्न कर सकता है और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचा सकता है।

भारत को अपने हरित परिवर्तन के क्रम में CCUS के लिये क्या रणनीति अपनानी चाहिये?

  • नवीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता देना: सौर, पवन, हरित हाइड्रोजन और विद्युत गतिशीलता को प्राथमिक डीकार्बोनाइजेशन क्रम के रूप में अपनाना। CCUS का उपयोग केवल वहीं करें जहाँ उत्सर्जन कम करना कठिन हो, जैसे इस्पात, सीमेंट और रासायनिक उद्योग में।
  • पायलट प्रोजेक्ट और स्केल चयनात्मक रूप: लागत-प्रभावशीलता और पर्यावरणीय सुरक्षा का मूल्यांकन करने के लिये छोटे पैमाने पर, उच्च-दक्षता वाली CCUS परियोजनाओं को लागू करना। ऐसे व्यापक कार्यान्वयन से बचना जो जीवाश्म ईंधन पर निरंतर निर्भरता को बढ़ावा देते हैं।
  • स्टोरेज एटलस विकसित करना: भंडारण उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि अभिग्रहण और सुरक्षित, सुलभ भंडारण के बिना CCUS अप्रभावी है।
  • तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) को निवेश जोखिम को कम करने के लिये समाप्त हो चुके तेल एवं गैस क्षेत्रों (जैसे, बॉम्बे हाई) तथा गहरे लवणीय जलभृतों का मानचित्रण करना चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं वित्त: CCUS प्रौद्योगिकी और वित्त के लिये विकसित देशों के साथ वार्ता करना, इसे ग्लोबल साउथ औद्योगीकरण के लिये महत्त्वपूर्ण स्थान देना चाहिये। जलवायु पुनर्स्थापन प्रौद्योगिकियों में अग्रणी बनने के लिये डायरेक्ट एयर कैप्चर (DAC) और BECCS के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।

निष्कर्ष

प्राथमिक जलवायु रणनीति के रूप में CCUS पर एशिया की अत्यधिक निर्भरता से भारी उत्सर्जन, आर्थिक अवरोध और 1.5°C के लक्ष्य को प्राप्त न करने का जोखिम उत्पन्न करती है। भारत और अन्य देशों के लिये, महॅंगे और अकुशल CCUS की बजाय नवीकरणीय ऊर्जा तथा हरित हाइड्रोजन जैसे सिद्ध एवं किफायती विकल्पों को प्राथमिकता देना, कार्बन-मुक्ति का अधिक व्यवहार्य मार्ग है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. कार्बन अभिग्रहण, उपयोग और भंडारण (CCUS) क्या है? जलवायु परिवर्तन से निपटने में CCUS के जोखिमों और सीमाओं का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. कार्बन अभिग्रहण, उपयोग और भंडारण (CCUS) क्या है?
CCUS विद्युत संयंत्रों, उद्योगों या वायुमंडल से CO₂ को एकत्रित करता है और इसे भूवैज्ञानिक संरचनाओं में भंडारण के लिये ले जाता है या जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु औद्योगिक उपयोग करता है।

2. संवर्धित तेल पुनर्प्राप्ति (EOR) CCUS परियोजनाओं से कैसे जुड़ी है?
वर्तमान CCS परियोजनाओं में से लगभग 80% संवर्धित तेल पुनर्प्राप्ति (EOR) के लिये संचित CO₂ का उपयोग करती हैं, जिससे जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण का विस्तार होता है, जिससे इस तकनीक की जलवायु शमन क्षमता कम हो जाती है।

3. एशिया की CCUS योजनाओं को जोखिम भरा क्यों माना जाता है?
ये वर्ष 2050 तक 24.9 गीगाटन अतिरिक्त CO₂ का उत्पादन कर सकती हैं, अर्थव्यवस्थाओं को जीवाश्म ईंधन पर निर्भर कर सकती हैं और स्वच्छ, लागत-प्रभावी तकनीकों से निवेश को हटा सकती हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रीलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित कृषि पद्धतियों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. समोच्च मेंडबंदी (कंटूर बंडिंग)
  2.  रिले फसल 
  3.  शून्य जुताई

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उपर्युक्त में से कौन-सा मिट्टी में कार्बन अधिग्रहण/भंडारण में सहायक है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (b)


प्रश्न. कार्बन डाइ-ऑक्साइड के मानवजनित उत्सर्जन के कारण होने वाले ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन कार्बन पृथक्करण के लिये संभावित स्थल हो सकता है? (2017)

  1. परित्यक्त और गैर-आर्थिक कोयले की तह 
  2.  तेल और गैस भंडारण में कमी 
  3.  भूमिगत गहरी लवणीय संरचनाएँ

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)