महिलाओं में अंधापन/मोतियाबिंद का प्रभाव | 18 Jul 2019

चर्चा में क्यों?

एक अध्ययन के अनुसार, भारतीय महिलाओं में लिंग विभेद तथा कुछ जैविक कारकों की वज़ह से पुरुषों की तुलना में अंधेपन (Blindness) की संभावना 35 प्रतिशत अधिक पाई जाती है।

प्रमुख बिंदु

  • ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑपथैल्मोलॉजी (British Journal of Ophthalmology) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक संदर्भ में महिलाओं में मोतियाबिंद (Cataract) बढ़ने की संभावना उनके समकक्ष पुरुषों की तुलना में 69 प्रतिशत अधिक हैं।
  • इस अनुसंधान के लिये अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टरों की एक टीम ने अंधेपन से संबंधित 22 अध्ययनों और मोतियाबिंद सर्जिकल कवरेज (Cataract Surgical Coverage-CSC) की पहुँच का विश्लेषण किया।
  • अध्ययन के अनुसार, अंधापन (35 प्रतिशत) तथा मोतियाबिंद अंधापन (33 प्रतिशत) में लिंग विभेद की प्रमुख भूमिका होती है।
  • आँखों के लेंस को पहनने तथा अधिक रोने से निकलने वाले आंसुओं के कारण मोतियाबिंद होता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, मोतियाबिंद की संभावना भी बढ़ती जाती है।
  • महिलाओं के बीच CSC की कम कवरेज के कारण पुरुषों की तुलना में केवल 27 प्रतिशत महिलाओं की सर्जरी हो पाती है।
  • उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान और नाइज़ीरिया में भी इसी तरह की प्रवृत्ति देखी गई।

भारत में महिलाओं में अंधेपन तथा मोतियाबिंद के कारण

  • वर्ष 1970 के दशक में भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय दृष्टिहीनता नियंत्रण कार्यक्रम (National Blindness Control Programme-NBCP) शुरू किया था, लेकिन आज भी इसके कार्यान्वयन में बड़ा अंतराल बना हुआ है। इस कार्यक्रम का लाभ महिलाओं से ज़्यादा पुरुषों को प्राप्त हुआ है।
  • पारंपरिक रूप से स्वास्थ्य सेवाओं के कवरेज़ तक महिलाओं की पहुँच बहुत कम पाई गई, इसका कारण संभवतः यह है कि मोतियाबिंद सर्जरी के लिये गाँव के बाहर जाने की आवश्यकता होती है। ग्रामीण महिलाओं के लिये दैनिक और कृषिगत कार्यों को छोड़कर सर्जरी के लिये शहर के चक्कर लगाना संभव नहीं हो पाता है।
  • इसका एक अन्य कारण यह भी है कि आँखों की सर्जरी को महिलाओं की तुलना में पुरुषों के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि वे परिवार में आजीविका कमाने वाले सदस्य होते हैं और भारतीय समाज की पितृसत्तात्मक व्यवस्था में उनके स्वास्थ्य को महिलाओं की अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया जाता है।
  • सामाजिक-आर्थिक कारकों के अलावा एस्ट्रोजन की कमी भी महिलाओं में मोतियाबिंद के अंधेपन का एक प्रमुख कारण है। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजेन का स्तर कम हो जाता है। इसके कारण उनमें मोतियाबिंद की संभावना बढ़ जाती है।
  • गाँवों में मोतियाबिंद से जुड़े मिथकों के साथ जागरूकता की कमी भी इस जोखिम में अहम् योगदान करती है। अक्सर लोगों के बीच ऐसे मिथक देखने को मिलते है कि मोतियाबिंद के परिपक्व होने तक सर्जरी नहीं करानी चाहिये। डॉक्टरों के मुताबिक, ऐसे मिथक पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज़्यादा प्रभावित करते हैं।

राष्ट्रीय दृष्टिहीनता नियंत्रण कार्यक्रम

  • इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1976 में हुई।
  • यह एक केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है, इसमें पहले से जारी ट्रैकोमा नियंत्रण कार्यक्रम को भी शामिल किया गया था।
  • ट्रैकोमा नियंत्रण कार्यक्रम वर्ष 1963 में शुरू हुआ था।
  • इस कार्यक्रम का लक्ष्य उस समय अंधेपन की व्यापकता को कम करना तथा भविष्य में होने वाले मामलों को रोकने के लिये प्रत्येक वर्ष आधारभूत ढाँचा एवं कार्यक्षमता स्थापित करना है।
  • इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
    • प्रत्येक 5 लाख की आबादी के लिये नेत्र देखभाल सुविधाएँ स्थापित करना।
    • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, उप-ज़िले के सभी स्तरों पर नेत्र देखभाल सेवाओं के लिये मानव संसाधन को विकसित करना।
    • स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना।
    • नागरिक समाज और निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष

अनुसंधानकर्त्ताओं के अनुसार, यदि नेत्र स्वास्थ्य देखभाल की पहुँच को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक विस्तारित किया जाता है, तो इससे महिलाओं की स्थिति और अधिक बेहतर हो सकती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अधिक सामाग्रियों/उपकरणों की आवश्यकता भी नहीं होती है।

इसके साथ ही झूठे मिथकों के प्रति लोगों में सूचना, शिक्षा और संचार के माध्यम से जागरूकता लाकर महिलाओं में अंधेपन एवं मोतियाबिंद के स्तर में सुधार लाया जा सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ