कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता में वृद्धि | 24 Jan 2020

प्रीलिम्स के लिये:

कार्बन डाइऑक्साइड

मेन्स के लिये:

कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ने से भारतीय क्षेत्रों पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट ‘इम्पैक्टस ऑफ कार्बन डाइऑक्साइड इमिसंस ऑन ग्लोबल इंटेंस हाइड्रोमीट्रोलोज़िकल डिज़ास्टर्स’ (Impacts of Carbon Dioxide Emissions on Global Intense Hydrometeorological Disasters) में भारत में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता की वृद्धि के प्रभावों का उल्लेख किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • इस रिपोर्ट ने जलवायु परिवर्तन और जल-मौसम संबंधी घटनाओं विशेष रूप से दुनिया भर में बाढ़ और तूफान की बढ़ती घटनाओं के बीच एक कड़ी स्थापित की है।
  • इस रिपोर्ट को 155 देशों से एकत्रित किये गए 46 वर्ष (वर्ष 1970-2016) के जलवायु संबंधी आँकड़ों के आधार परतैयार किया गया है।
  • इस रिपोर्ट में किया गया विश्लेषण ‘इकोनॉमीट्रिक मॉडलिंग’ (Econometric Modelling) पर आधारित है, जिसके अंतर्गत किसी देश की खतरों के प्रति भेद्यता, सकल घरेलू उत्पाद, जनसंख्या घनत्व और औसत वर्षा में परिवर्तन संबंधी आँकड़ों को शामिल किया जाता है।

अध्ययन से संबंधित प्रमुख बिंदु:

  • ‘क्लाइमेट, डिज़ास्टर एंड डेवलपमेंट’ (Climate, Disaster and Development) नामक जर्नल में प्रकशित इस अध्ययन के अनुसार, भारत में कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती सांद्रता के कारण वातावरण में अतिशय बाढ़ या तूफान का जोखिम प्रत्येक 13 वर्षों के अंतराल पर दोगुना हो सकता है। इससे भारत में तबाही की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • वार्षिक रूप से लगभग एक चरम आपदा का सामना करने वाले भारत में तीव्र ‘जलीय-मौसम संबंधी’ (Hydro-Meteorological) आपदाओं की संख्या वार्षिक रूप से 5.4% तक बढ़ सकती है।

चरम आपदा:

(Extreme Disaster):

एक ऐसी आपदा जो 100 या उससे अधिक मौतों का कारण बनती है या जिससे 1,000 या अधिक व्यक्ति प्रभावित होते हैं।

  • वर्ष 2018 में भारत के केरल में आई बाढ़ की एक और चरम घटना, जिसमें लगभग 400 व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी, ने देश में आपदा का सामना करने की क्षमता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया।
  • पिछले चार दशकों में वैश्विक स्टार पर तीव्र बाढ़ और तूफान की घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि वायुमंडलीय CO2 की सांद्रता में निरंतर वृद्धि के कारण हुई।
  • भारत को एक सामान्य देश से 5-10 गुना अधिक चरम आपदाओं के जोखिम का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह:

  • भारत की अवस्थिति भौगोलिक रूप से अधिक विविधता वाली है। इसमें एक ओर हिमालय जैसे पर्वत शिखर तो दूसरी ओर बड़े-बड़े समुद्री तट हैं। इसके अतिरिक्त सदाबहार से लेकर मौसमी नदियों तक का भारत में नदियों का विस्तृत संजाल मौजूद है, साथ ही भारत के मुख्य भागों में वर्षा की अवधि का वर्ष में निश्चित समय है।
  • इससे वर्षा ऋतु के दौरान बड़ी मात्रा में जलभराव एवं बाढ़ की समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • उपर्युक्त भौगोलिक कारकों के अतिरिक्त मानवीय कारक भी इसके लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • यह भी ध्यान देने योग्य है कि प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ से बड़ी मात्रा में जन-धन की हानि होती है, साथ ही इससे सर्वाधिक नकारात्मक रूप से समाज का सबसे गरीब वर्ग प्रभावित होता है।
  • इस आलोक में बाढ़ जैसी आपदा की रोकथाम तथा बाढ़ से होने वाली हानि को कम करने के लिये ज़रूरी प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
  • विभिन्न सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों द्वारा बाढ़ के प्रभावों को कम करने के प्रयास किये जा रहे हैं। किंतु ये प्रयास तब तक ऐसी आपदाओं को रोकने में कारगर नहीं हो सकेंगे जब तक कि मानव निर्मित कारकों जैसे- जलवायु परिवर्तन, निर्वनीकरण, अवैज्ञानिक विकास आदि को नहीं रोका जाता।

स्रोत- द हिंदू