कैलिफोर्निया का असेंबली बिल 5 (AB5) | 13 Sep 2019

संदर्भ

कैलिफोर्निया (California) की ‘गिग इकॉनमी’ (Gig Economy) को झटका देते हुए राज्य के नीति निर्माताओं ने एक ऐतिहासिक विधेयक पारित किया है। कैलिफोर्निया के इस नए विधेयक को असेंबली बिल 5 (Assembly Bill 5-AB5) नाम दिया गया है।

कैलिफोर्निया का विधेयक

  • कैलिफोर्निया का यह विधेयक राज्य की सभी फर्मों के लिये यह अनिवार्य बनाता है कि वे अपने स्वतंत्र ठेकेदारों (Independent Contractors) को कर्मचारी के रूप में वर्गीकृत करें।
  • अनुमानतः यह विधेयक राज्य के 1 मिलियन लोगों को प्रभावित करेगा, जो आउटसोर्सिंग (Outsourcing) और फ्रेंचाइजिंग (Franchising) के कार्य में लंबे समय से लगे हुए हैं।
  • राज्य के बहुत से लोग वास्तविक कर्मचारी न होने के कारण न्यूनतम मज़दूरी और बेरोज़गारी बीमा जैसी बुनियादी सुरक्षा के अभाव में कार्य कर रहे हैं।
  • यह विधेयक कैलिफोर्निया में कार्य कर रही सभी एप (App) आधारित कंपनियों जैसे- उबर इत्यादि पर लागू होगा।

‘गिग इकॉनमी’ का आशय

  • लगातार डिजिटल हो रहे विश्व में रोज़गार की परिभाषा और कार्य का स्वरूप भी बदल रहा है। एक नई वैश्विक अर्थव्यवस्था उभर रही है, जिसको नाम दिया जा रहा है 'गिग इकॉनमी’। दरअसल, गिग इकॉनमी में फ्रीलान्स कार्य और एक निश्चित अवधि के लिये प्रोजेक्ट आधारित रोज़गार शामिल हैं।
  • गिग इकॉनमी में किसी व्यक्ति की सफलता उसकी विशिष्ट निपुणता पर निर्भर करती है। असाधारण प्रतिभा, गहरा अनुभव, विशेषज्ञ ज्ञान या प्रचलित कौशल प्राप्त श्रम-बल ही ‘गिग इकॉनमी’ में कार्य कर सकता है।
  • आज कोई व्यक्ति सरकारी नौकरी कर सकता है या किसी प्राइवेट कंपनी में कार्य कर सकता है या फिर किसी मल्टीनेशनल कंपनी में रोज़गार ढूँढ सकता है, लेकिन ‘गिग इकॉनमी’ एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार काम कर सकता है।
  • यह भी कहा जा सकता है कि गिग इकॉनमी में कंपनी द्वारा तय समय में प्रोजेक्ट पूरा करने के एवज़ में भुगतान किया जाता है, इसके अतिरिक्त किसी भी चीज़ से कंपनी का कोई मतलब नहीं होता।

‘गिग इकॉनमी’ के फायदे

  • कार्य में लचीलापन: पारंपरिक कर्मचारियों के विपरीत, गिग श्रमिकों को यह चुनाव करने की स्वतंत्रता होती है कि वे क्या कार्य करना चाहते हैं, किस प्रकार करना चाहते हैं, कब करना चाहते हैं एवं कहाँ करना चाहते हैं। घर से कार्य करने में सक्षम होने के कारण वे अपने कार्य और निजी जीवन में आवश्यक संतुलन भी स्थापित कर पाते हैं।
  • कार्य में विविधता: गिग श्रमिक प्रतिदिन कई प्रकार के कार्य करते हैं और कई प्रकार के लोगों के साथ कार्य करते हैं, जिससे उनके कार्य में विविधता बनी रहती है।
  • श्रम लागत में कमी: यदि सेवा प्रदाताओं के दृष्टिकोण से देखें तो ‘गिग इकॉनमी’ काफी मितव्ययी है, क्योंकि इसमें एक सेवा प्रदाता अपनी आवश्यकतानुसार, किसी भी समय गिग श्रमिक को नियुक्त कर सकता है और उसे मासिक वेतन देने की भी आवश्यकता नहीं होती।

‘गिग इकॉनमी’ के नुकसान

  • श्रमिकों के लिये बुनियादी सुविधाओं का अभाव: गिग श्रमिकों को सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि उन्हें पारंपरिक श्रमिकों के इतर किसी भी प्रकार की बुनियादी सुविधाएँ जैसे- न्यूनतम मज़दूरी और बेरोज़गारी बीमा आदि नहीं मिल पाती हैं।
  • रोज़गार की अस्थायी प्रकृति: चूँकि ‘गिग इकॉनमी’ में कार्य करने वाले सभी श्रमिक अस्थायी रूप से नियुक्त किये जाते हैं। अतः उनके समक्ष सदैव यह स्थिति बनी रहती है कि वे किसी भी समय आर्थिक संकट का सामना कर सकते हैं।
  • प्रशिक्षण और कौशल विकास के अवसरों की कमी: सभी कंपनियाँ अपनी उत्पादकता को बढ़ाने के लिये अपने कर्मचारियों को समय-समय पर उचित प्रशिक्षण और कौशल विकास के अवसर प्रदान करती हैं, परंतु चूँकि गिग श्रमिक कंपनियों के स्थायी कर्मचारी नहीं होते इसलिये उन्हें इस प्रकार का कोई भी अवसर प्राप्त नहीं होता।

भारत और गिग इकॉनमी

  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 में अमेरिका में जहाँ श्रम शक्ति का 31 प्रतिशत भाग गिग इकॉनमी के तहत कार्य कर रहा था वहीं भारत में यह आँकड़ा 75 प्रतिशत था, परंतु वर्तमान में भी दोनों देशों के आर्थिक परिदृश्यों में बहुत अधिक अंतर है।
  • अमेरिका में 31 प्रतिशत श्रम गिग इकॉनमी में इसलिये कार्य कर रहे थे, क्योंकि वे सक्षम थे जबकि भारत में बड़ी संख्या में लोग इस व्यवस्था का हिस्सा इसलिये थे क्योंकि उनके पास कोई एनी विकल्प नहीं था। यहाँ यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि दैनिक मज़दूरी करने वालों को भी गिग इकॉनमी का ही हिस्सा माना जाता है।
  • भारत में 40 प्रतिशत लोग इतना ही कमा पाते हैं कि वे दो वक्त की रोटी खा सकें। बचत के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं है और वे लगातार गरीबी में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं।
  • अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण के कारण और भी लोग गिग इकॉनमी का हिस्सा बनने को मज़बूर हो गए हैं जिसके कारण उसके समक्ष अस्थायी रोज़गार का संकट और गहरा गया है।
  • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक अकेले अमेरिका में अगले दो दशकों में डेढ़ लाख रोज़गार खत्म हो जाएंगे। अमेरिका में तो मानव संसाधन इतना दक्ष है कि उसे गिग इकॉनमी का हिस्सा बनने में कोई समस्या नहीं आएगी, लेकिन भारत में यह स्थिति नहीं है।

स्रोत: द हिंदू