पृथ्वी विज्ञान की ओ-स्मार्ट योजना को मंज़ूरी | 30 Aug 2018

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने एक व्यापक योजना ‘महासागरीय सेवाओं, प्रौद्योगिकी, निगरानी, संसाधन प्रतिरूपण और विज्ञान (O-SMART)’ को अपनी मंज़ूरी दी।

प्रमुख बिंदु

  • इस योजना की कुल लागत 1623 करोड़ रुपए है और यह योजना 2017-18 से 2019-20 की अवधि के दौरान लागू रहेगी।
  • इस येाजना में महासागर के विकास से जुड़ी 16 उप-परियोजनाओं जैसे – सेवाएँ, प्रौद्योगिकी, संसाधनों के प्रेषण और विज्ञान को शामिल किया गया है।
  • अगले दो वर्षों के दौरान विचार किये जाने वाले महत्त्वपूर्ण विषय इस प्रकार है-
    ♦ महासागरीय निगरानी तंत्र का विस्तार ।
    ♦ मछुआरों के लिये  महासागरीय सेवाओं में वृद्धि।
    ♦ समुद्र तटीय प्रदूषण की निगरानी के लिये समुद्र तट पर वेधशालाओं की स्थापना।
    ♦ वर्ष 2018 में कावारती में महासागर ताप ऊर्जा संरक्षण संयंत्र (OTEC) की स्थापना।
    ♦ तटीय अनुसंधान के लिये  दो तटीय अनुसंधान पोतों का अधिग्रहण।
    ♦ महासागरीय सर्वेक्षण जारी रखना और खनिज तथा सजीव संसाधनों का अन्वेषण।
    ♦ गहरे समुद्र में खनन- गहरी खनन प्रणाली के लिये प्रौद्योगिकी विकसित करना।
    ♦ मानव युक्त पनडुब्बियाँ और लक्षद्वीप में छह विलवणीकरण संयंत्रों की स्थापना।

प्रभाव:

  • O-SMART के अंतर्गत दी जाने वाली सेवाओं से तटीय और महासागरीय क्षेत्रों के अनेक क्षेत्रों जैसे -मत्स्यपालन, समुद्र तटीय उद्योग, तटीय राज्यों, रक्षा, नौवहन, बंदरगाहों आदि को आर्थिक लाभ मिलेगा।
  • वर्तमान में पाँच लाख मछुआरों को मोबाइल के ज़रिये रोजाना सूचना प्रदान की जाती है, जिसमें मछलियाँ मिलने की संभावना वाले क्षेत्र और समुद्र तट के स्थानीय मौसम की स्थिति की जानकारी शामिल है।
  • इस योजना से मछुआरों का मछलियों की तलाशी में व्यतीत होने वाले वाला समय बचेगा जिसके परिणामस्वरूप ईंधन की बचत होगी।
  • O-SMART के कार्यान्वयन से सतत विकास लक्ष्य के 14वें बिंदु से जुड़े मुद्दों के समाधान में मदद मिलेगी, जिनका उद्देश्य महासागरों के इस्तेमाल, उनके निरंतर विकास के समुद्री संसाधनों का संरक्षण करना है।
  • यह योजना ब्लू अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं के कार्यान्वयन के लिये आवश्यक वैज्ञानिक और तकनीकी पृष्ठभूमि प्रदान करेगी।
  • इस योजना के अंतर्गत स्थापित आधुनिक पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ सुनामी, झंझावात जैसी समुद्री आपदाओं से प्रभावी तरीके से निपटने में मदद करेंगी।
  • इस योजना के अंतर्गत विकसित प्रौद्योगिकियाँ भारत के आस-पास के समुद्रों से विशाल समुद्री सजीव और निर्जीव संसाधनों को उपयोग में लाने में मदद करेंगी।

पृष्ठभूमि

  • नवंबर 1982 में लागू महासागर नीति के अनुसार, मंत्रालय मुख्य रूप से सागर विकास के क्षेत्र में कई बहु-अनुशासनात्मक परियोजनाओं को कार्यान्वित कर रहा है जिनमें-
  • महासागरीय सूचना सेवाओं का समूह की रूप में प्रदान करने, समुद्री संसाधनों को निरंतर उपयोग में लाने के लिये प्रौद्योगिकी विकसित करने, अग्रिम श्रेणी के अनुसंधान को बढ़ावा देने और महासागरीय वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराना आदि शामिल है। 
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के कार्यक्रमों/नीतियों को उसके स्वायत्तशासी संस्थानों यानी राष्ट्रीय महासागरीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय राष्ट्रीय महासागरीय सूचना सेवा केंद्र, राष्ट्रीय अंटार्कटिक और महासागरीय अनुसंधान केंद्र तथा संबद्ध कार्यालय, समुद्र तट सजीव संसाधन और पारिस्थितिकी केंद्र, राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र तथा अन्य राष्ट्रीय संस्थानों के ज़रिये लागू किया जा रहा है।
  • अनुसंधान में आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिये प्रौद्योगिकी युक्त अनुसंधान पोतों का बेड़ा, यानी ‘सागर निधि’, समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत ‘सागर कन्या’, मत्स्यपालन और समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत ‘सागर संपदा’ तथा तटीय अनुसंधान पोत ‘सागर पूर्वी’ की मदद ली गई है।
  • मंत्रालय विभिन्न तटीय साझेदारों जैसे मछुआरों, तटीय राज्यों, अपतटीय उद्योग, नौसेना, तटरक्षक आदि को समुद्र से जुड़ी अनेक प्रकार की सूचना सेवाएँ प्रदान कर रहा है।
  • हिंद महासागर क्षेत्र के पड़ोसी देशों को भी इनमें से कुछ सेवाएँ दी गई हैं।
  • भारत की महासागर संबंधी गतिविधियों का विस्तार अब आर्कटिक से अंटार्कटिक क्षेत्र तक हो गया है, जिसमें बड़ा महासागरीय क्षेत्र शामिल है और जिस पर यथास्थान व्यापक स्तर पर और उपग्रह आधारित वेधशालाओं के ज़रिये निगरानी रखी जा रही है।
  • भारत ने समुद्री आपदाओं जैसे- सुनामी, समुद्री तूफान, झंझावात आदि के लिये आधुनिक पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ स्थापित की हैं।
  • गौरतलब है कि भारत अंटार्कटिक संधि प्रणाली पर हस्ताक्षर कर चुका है और संसाधनों के उपयोग के लिये अंटार्कटिक समुद्र तटीय आजीविका संसाधन संरक्षण आयोग (CCAMLR) में शामिल हो चुका है।
  • महासागरीय संसाधनों के इस्तेमाल की प्रौद्योगिकियों का विकास विभिन्न चरणों में है। इनमें से कुछ जैसे- द्वीपों के लिये कम तापमान वाली तापीय विलवणीकरण प्रणाली काम कर रही है।
  • इसके अलावा मंत्रालय तटरेखा में बदलावों और समुद्र तटीय पारिस्थितिकी प्रणाली सहित भारत के तटीय जल की शुद्धता की निगरानी कर रहा है।