आम बजट में कृषि पर ध्यान देने की आवश्यकता | 30 Jan 2017

सन्दर्भ

प्रायः हर वर्ष बजट में कृषि को शीर्ष प्राथमिकताओं में गिनाने की कवायद चली आ रही है| ऐसे में वर्ष 2017-18 का आगामी बजट भी अलग नहीं होगा| चूँकि अतीत में चलाई गई ऐसी तमाम योजनाएँ और नीतियाँ कृषि क्षेत्र की परेशानी दूर करने में नाकाम रही हैं, इसलिये इस बार आम बजट में सरकार को कुछ अलग करना होगा|

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • हाल के दिनों में किसानों के संकट की मुख्य वजह लगातार दो बार सूखा पड़ना और उसके बाद अच्छे मॉनसून की बदौलत खरीफ की बंपर पैदावार के बावजूद उपज के मूल्य में भारी गिरावट आना रही है|
  • नकदी की किल्लत से जूझ रहे किसानों को फौरी राहत देने के लिये बजट से पहले ही कुछ उपाय किये जा चुके हैं। इसमें नोटबंदी के बाद अल्पावधि के फसल ऋण पर दो माह के लिये ब्याज नहीं लेना और किसान क्रेडिट कार्ड को रूपे डेबिट कार्ड में बदलना शामिल है। परंतु ग्रामीण क्षेत्रों की वित्तीय दिक्कतें दूर करने के लिये यह नाकाफी होगा|
  • खस्ताहाल ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान फूँकने और व्यापक आर्थिक लाभ के लिये ग्रामीण मांग में तेज़ी लाने के लिये रोज़गार के अवसर पैदा करने होंगे और ग्रामीण इलाकों में कृषि तथा गैर-कृषि आय में इज़ाफा करना होगा।
  • कृषि क्षेत्र में संस्थागत ऋण में विस्तार हुआ है और यह वर्ष 2003-04 के 87,000 करोड़ रुपए से बढ़कर अब 9,00,000 करोड़ रुपए तक जा पहुँचा है। इसके परिणामस्वरूप किसानों पर क़र्ज़ का बोझ बढ़ा है जबकि उनकी आय में कोई खास इज़ाफा नहीं हुआ है। ऐसे में, बजट में किसानों की ऋण पर निर्भरता कम करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • इसके लिये कुछ खास क्षेत्रों में सुधार किया जाए और उनको मज़बूत बनाया जाए तो कृषि उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। इसमें कच्चे माल का किफायती इस्तेमाल और कृषि व गैर-कृषि क्षेत्र में उपज का मूल्यवर्द्धन शामिल है।