बैंगन में ग्राफ्टिंग तकनीक | 17 Apr 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (Tamil Nadu Agricultural University- TNAU) ने बैंगन की उपज को बढ़ावा देने के लिये एक तकनीक विकसित की है जिसे ग्राफ्टिंग तकनीक (Grafting Technology) नाम दिया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • अधिकतर विदेशों में ग्राफ्टिंग तकनीक विशेषकर सब्जी की फसलों के लिये व्यापक रूप से प्रचलित है।
  • यह पौधों में पोषक तत्त्वों को बढ़ाती है, साथ ही मृदा जनित रोगों के प्रतिरोधक विकसित करके पौधों की वृद्धि करती है।
  • सामान्यतः पौधे उथले जड़ वाले होते हैं लेकिन ग्राफ्टिंग विधि में इनकी जड़ें गहरी होती हैं। इसके लिये ज़्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है।
  • बैंगन का पौधा कीटों और रोगों के लिये अतिसंवेदनशील होता है। इसलिये इस विधि को अपनाया गया है।

Brinjal

ग्राफ्टिंग तकनीक: Grafting Technology

  • ग्राफ्टिंग तकनीक वह विधि है जिसमें दो अलग-अलग पौधों के कटे हुए तनों को लेते हैं इसमें एक जड़ सहित और दूसरा बिना जड़ वाला होता है। दोनों को इस तरह से एक साथ लाया जाता है कि दोनों तने संयुक्त हो जाते हैं और एक ही पौधे के रूप में विकसित होते हैं। इस नए पौधे में दोनों पौधों की विशेषताएँ होती हैं।
  • जड़ वाले पौधे के कटे हुए तने को स्टॉक (Stock) और दूसरे जड़ रहित पौधे के कटे हुए तने को सायन (Scion) कहा जाता है।
  • यह पोषक तत्त्वों को बढ़ाकर तथा उपयुक्त रूट स्टॉक्स के साथ मिट्टी जनित रोगों के प्रतिरोधक विकसित करके पौधों की वृद्धि करता है।
  • ग्राफ्टिंग का उपयोग विभिन्न प्रकार के पौधों जैसे- गुलाब, सेब, एवोकैडो आदि में किया जाता है।

स्रोत- बिज़नेस लाइन