ब्रिक्स देशों के विदेशी कर्ज़ | 25 Jan 2017

सन्दर्भ 

  • हाल ही में विभिन्न देशों के विदेशी कर्ज़ से संबंधित आँकड़े सामने आ चुके हैं। ऐसे आँकड़ों को लेकर पहला सवाल यही रहता है कि इसमें भारत का प्रदर्शन कैसा रहा? अक्सर यह सुनने को मिलता रहा कि भारत निचले पायदानों पर है। लेकिन अपने ब्रिक्स सहयोगियों की तुलना में भारत की स्थिति उतनी भी लचर नहीं रही है।
  • गौरतलब है कि 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद से भारत विदेशी कर्ज़ के जाल से बचा रहा है। यदि कोई देश विदेशी कर्ज़ के जाल में फँस जाए तो उस देश को अपने ब्याज भुगतान तक के लिये विदेशी कर्ज़ पर निर्भर रहना पड़ता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2000 से 2015 के दौरान चीन विदेशी क़र्ज़ के मामले में अत्यधिक सहज स्थिति में था। नई सहस्राब्दि की शुरुआत से लेकर अब तक चीन के सकल राष्ट्रीय आय के अनुपात में उसका विदेशी कर्ज़ 15 फीसदी से कम के स्तर पर रहा है। वहीं भारत के सकल राष्ट्रीय आय की अनुपात में विदेशी कर्ज़ का स्तर 20 फीसदी के आसपास रहा है।
  • इसके उलट दक्षिण अफ्रीका की स्थिति में तेजी से गिरावट आई है। गत 15 वर्ष में उसके विदेशी कर्ज़ का स्तर लगभग 20 फीसदी से बढ़ता हुआ 45 फीसदी तक पहुँच गया है। इस बीच ब्राज़ील ने अपनी स्थिति सुधारी है और वह वर्ष 2002 के लगभग 50 फीसदी से सुधरकर वर्ष 2015 में 30 फीसदी तक आ पहुँचा है। रूस की अर्थव्यवस्था पेट्रोलियम आधारित है इसलिये उसके बारे में आसानी से कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है।
  • किसी भी देश की विदेशी कर्ज़ को चुकाने की क्षमता उसकी निर्यात क्षमता पर निर्भर करती है। किसी देश के निर्यात और सकल राष्ट्रीय आय का अंतर यह बताता है कि वह देश किस हद तक आत्मनिर्भर है।
  • वर्ष 2015 में ब्राज़ील में निर्यात और सकल राष्ट्रीय आय का अनुपात 13.6 फीसदी था, चीन में यह 24.6 फीसदी, रूस में 33.4 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका में 34.4 फीसदी और भारत में 21.6 फीसदी था।
  • निश्चित रूप से वर्ष 2000 से 2015 के बीच सभी देशों ने उल्लेखनीय प्रगति की है। ब्राज़ील के निर्यात और सकल राष्ट्रीय आय का अनुपात में जहाँ 2.8 फीसदी बढ़ोतरी हुई, वहीं चीन में 7.6 फीसदी, भारत में 8.4 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका में 4.7 फीसदी की वृद्धि हुई है। केवल रूस के निर्यात और सकल राष्ट्रीय आय के अनुपात में 12.2 फीसदी की गिरावट देखी गई है। ज़ाहिर है ऐसा वैश्विक पेट्रोलियम कीमतों में आई गिरावट की वज़ह से हुआ है।