50 से अधिक वस्त्र उत्पादों पर आयात शुल्क हुआ दोगुना | 18 Jul 2018

चर्चा में क्यों?

घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने जैकेट, सूट और कालीन जैसे 50 से अधिक कपड़ा उत्पादों पर आयात शुल्क को 20% तक बढ़ा दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा-शुल्क बोर्ड ने अधिकांश वस्त्र उत्पादों पर आयात शुल्क को बढ़ाकर दोगुना कर दिया गया है। 
  • केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा-शुल्क बोर्ड (Central Board of indirect Taxes and Custom-CBIC) द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक, कोट, पैंट, जैकेट तथा महिलाओं के वस्त्रों पर आयात शुल्क को 10 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया गया है।
  • कुछ वस्तुओं पर, दर 20 प्रतिशत या 38 रुपए प्रति वर्ग मीटर होगी जो कि पहले की तुलना में बहुत अधिक है।  

केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड
(Central Board of indirect Taxes and Custom-CBIC)

  • केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) वित्त मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत राजस्व विभाग का एक भाग है। 
  • इस बोर्ड का मुख्य कार्य उगाही (शुल्क-संग्रह) से संबंधित नीतियों का क्रियान्वयन करना, केंद्रीय उत्पाद-शुल्क एवं सीमा-शुल्क की उगाही करना एवं तस्करी से संबंधित गतिविधियों को रोकना है।
  • वर्तमान में इसके अध्यक्ष एस रमेश हैं।•
  •  आयातित उत्पाद जो महँगे हुए हैं उनमें बुने हुए कपडे, पोशाक, ट्राउज़र, सूट और बच्चों के वस्त्र शामिल हैं।
  • बांग्लादेश जैसे अल्प-विकसित देशों की भारतीय बाज़ारों में पहुँच शुल्क मुक्त रहेगी।
  • WTO मानदंडों के मुताबिक, भारत कपड़ा क्षेत्र को और प्रोत्साहन नहीं दे पाएगा तथा सरकार ने घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये आयात शुल्क में वृद्धि की है।
  • उल्लेखनीय है कि जून में धागा, कपड़ा और इनसे बने सामानों के आयात में 8.58% की क्रिद्धि के साथ यह 168.64 मिलियन डॉलर हो गया। हालाँकि सूती धागे, कपड़े और इनसे बने सामानों का निर्यात 24% बढ़कर 986.2 मिलियन डॉलर हो गया। मानव निर्मित सूत, कपड़े और इनसे बने सामानों का निर्यात 8.45% बढ़कर 403.4 मिलियन डॉलर हो गया।

कपड़ा उत्पाद पर सीमा-शुल्क बढ़ने से लाभ

  • कुछ तैयार वस्त्र उत्पादों पर सीमा शुल्क बढ़ने से भारतीय कपड़ा निर्माण के लिये लागत का फायदा होगा।
  • कई विदेशी कंपनियाँ घरेलू मांग को पूरा करने के लिये भारत में विनिर्माण पर विचार कर सकती हैं।
  • यह घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि इससे ‘मेक इन इंडिया’ को भी बढ़ावा मिलेगा।