दक्षिण भारत में बोनेट मकाक का अस्तित्व खतरे में | 13 Nov 2017

चर्चा में क्यों?

दक्षिण भारत में बोनेट मकाक (Bonnet Macaques) एक ऐसा बन्दर है जिसके संदर्भ में अक्सर ऐसा अनुमान व्यक्त किया जाता है कि यह प्रायः सभी स्थानों पर आसानी पाया जाता है, का अस्तित्व खतरे में है। हाल ही में प्लॉस वन (PLOS ONE) जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, इनकी संख्या में आ रही गिरावट का एक सबसे अहम् कारण तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण (शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव के परिणामस्वरूप सड़क के किनारे के पेड़ की संख्या में निरंतर कमी आ रही है, साथ ही शहरी क्षेत्रों में वनस्पति भी लगभग नष्ट होती जा रही है) है।

बोनेट मकाक की विशेषताएँ

  • बोनेट मकाक बंदरों की एक स्थानिक सहभोजी प्रकार की प्रजाति हैं।
  • विश्व का यह सबसे पुराना बंदर एक दिनचर प्राणी है। इसका व्यवहार एवं सांकेतिक भाषा बहुत अधिक विशिष्ट होती है। यही कारण है कि इसकी पहचान बहुत सरलता से की जा सकती है। 
  • ये अजगर एवं चीते जैसे शिकारियों के संबंध में एक अलार्म कॉल के रूप में भी कार्य करते हैं। 
  • बोनेट मकाक की दो उप-प्रजातियों की भी पहचान की गई है- एम. आर. रैडाइटा एंव एम. आर. डायलूटा (M. r. radiata and M. r. diluta) ।
  • ये केवल भारत के प्रायद्वीपीय भागों में पाए जाते हैं।  
  • इनमें मनुष्यों के साथ निकटता से रहने की प्रवत्ति विद्यमान होती है।
  • प्राय: इनका निवास स्थान नदी के किनारे अवस्थित मंदिरों से लेकर सड़क के किनारे के पेड़ तक होता है। 

सैकॉन के सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी के अनुसार 

  • बोनेट मकाक की वर्तमान स्थिति का आकलन करने के लिये तमिलनाडु के सलीम अली केंद्र (Salim Ali Centre for Ornithology and Natural History - SACON), सैकॉन सहित कुछ अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा भारतीय प्रायद्वीप की सड़कों (कुल 1,140 किमी.) से संबंधित एक सर्वेक्षण किया गया। 
  • इस सर्वेक्षण के अंतर्गत दक्षिण भारत तक रीसस मकाक के संबंध में एक शोध किया गया। इस सर्वेक्षण में यह पाया गया कि रीसस मकाक कर्नाटक के रायचूर ज़िले के दक्षिण क्षेत्र तक फैले हुए हैं।
  • इस टीम के द्वारा वर्ष 1989 से 2015 तक मैसूर की 651 किलोमीटर की सड़कों पर इस प्रजाति की उपस्थिति के संबंध में यह जानकारी प्रदान की गई कि पिछले लगभग 25 सालों में इस क्षेत्र से इस प्रजाति की 65% जनसंख्या गायब हो गई है। 
  • वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि इन बंदरों के संरक्षण के संबंध में कोई विशेष कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले 10 साल में इनकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा स्थानीय रूप से विलुप्त हो जाएगा। 
  • उच्च-रिज़ॉल्यूशन उपग्रह और गूगल अर्थ द्वारा प्रदत्त वर्ष 2000 से 2006 और 2015 से अभी तक की तस्वीरों में इस क्षेत्र की सड़कों के आसपास और सड़क किनारे के पेड़ पर रहने वाले बंदरों की संख्या में व्यापक अंतर देखा गया है। इस क्षेत्र में संस्पर्शी छतों एवं पेड़ों की कमी के कारण अब इन बंदरों के लिये निवास का संकट पैदा जा रहा है।

निरंतर घटती संख्या 

  • दक्षिण भारत में किये गए सर्वेक्षण में यह पाया गया कि वर्तमान में बोनेट मकाक केवल16 वन-वर्चस्व संरक्षित क्षेत्रों (forest-dominated protected areas) में ही पाए जाते हैं। चिंता की बात यह है कि इन क्षेत्रों में भी इनकी संख्या में पर्याप्त कमी आई है। 

सलीम मुईनुद्दीन अब्दुल अली के विषय में 

  • भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पदम् विभूषण से सम्मानित सलीम मुईनुद्दीन अब्दुल अली एक भारतीय पक्षी विज्ञानी एवं प्रक्रतिवादी थे। उन्हें भारत के बर्डमैन के रूप में भी जाना जाता है। 
  • इन्होंने देश भर में व्यवस्थित रूप में पक्षी सर्वेक्षण का आयोजन किया तथा भारत में पक्षी विज्ञान के विकास में उल्लेखनीय योगदान भी दिया।