भारत में बंधुआ मज़दूरी | 13 Feb 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश के गुना ज़िला प्रशासन द्वारा पंद्रह बंधुआ मज़दूरों को रिहा कराया गया। इन मज़दूरों के साथ उनके नियोक्ता या मालिक द्वारा अमानवीय व्यवहार किये जाने और उन्हें यातनाएँ देने की शिकायतें मिल रही थीं।

प्रमुख बिंदु:

बंधुआ मज़दूरी:

  • यह एक प्रथा है जिसमें नियोक्ता द्वारा श्रमिकों को उच्च-ब्याज दर पर ऋण दिया जाता है तथा श्रमिक द्वारा लिये गए कर्ज़ का भुगतान करने हेतु उससे कम मज़दूरी पर कार्य कराया जाता है।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बंधुआ मज़दूरी को प्रचलित बाज़ार मज़दूरी (Market Wages) और न्यूनतम कानूनी मज़दूरी (Legal Minimum Wages) से कम दर पर मज़दूरी का भुगतान करने के रूप में परिभाषित किया गया है।
  •  ऐतिहासिक रूप से बंधुआ मज़दूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ी थी जहांँ आर्थिक रूप से वंचित समुदाय, किसान ज़मींदारों के यहाँ कार्य  करने के लिये बाध्य थे।
  • असंगठित उद्योगों जैसे- ईंट के भट्टे, पत्थर खदान, कोयला खनन, कृषि श्रम, घरेलू नौकर, सर्कस और यौन दासता इत्यादि में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बंधुआ मज़दूरी विद्यमान है।

अंतर्राष्ट्रीय दायित्व:

  • भारत मज़दूर श्रम, मानव तस्करी और बाल श्रम को समाप्त करने के सतत् विकास लक्ष्य (लक्ष्य 8.7) के तहत वर्ष 2030 तक आधुनिक दासता को समाप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • भारत द्वारा ‘एबोलिशन ऑफ फोर्स्ड लेबर कन्वेंशन’-1957 (नं. 105) की पुष्टि की गई है।
  • भारत ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स (Global Slavery Index) में अपनी रैंक (वर्ष 2018 में 167 देशों में 53 वांँ) में सुधार करने हेतु प्रतिबद्ध है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 23 ज़बरन श्रम पर प्रतिबंध लगाता है।
  • अनुच्छेद 24 कारखानों आदि में बच्चों के रोज़गार (चौदह वर्ष से कम आयु) को प्रतिबंधित करता है।
  • अनुच्छेद 39 श्रमिक पुरुषों और महिलाओं के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के उद्देश्य से  राज्य को निर्देश देता है कि राज्य इस बात को सुनिश्चित करे  कि बच्चों की मासूम उम्र के साथ किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार न किया जाए और नागरिकों को उनकी आर्थिक आवश्यकता की पूर्ति के लिये आयु या क्षमता के विरुद्ध जाकर कार्य करने को मजबूर नहीं किया जाए। 

संबंधित विधान:

  • बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976:
    • यह अधिनियम संपूर्ण देश में लागू है जिसे संबंधित राज्य सरकारों द्वारा लागू किया गया है।
    • यह ज़िला स्तर पर सतर्कता समितियों (Vigilance Committees) के रूप में  एक संस्थागत तंत्र (Institutional Mechanism) का प्रावधान करता है।
      • इस अधिनियम के प्रावधानों को ठीक से लागू करने हेतु सतर्कता समितियांँ ज़िला मजिस्ट्रेट (District Magistrate- DM) को सलाह देती हैं ।
    • राज्य सरकारें/संघ राज्य क्षेत्र, इस अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई हेतु कार्यकारी मजिस्ट्रेट को प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियांँ प्रदान कर सकते हैं।
  • बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास हेतु केंद्रीय क्षेत्र योजना (2016):
    • इसके तहत बंधुआ मज़दूरी से बचाए गए लोगों को उनकी आजीविका के लिये गैर-वित्तीय सहायता के साथ 3 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

बंधुआ मज़दूरी के कारण:

  • श्रमिकों और नियोक्ताओं के मध्य जागरूकता का अभाव।
  •  सज़ा की दर कम होना ।
  • बंधुआ मज़दूरी के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रह।
  • बंधुआ श्रमिकों के मध्य प्रवासी प्रकृति।
  • बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 का कमज़ोर कार्यान्वयन।
  • ज़बरन श्रम हेतु उचित सज़ा (IPC- गैरकानूनी अनिवार्य श्रम की धारा 374) के  प्रावधान का अभाव।
  • राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर सरकारों के मध्य उचित समन्वय का अभाव।

बंधुआ मज़दूरी को समाप्त करने के लिये आवश्यक उपाय:

  • बंधुआ मज़दूरों की सूचना देने और उनकी पहचान करने के लिये जनता को जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय अभियान का आयोजन किया जाना चहिये।
  •  महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा आंशिक रूप से समर्थित राष्ट्रीय बाल हॉटलाइन को लोकप्रिय बनाया जाना। तस्करी ड़ितों हेतु एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन मौजूद है, जो ऑपरेशन रेड अलर्ट के तहत संचालित है।
  • बचाए गए पीड़ितों को फिर से बंधुआ मज़दूरी में शामिल होने से रोकने के लिये उनका उचित पुनर्वास करना।
    • उत्पादक और आय उत्पन्न करने वाली योजनाओं को पहले से ही तैयार किया जाना चाहिये अन्यथा वे अपनी रिहाई के बाद फिर से बंधुआ श्रम प्रणाली में फँस जाएंगे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस