बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) | 30 Aug 2021

प्रिलिम्स के लिये: 

BTR, छठी अनुसूची

मेन्स के लिये:

पूर्वोत्तर में अशांति का कारण और शांति स्थापना हेतु प्रयास 

चर्चा में क्यों?

बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में 1996 के जातीय और सांप्रदायिक दंगों के कारण विस्थापित हुए लोग अब अपने छोड़े गए क्षेत्रों में लौटने के लिये तैयार हैं।

  • गृह मंत्रालय (MHA), असम सरकार और बोडो समूहों ने असम में बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र ज़िला (BTAD) में सत्ता-साझाकरण समझौते को फिर से निर्मित करने और इसका नाम बदलने के संदर्भ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये।

Bodoland-Territorial-Region

प्रमुख बिंदु

  • बोडो के बारे में:
    • जनसंख्या: असम में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों में बोडो सबसे बड़ा समुदाय है। वह असम की आबादी की लगभग 5-6% है।
      • असम में कोकराझार, बक्सा, उदलगुरी और चिरांग ज़िले बोडो प्रादेशिक क्षेत्र ज़िला (BTAD) का गठन करते हैं और यह कई जातीय समूहों का निवास स्थान है।
  • विवाद:
    • अलग राज्य की मांग: बोडो राज्य की पहली संगठित मांग वर्ष 1967-68 में प्लेन ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम नामक राजनीतिक दल द्वारा की गई थी।
    • असम समझौता: वर्ष 1985 में जब असम आंदोलन की परिणति असम समझौते में हुई, तो कई बोडो लोगों ने इसे अनिवार्य रूप से असमिया भाषी समुदाय के हितों पर ध्यान केंद्रित करने के रूप में देखा।
      • इसके परिणामस्वरूप ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (ABSU) और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के नेतृत्त्व में कई बोडो समूह जातीय समुदाय के लिये अलग क्षेत्र की मांग करते रहे हैं, इसके बाद हुए एक आंदोलन में लगभग 4000 लोगों की मृत्यु हो गई थी।
    • लोगों का विस्थापन: वर्ष 1993 और 2014 के बीच 970 से अधिक बांग्ला भाषी मुस्लिम, आदिवासी और बोडो चरमपंथी लोग मुख्य रूप से वर्तमान में  भंग हो चुके नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी के कारण हुई झड़पों में मारे गए।
      • हिंसा से विस्थापित हुए 8.4 लाख लोगों में से कुछ जर्जर राहत शिविरों में रह रहे हैं, जबकि अन्य वर्तमान BTR से आगे के क्षेत्रों में स्थानांतरित हो गए हैं। बोडो-संथाल संघर्ष में 2.5 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए थे।
  • बोडो समझौता:
    • पहला बोडो समझौता: वर्षों के हिंसक संघर्षों के बाद 1993 में ABSU के साथ पहले बोडो समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिससे सीमित राजनीतिक शक्तियों के साथ एक बोडोलैंड स्वायत्त परिषद का निर्माण हुआ।
    • दूसरा बोडो समझौता: इसके तहत असम राज्य में बोडो क्षेत्रों के लिये एक स्वशासी निकाय बनाने पर सहमति बनी।
      • इसके अनुसरण में बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (BTC) को 2003 में कुछ और वित्तीय तथा अन्य शक्तियों के साथ बनाया गया था।
    • तीसरा बोडो समझौता: इस समझौते पर 2020 में हस्ताक्षर किये गए, इसने BTAD का नाम बदलकर बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) कर दिया।
      • यह बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (BTC) की छठी अनुसूची के तहत अधिक विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक स्वायत्तता एवं राज्य के बदले BTC क्षेत्र के विस्तार का वादा करता है।
      • यह BTAD के क्षेत्र में परिवर्तन और BTAD के बाहर बोडो के लिये प्रावधान प्रदान करता है।
      • BTR में वे क्षेत्र शामिल हैं जो बोडो बहुल हैं लेकिन वर्तमान में BTAD से बाहर हैं।

बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (BTC)

  • यह भारत के असम राज्य में एक स्वायत्त क्षेत्र है।
  • यह भूटान और अरुणाचल प्रदेश की तलहटी से ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर चार ज़िलों (कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदलगुरी) से बना है।
    • 2003 के समझौते के तहत गठित BTC के अधिकार क्षेत्र में आने वाले क्षेत्र को बोडो प्रादेशिक स्वायत्त ज़िला (BTAD) कहा जाता था।
  • BTC छठी अनुसूची के तहत शासित क्षेत्र है। हालाँकि BTC छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक प्रावधान का अपवाद है।
    • चूँकि इसमें 46 सदस्य हो सकते हैं जिनमें से 40 निर्वाचित होते हैं।
    • इन 40 सीटों में से 35 अनुसूचित जनजाति और गैर-आदिवासी समुदायों के लिये आरक्षित हैं, पाँच अनारक्षित हैं तथा बाकी छह BTAD के कम प्रतिनिधित्त्व वाले समुदायों से राज्यपाल द्वारा नामित किये जाते हैं।

स्वायत्त ज़िले और क्षेत्रीय परिषदें

  • ADC के साथ छठी अनुसूची एक स्वायत्त क्षेत्र के रूप में गठित प्रत्येक क्षेत्र के लिये अलग क्षेत्रीय परिषदों का भी प्रावधान करती है।
    • कुल मिलाकर पूर्वोत्तर में 10 क्षेत्र हैं जो स्वायत्त ज़िलों के रूप में पंजीकृत हैं - तीन असम, मेघालय और मिजोरम में और एक त्रिपुरा में।
    • इन क्षेत्रों को ज़िला परिषद (ज़िले का नाम) और क्षेत्रीय परिषद (क्षेत्र का नाम) के रूप में नामित किया गया है।
  • स्वायत्त ज़िला और क्षेत्रीय परिषद में 30 से अधिक सदस्य नहीं होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा और बाकी चुनावों के माध्यम से मनोनीत होते हैं।
    • ये सभी पाँच साल के कार्यकाल के लिये सत्ता में बने रहते हैं।

स्रोत: द हिंदू