शादियों में फिजूलखर्ची रोकने के लिये विधेयक | 16 Feb 2017

सन्दर्भ

गौरतलब है कि शादी-विवाह में फिजूलखर्ची रोकने, मेहमानों की संख्या सीमित करने और समारोह के दौरान परोसे जाने वाले व्यंजनों को सीमित करने के मकसद से एक निजी विधेयक लोक सभा में पेश किया जाएगा| इसमें यह प्रावधान किया गया है कि जो लोग शादी-ब्याह में 5 लाख रुपये से अधिक की राशि खर्च करते हैं, वे गरीब परिवार की लड़कियों के विवाह में योगदान करेंगे|

विधेयक से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु 

‘द मैरिज बिल 2016’ (अनिवार्य पंजीकरण और बेवज़ह खर्च रोकथाम ) को लोक सभा के आगामी सत्र में निजी विधेयक के रूप में रखा जा सकता है| इस विधेयक का उद्देश्य शादियों पर होने वाले बेवज़ह खर्च को रोकना है और सादगीपूर्ण शादियों को प्रोत्साहित करना है|

  • विदित हो कि कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन ने इस विधेयक को आगे बढ़ाया है, जिसमें शादी पर होने वाले खर्च, मेहमानों को परोसे जाने वाले व्यंजन और मेहमानों की कुल संख्या पर भी बात की गई है|
  • विधेयक के अनुसार अगर कोई परिवार शादी पर पाँच लाख से अधिक की राशि खर्च करना चाहता है तो उस परिवार को इसकी घोषणा सरकार के सामने करनी होगी और उस राशि का 10 फीसदी हिस्सा संबंधित कल्याण कोष में देना होगा| ये कल्याण कोष सरकार की ओर से गरीब परिवारों की मदद के लिये बनाए जाएंगे|
  • विधेयक के मुताबिक अगर इसे लागू किया जाता है तो हर शादी का पंजीकरण 60 दिनों के भीतर करना अनिवार्य हो जाएगा| इसके अलावा सरकार मेहमान, रिश्तेदार-नातेदारों की संख्या के साथ-साथ शादी और रिसेप्शन पर परोसे जाने वाले व्यंजनों की भी सीमा तय कर सकती है ताकि भोजन की बर्बादी को रोका जा सके|

क्यों इतना महत्त्वपूर्ण है यह विधेयक?

  • शादियों में होने वाली फिजूलखर्ची आजकल एक परम्परा सी बन गई है जो कि सामाजिक और आर्थिक दोनों ही दृष्टि से एक अवांछनीय कृत्य है|
  • सामाजिक तौर पर देखा जाए तो लोगों में शादियों में बेवज़ह खर्च की इस प्रवृत्ति का अनुसरण करने की आदत सी हो गई है| वे खर्च के मामले में एक-दूसरे से होड़ करते हैं, मानो धन-बल प्रदर्शन का ओलंपिक चल रहा हो|
  • लोग, शादियों पर पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं, नतीजन गरीब परिवारों पर अधिक खर्च करने का सामाजिक दबाव बढ़ता है|
  • वहीं आर्थिक तौर पर देखा जाए तो ऐसी शादियों से अर्थव्यवस्था पर बेवज़ह का भार पड़ता है, जहाँ सीमित संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं किया जाता है| अतः इस पर रोक लगाने की ज़रूरत है|

निष्कर्ष 

अब तक तो सामाजिक जागरूकता के माध्यम से ही लोगों को इस बात के लिये प्रेरित किया जाता था कि वे शादियों में बेवजह का खर्च न करें, और इसके कुछ सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं लेकिन एक बड़ा तबका यह दलील देता था कि शादियों में अपनी मर्ज़ी के अनुसार खर्च करना उनका व्यक्तिगत अधिकार है| सच्चाई यह है कि उपयुक्त प्रावधानों के अभाव में उनकी इस दलील को स्वीकार करना ही पड़ता था| यदि यह विधेयक कानून का रूप ले लेता है तो निश्चित ही यह एक बहुत बड़ा सुधार होगा|