भोपाल गैस त्रासदी | 29 Nov 2019

प्रीलिम्स के लिये:

भोपाल गैस त्रासदी, मिथाइल आइसोसाइनाइट

मेन्स के लिये:

भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक विशेषज्ञ समिति द्वारा भोपाल गैस त्रासदी पर किया गया शोध विवादों में रहा है।

मुख्य बिंदु:

  • इस विशेषज्ञ समिति में ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान’ (All India Institute of Medical Sciences-AIIMS), राष्ट्रीय पर्यावरणीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान (National Institute for Research in Environmental Health- NIREH) तथा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council for Medical Research- ICMR) के वैज्ञानिक शामिल थे।
  • भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित पीड़ितों के लिये कार्य कर रहे कुछ संगठनों ने ICMR पर यह आरोप लगाया है कि इस समिति द्वारा किये गए शोध में कुछ गलतियाँ थीं फिर भी इन्हें समिति द्वारा अनुमोदित किया गया तथा प्रकाशित नहीं किया गया।
  • इस शोध से संबंधित रिपोर्ट को भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित लोगों के लिये कार्य करने वाल कार्यकर्त्ताओं के एक संघ द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत प्राप्त किया गया है।
  • इस समिति द्वारा तकरीबन 48 लाख रुपए की लागत किये गए शोध की कार्यप्रणाली में बहुत खामियाँ थीं तथा इसे गलत तरीके से गठित किये जाने के कारण इसके निष्कर्ष भी अनिर्णायक रहे।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस संदर्भ में एक पुनर्विचार याचिका स्वीकार की है जिसमें इस घटना से प्रभावित लोगों के लिये अधिक मुआवज़े की मांग की गई है
  • इस मामले में बच्चों में जन्मजात विकृतियों से संबंधित आँकड़े पीड़ितों को मुआवज़ा दिलाने के लिये महत्वपूर्ण हैं।

शोध से संबंधित अन्य तथ्य:

  • विशेषज्ञ समिति द्वारा किये गए इस शोध में यह बात सामने आई है कि सामान्य गर्भवती महिलाओं की तुलना में वर्ष 1984 के भोपाल गैस त्रासदी से पीड़ित माताओं और उनसे जन्म लेने बच्चों में कई तरह की स्वास्थ्य कमियाँ पाई गईं तथा इन बच्चों में अधिकतर ‘जन्मजात विकृति’ से प्रभावित थे।
  • इस शोध के अनुसार, भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित गर्भवती महिलाओं से जन्मे 1048 बच्चों में से 9 प्रतिशत में कई जन्मजात स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ विद्यमान थीं। इसके विपरीत 1247 सामान्य गर्भवती महिलाओं से जन्मे बच्चों में यह समस्याएँ केवल 1.3 प्रतिशत में पाई गई।
  • इन विकृतियों से प्रभावित होने बच्चों में भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित गर्भवती महिलाओं की अगली पीढ़ी के भी बच्चे थे।

भोपाल गैस त्रासदी

(Bhopal Gas Tragedy):

  • 2-3 दिसंबर, 1984 की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) [परिवर्तित नाम- डाउ केमिकल्स (Dow Chemicals)] कंपनी के प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनाइट (Methyl Isocyanate) गैस का रिसाव हुआ था।
  • इस घटना में हज़ारों लोगों की मौत हो गई थीं और लाखों लोग इससे प्रभावित हुए थे।
  • रिसाव की घटना पूरी तरह से कंपनी की लापरवाही के कारण हुई थी, पहले भी कई बार रिसाव की घटनाएँ हुई थीं लेकिन कंपनी ने सुरक्षा के समुचित उपाय नहीं किये थे।

स्रोत- द हिंदू