BBX11 जीन | 28 Dec 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (Indian Institute of Science Education and Research) ने BBX11 जीन को मान्यता दी है जो फसलों को हरा बनाए रखने में मदद करता है।

प्रमुख बिंदु

 BBX11 जीन के विषय में:

  • शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसे तंत्र की खोज की है जहाँ सम्मुख-स्थिति में दो प्रोटीन BBX11 जीन की अनुकूलतम सीमा को बनाए रखने के लिये इसे विनियमित करते हैं।
  • BBX11 जीन, पौधों द्वारा संश्लेषित प्रोटोक्लोरोफिलाइड (Protochlorophyllide) की मात्रा को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • प्रोटोक्लोरोफिलाइड, क्लोरोफिल के संश्लेषण में एक मध्यवर्ती का काम करता है।
    • पौधों में इस जीन की मात्रा कम होने से सूर्य का प्रकाश आसानी से हरे रंग में परिवर्तित नहीं हो पाता और प्रोटोक्लोरोफिल की मात्रा अधिक होने पर पौधों में प्रकाश-विरंजन (Photobleaching) की घटना देखने को मिलती है।
      • प्रकाश-विरंजन की घटना एक वर्णक (Pigment) के कारण होने वाली रंग की हानि है।
    • प्रोटोक्लोरोफिलाइड संश्लेषित की मात्रा को क्लोरोफिल में बदलने के लिये उपलब्ध विभिन्न एंजाइमों का आनुपातिक होना आवश्यक है।
    • पौधों द्वारा संश्लेषित प्रोटोक्लोरोफिलाइड की मात्रा को विनियमित किया जाना बहुत ज़रूरी होता है।

क्लोरोफिल:

  • क्लोरोफिल; पौधों, शैवाल और साइनोबैक्टीरिया में उपस्थित एक हरा वर्णक होता है। यह सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करता है तथा इसका उपयोग कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) व जल की सहायता से कार्बोहाइड्रेट को संश्लेषित करने में करता है।
    • पौधों में क्लोरोफिल का संश्लेषण एक लंबी और कई चरणों वाली  प्रक्रिया द्वारा होता है।
  • जब बीज अंकुरित होकर मिट्टी से बाहर निकलता है तो वृद्धि व विकास हेतु वह क्लोरोफिल का संश्लेषण करता है।
    • अंधेरे में क्लोरोफिल के त्वरित संश्लेषण को सरल बनाने के लिये पौधे क्लोरोफिल पर दबाव डालते हैं जिसे 'प्रोटोक्लोरोफिलाइड' (Protochlorophyllide) नाम से जाना जाता है और नीले प्रकाश में यह लाल दिखाई देता है।
  • जैसे ही पौधा मिट्टी के बाहर प्रकाश में आता है वैसे ही प्रकाश-निर्भर एंजाइम प्रोटोक्लोरोफिलाइड को क्लोरोफिल में बदल देते हैं।

निहितार्थ:

  • भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में कृषि क्षेत्र के लिये यह खोज अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इसके परिणामस्वरूप प्रायः बदलते मौसमी परिस्थितियों में पौधों की प्रगति के अनुकूलन के वर्तमान परिणामों में सहायता मिल सकती है।
    • भारत के कई राज्यों (विशेषकर महाराष्ट्र) में तेज़ी से बदलती मौसमी परिस्थितियों के कारण फसलों को काफी नुकसान होता है।
    • यह नुकसान कई बार किसान समुदाय के लिये गंभीर संकट पैदा करता है।
      • फसल के नष्ट होने के प्रमुख कारण: इन कारणों में गंभीर सूखा, अधिक तापमान और तेज़ प्रकाश का होना शामिल है।
  • मिट्टी से बाहर निकलने वाले नए अंकुर प्रकाश के उच्च विकिरण के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। यह अध्ययन ऐसी तनावपूर्ण परिस्थितियों में पौधों की वृद्धि में सहायक हो सकता है।

प्रकाश संश्लेषण

Photosynthesis

  • प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हरे पौधे और कुछ अन्य जीव प्रकाशीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं।
  • हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करते हैं। इस ऊर्जा की सहायता से वे जल, कार्बन डाइऑक्साइड तथा कई खनिजों को ऑक्सीजन व ऊर्जा से समृद्ध कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित करते हैं।

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  • प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक: विभिन्न आंतरिक (पौधों के) और बाह्य कारक प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करते हैं।
    • आंतरिक कारकों में पत्तियों की संख्या, आकार, आयु, अभिविन्यास (Orientation), पर्णमध्यक (Mesophyll) कोशिकाएँ, आंतरिक भाग में CO2 का संकेंद्रण व क्लोरोफिल की मात्रा आदि प्रमुख हैं।
    • बाह्य कारकों में प्रमुखतः सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता, तापमान, CO2 का संकेद्रण और जल शामिल हैं।
      • उदाहरण के लिये एक हरा पत्ता, इष्टतम प्रकाश और CO2 की  उपस्थिति के बावजूद तापमान के बहुत कम होने पर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं कर सकता है।

महत्त्व:

  • पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने में प्रकाश संश्लेषण के महत्त्व को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।
  • प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बंद हो जाने से पृथ्वी पर भोजन या अन्य कार्बनिक पदार्थों की उपलब्धता बहुत जल्द ही खत्म हो जाएगी।
  • अधिकांश जीव विलुप्त हो जाएंगे तथा समय के साथ पृथ्वी के वातावरण से गैसीय ऑक्सीजन लगभग समाप्त हो जाएगा।
  • पौधों द्वारा लाखों वर्ष पूर्व से ही प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है जिसकी वज़ह से जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) की उपलब्धता संभव हुई है और जो वर्तमान में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।

स्रोत: द हिंदू