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दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड | 13 May 2019 | भारतीय अर्थव्यवस्था

चर्चा में क्यों?

दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankruptcy Code-IBC) के तहत अलग-अलग कारणों से कई मामलों में ऋण वसूली में देरी आ रही है।

प्रमुख बिंदु

गैर निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets)

वित्तीय संस्थानों से ऋण लेने वाला व्यक्ति जब 90 दिनों तक ब्याज या मूलधन का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसको दिया गया ऋण ‘गैर निष्पादित परिसंपत्ति’ माना जाता है।
आँकड़ें

ऋण समाधान में देरी के कारण:

एस्सार स्टील इंडिया लिमिटेड सहित एनपीए के 12 बड़े मामले बैंकों ने विभिन्न नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) बेंचों को सौंपा।

इसके अंतर्गत अन्य पाँच बड़े मामलों में वसूली दर 17.11 प्रतिशत से लेकर 63.50 प्रतिशत रही है।

लगभग आधे मामलों में देरी के बावजूद IBC ने अब तक स्वीकृत 93 मामलों में वित्तीय लेनदारों को 43 प्रतिशत तक की वसूली दर पेशकश की है।

जिसमें वित्तीय लेनदारों ने 1,73,359 करोड़ रुपए के दावे में से 74,497 करोड़ रुपए की वसूली की।

कई मामलों में देरी के बावजूद ऋण वसूली हेतु मौजूदा न्यायाधिकरणों की प्रणाली और SARFAESI Act की तुलना में IBC प्रक्रिया के अंतर्गत अब तक बेहतर वसूली हुई है।

जिसमें वित्तीय लेनदारों ने 1,73,359 करोड़ के भर्ती दावों में से 74,497 करोड़ रुपए की वसूली की।

जाहिर है IBC ने लेनदार-देनदार संबंध को पूरी तरह से बदल दिया है। कई कंपनियाँ अपनी कंपनियों पर नियंत्रण खोने के डर से अपना बकाया चुकाने के लिये आगे आ रही हैं।

NCLT

दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड
Insolvency and Bankruptcy Code

IBC की सामान्य कार्य प्रक्रिया

NPA समस्या के समाधान में सहायक IBC

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस