शराब बिक्री पर प्रतिबंध | 25 Aug 2017

चर्चा में क्यों ? 

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अपने 15 दिसंबर 2016 के मूल फैसले का स्पष्टीकरण दिया है जिसके अनुसार राज्य और राष्ट्रीय राजमार्गों पर स्थित बार और शराब की दुकानें फिर से खुल सकती हैं, जो शहर और कस्बों की सीमाओं के भीतर आती हैं। 

कोर्ट ने कहा कि यह प्रतिबंध उन दुकानों पर लगाया गया था जो शहरों को जोड़ने वाली राज्य और राष्ट्रीय राजमार्गों के 500 मीटर के दायरे में आती हैं। 

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि नगर निगम निकायों द्वारा नियंत्रित शहर क्षेत्रों के अंदर आने वाली दुकानें इसमें शामिल नहीं हैं। कोर्ट का आदेश नगर निगम के अंतर्गत आने वाली लाइसेंस धारक दुकानों को शराब की बिक्री से नहीं रोकता है। 

क्या था आदेश में

  • 15 दिसंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने शहरों, कस्बों और गाँवों को जोड़ने वाले राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के 500 मीटर की दूरी के दायरे में शराब की बिक्री पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था।

कोर्ट के आदेश का प्रभाव 

  • इस आदेश से देश भर में शराब के कारोबार को बड़ा धक्का लगा है। 1 अप्रैल 2017 से लगभग 30000 शराब की दुकानें प्रभावित हुई हैं। कई दुकानें अभी बंद हैं। 
  • शराब कारोबारियों ने इन बंद दुकानों को दोबारा खुलवाने के लिये सरकार पर लगातार दबाव बना रखा है। सरकार की ओर से शराब कारोबारियों को राहत देने के लिये राजमार्गों को डिनोटिफाई करने का कार्य किया जा रहा है। 
  • देश की सबसे बड़ी शराब कंपनी यूनाइटेड स्पिरिट्स की शराब की बिक्री जून तिमाही में 19 फीसदी कम हुई है।
  • अतः ऐसी स्थिति में उच्चतम न्यायालय का यह स्पष्टीकरण बार और होटल मालिकों के लिये एक बड़ी राहत है, जिन्हें 15 दिसंबर के प्रतिबंध के बाद अपना व्यवसाय बंद करने के लिये मज़बूर किया गया था। इन प्रतिष्ठानों के बंद होने के बाद हज़ारों लोग बेरोज़गार हो गए थे।

शराब पर प्रतिबंध क्यों ?

  • भारत में सड़क हादसों में प्रत्येक वर्ष हज़ारों लोग मारे जाते हैं। इन हादसों की एक बड़ी वज़ह शराब पी कर गाड़ी चलाना होता है।  
  • NCRB के आँकड़ों के मुताबिक 2004 से 2014 तक भारत में सड़क दुर्घटनाओं में 1.2 मिलियन लोगों की मौत हुई थी। अकेले 2014 में ही 140,000 मौते हुई थीं, जिनमें 17000 बच्चे थे। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्रकाशित “Global Status Report on Road Safety- 2015” के अनुसार यह संख्या प्रतिवर्ष 2,00,000 है। 
  • योजना आयोग के एक आकलन (वर्ष 2014) के अनुसार भारत को सड़क हादसों के कारण प्रति वर्ष जीडीपी की 3% अर्थात् 3800 अरब रुपए की हानि होती है।