अटलांटिक चार्टर | 14 Jun 2021

प्रिलिम्स के लिये 

अटलांटिक चार्टर, अटलांटिक चार्टर (1941), न्यू अटलांटिक चार्टर (2021) के बारे में तथ्यात्मक जानकारी

मेन्स के लिये

पुराने अटलांटिक चार्टर और नए अटलांटिक चार्टर (2021) में भारत के लिये अवसर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने 80 वर्ष पुराने अटलांटिक चार्टर (Atlantic Charter) के एक नए संस्करण पर हस्ताक्षर किये।

प्रमुख बिंदु

अटलांटिक चार्टर (1941):

  • अटलांटिक चार्टर अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल द्वारा 14 अगस्त, 1941 को (द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान) न्यूफाउंडलैंड में सरकार के दो प्रमुखों की बैठक के बाद जारी एक संयुक्त घोषणा थी।
    • अटलांटिक चार्टर को बाद में वर्ष 1942 में संयुक्त राष्ट्र की घोषणा में संदर्भ द्वारा शामिल किया गया था।
    • द्वितीय विश्व युद्ध एक ऐसा संघर्ष था जिसमें 1939-45 के वर्षों के दौरान विश्व के लगभग हर हिस्से को शामिल किया गया था।
    • प्रमुख युद्धरत थे:
      • एक्सिस शक्तियाँ: जर्मनी, इटली और जापान।
      • सहयोगी: फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन।
  • अटलांटिक चार्टर ने अमेरिका और ब्रिटिश युद्ध के उद्देश्यों का एक व्यापक विवरण प्रदान किया जैसे:
    • वे संबंधित लोगों की स्वतंत्र सहमति के बिना कोई क्षेत्रीय परिवर्तन नहीं चाहते थे।
    • वे सरकार चुनने के लोगों के अधिकार का सम्मान करते थे और चाहते थे कि संप्रभु अधिकार तथा स्वशासन से उन्हें जबरन वंचित कर दिया जाए।
    • वे सभी राज्यों के लिये व्यापार और कच्चे माल तक समान पहुँच को बढ़ावा देने का प्रयास करेंगे।
    • वे विश्वव्यापी सहयोग को बढ़ावा देने की आशा रखते थे ताकि श्रम मानकों, आर्थिक प्रगति और सामाजिक सुरक्षा में सुधार हो सके।
    • "नाज़ी अत्याचार" (जर्मनी) का विनाश वे एक ऐसी शांति की तलाश करेंगे जिसके तहत सभी राष्ट्र अपनी सीमाओं के भीतर बिना किसी डर या इच्छा के सुरक्षित रूप से रह सकें।
    • ऐसी शांति के तहत समुद्र मुक्त होना चाहिये।

न्यू अटलांटिक चार्टर (2021):

  • नया चार्टर 604 शब्दों का एक घोषणापत्र है, जो 21वीं सदी में वैश्विक संबंधों के लिये एक भव्य विज़न पेश करने का प्रयास है, जैसा कि मूल रूप से अमेरिका के द्वितीय विश्व युद्ध में प्रवेश करने से कुछ महीने पहले लोकतंत्र और क्षेत्रीय अखंडता हेतु पश्चिमी प्रतिबद्धता की घोषणा की गई थी।
  • यह सिद्धांतों को लेकर का एक बयान है जो एक वादा करता है कि UK और US अपनी उम्र की चुनौतियों का एक साथ सामना करेंगे। यह दोनों देशों से नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का पालन करने का आह्वान करता है।
  • नया चार्टर उभरती प्रौद्योगिकियों, साइबरस्पेस और सतत् वैश्विक विकास के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन एवं जैव विविधता के संरक्षण की आवश्यकता पर केंद्रित है।
  • यह पश्चिमी सहयोगियों से चुनाव सहित दुष्प्रचार या अन्य घातक प्रभावों के माध्यम से हस्तक्षेप का विरोध करने का आह्वान करता है।
  • यह प्रतिज्ञा करता है कि जब तक परमाणु हथियार हैं तब तक उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organisation- NATO) एक परमाणु गठबंधन बना रहेगा।

भारत के लिये अवसर:

  • पुराने अटलांटिक चार्टर ने भारतीय राष्ट्रवाद को पश्चिम से अलग कर दिया, लेकिन नए चार्टर और पश्चिमी संस्थानों को फिर से शुरू किये जाने से अमेरिका तथा उसके सहयोगियों के साथ भारत की सहभागिता के उत्पादक चरण को आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
    • वर्ष 1941 में UK ने जोर देकर कहा कि चार्टर में उल्लिखित आत्मनिर्णय का सिद्धांत भारत पर लागू नहीं होता है।
    • हालाँकि G-7 शिखर सम्मेलन 2021 में ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया (अतिथि के रूप में) के साथ भारत व दक्षिण अफ्रीका की उपस्थिति वैश्विक चुनौतियों से निपटने में पश्चिम के आधार को व्यापक बनाने की तत्काल अनिवार्यता को मान्यता देती है।
  • भारत के साथ पश्चिमी परामर्श को संस्थागत बनाने का वर्तमान एंग्लो-अमेरिकन प्रयास लंबे समय से अपेक्षित सुधार है।
    • भारतीय प्रधानमंत्री, जो G-7 शिखर सम्मेलन (2021) की चर्चा में शामिल हो रहे हैं, के पास भारत के भीतर सिकुड़ती लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं के बारे में धारणाओं को संबोधित करने और वैश्विक मुद्दों पर पश्चिमी लोकतंत्रों के साथ वास्तविक सहयोग की पेशकश करने के लिये दोनों के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत देने का अवसर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस