एटालिन जलविद्युत परियोजना | 19 May 2020

प्रीलिम्स के लिये:

वन सलाहकार समिति, प्रतिपूरक वनीकरण

मेन्स के लिये:

एटालिन जलविद्युत परियोजना और विरोध से उत्पन्न चुनौतियों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

अरुणाचल प्रदेश की दिबांग घाटी में प्रस्तावित 3097 मेगावाट की एटालिन जलविद्युत परियोजना की वजह से जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर पर्यावरण कार्यकर्त्ता इस परियोजना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।  

प्रमुख बिंदु:

  • उल्लेखनीय है कि पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं ने वन सलाहकार समिति (Forest Advisory Committee-FAC) के अध्यक्ष और सदस्यों को एक पत्र के माध्यम से अवगत किया कि क्यों एटालिन जलविद्युत परियोजना को रद्द किया जाना चाहिये।
  • पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं का पत्र के माध्यम से तर्क:
    • एटालिन जलविद्युत परियोजना को मंज़ूरी देते वक्त वन संरक्षण और संबंधित कानूनी सिद्धांतों की अनदेखी की गई है। इस तरह किसी भी परियोजना को मंज़ूरी देने से पर्यावरण/वन/वन्यजीवों/मनुष्यों पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा साथ ही इस प्रभाव की क्षतिपूर्ति को कभी कम नहीं किया जा सकता है।
    • इस पत्र में पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा वन और वन्यजीवों की सुरक्षा हेतु पूर्व में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों का भी उल्लेख किया है।
    • FAC निरंतर वन, वन्यजीवों और जैव विविधता हॉटस्पॉट में दुर्लभ पुष्प और जीव-जंतु प्रजातियों की अनदेखी कर रहा है।
    • इस पत्र में एटालिन जलविद्युत परियोजना पर पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट में भी खामियों का उल्लेख किया है
    • 23 अप्रैल को वन सलाहकार समिति (Forest Advisory Committee- FAC) ने इन क्षेत्रों में लगभग 270,000 पेड़ों की कटाई की अनुमति दी है।
  • FAC उप समिति का तर्क है कि भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India) द्वारा किये गए अध्ययन के आधार पर उपयोगकर्त्ता एजेंसी (निजी फर्म) को वन्यजीव संरक्षण योजना का वित्तीय परिव्यय को वन विभाग में जमा करने पर ही परियोजना को अनुमति दी जा सकती है।

एटालिन जलविद्युत परियोजना के विरोध के कारण:

  • इस परियोजना से कुल 18 गाँवों के निवासी प्रभावित होंगे।
  • इसके तहत लगभग 2,70,000 पेड़ों की कटाई होगी और विश्व स्तर पर लुप्तप्राय 6 स्तनधारी प्रजातियों के अस्तित्त्व के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • इस क्षेत्र में पक्षियों की 680 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो भारत में पाई जाने वाली कुल पक्षियों की प्रजातियों (Avian Species) का लगभग 56% हैं।
  • यह परियोजना हिमालय के सबसे समृद्ध जैव-भौगोलिक क्षेत्र के अंतर्गत आती है तथा यह पुरापाषाणकालीन, इंडो-चाइनीज़ और इंडो-मलयन जैव-भौगोलिक क्षेत्रों के संधि-स्थल पर स्थित होगी।
  • स्थानीय निवासियों के अनुसार, दिबांग क्षेत्र में प्रस्तावित ‘दिबांग बहुउद्देशीय परियोजना’ और ‘एटलिन जल विद्युत परियोजना’ दोनों एक साथ एक बहुत बड़े क्षेत्र को जलमग्न कर देगीं।
  • पर्यावरणविदों एवं स्थानीय निवासियों का मत है कि परियोजना की वज़ह से विकृत पारिस्थितिकी को कृत्रिम वृक्षारोपण की सहायता से यथास्थिति में नहीं लाया जा सकता है।
  • इडू मिश्मी समुदाय (Idu Mishmi Community) के लोग चारागाह भूमि, वनों और वन्यजीवों को होने वाले नुकसान को लेकर चिंतित हैं।

वन सलाहकार समिति

(Forest Advisory Committee-FAC):

  • वन सलाहकार समिति औद्योगिक गतिविधियों के लिये वनों में पेड़ों की कटाई की अनुमति पर निर्णय लेती है।
  • FAC केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change-MOEF&CC) के अंतर्गत कार्यरत है, जिसमें केंद्र के वानिकी विभाग के स्वतंत्र विशेषज्ञ और अधिकारी शामिल होते हैं।

प्रतिपूरक वनीकरण (Compensatory Afforestation):

  • प्रतिपूरक वनीकरण का आशय आधुनिकीकरण तथा विकास के लिये काटे गए वनों के स्थान पर नए वनों को लगाने से है। अर्थात् उद्योगों द्वारा वनों के नुकसान की प्रति पूर्ति हेतु वैकल्पिक भूमि का अधिग्रहण किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू