भारतीय उपमहाद्वीप पर जलवायु परिवर्तन का आकलन | 17 Jun 2020

प्रीलिम्स के लिये:

एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ, प्रतिनिधि संकेंद्रण मार्ग या RCP की अवधारणा 

मेन्स के लिये:

भारतीय उपमहाद्वीप पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान' (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM)- पुणे,  द्वारा एक जलवायु पूर्वानुमान मॉडल विकसित किया है,  जो आने वाली शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप पर वैश्विक तापन के प्रभाव को समझने में मदद करेगा।

प्रमुख बिंदु:

  • IIT-M द्वारा विकसित जलवायु पूर्वानुमान मॉडल  भारतीय उपमहाद्वीप पर वैश्विक तापन के प्रभाव को दर्शाने वाला प्रथम 'राष्ट्रीय पूर्वानुमान मॉडल' है।
  • यह पूर्वानुमान मॉडल, 'जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल' (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की अगली रिपोर्ट; जो वर्ष 2022 तक तैयार होने की उम्मीद है, का एक भाग है।
  • यह पूर्वानुमान मॉडल इस अवधारणा पर आधारित है कि वैश्विक समुदाय द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किये गए तो जलवायु परिवर्तन की क्या स्थिति होगी।

जलवायु मॉडल के प्रमुख पूर्वानुमान:

  • जलवायु पूर्वानुमान मॉडल के आधार पर निम्नलिखित प्रमुख निष्कर्ष निकाले गए हैं:
  • औसत तापमान में वृद्धि:
    • वर्ष 1986-2015 के बीच की अवधि में सबसे गर्म दिन तथा सबसे ठंडी रातों के तापमान में क्रमशः 0.63°C और 0.4°C की वृद्धि हुई है।
    • 21 वीं सदी के अंत तक दिन तथा रात के तापमान में वर्ष 1976-2005 की अवधि की तुलना में लगभग 4.7 °C और 5.5°C वृद्धि होने का अनुमान है।
    • वर्ष 2040 तक, वर्ष 1976-2005 की अवधि की तुलना में तापमान में 2.7 °C  और इस सदी के अंत तक तापमान में 4.4 °C वृद्धि होने का अनुमान है।
    •  'प्रतिनिधि संकेंद्रण मार्ग' (Representative Concentration Pathway 8.5- RCP 8.5) जो प्रति वर्ग मीटर में विकिरण प्रभाव की गणना करता है, के अनुसार, भविष्य के गर्म दिन तथा गर्म रातों की संख्या वर्ष 1976-2O05 की संदर्भ अवधि के सापेक्ष क्रमशः 55% और 70% तक बढ़ने का अनुमान है।

प्रतिनिधि संकेंद्रण मार्ग (RCP):

  • प्रतिनिधि संकेंद्रण मार्ग (RCP), IPCC द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के संकेंद्रण को दर्शाने वाला प्रक्षेप वक्र है। RCP को IPCC द्वारा 'पाँचवी आकलन रिपोर्ट' (Assessment Report- AR5) में अपनाया गया था। 
  • भविष्य के ग्रीनहाउस गैस संकेंद्रण को चार प्रक्षेप वक्रों के माध्यम से दर्शाया गया। इन प्रक्षेप वक्रों का निर्धारण भविष्य में संभावित ग्रीनहाउस गैसों के संकेंद्रण के आधार पर किया गया है। 
  • इसमें RCP- 2.6, RCP- 4.5, RCP- 6 और RCP 8.5 प्रक्षेप वक्र बनाए गए हैं।

RCP graph

  • उष्ण लहरों की आवर्ती में वृद्धि: 
    • 21वीं सदी के अंत तक भारत में उष्ण-लहरों की बारंबारता (Frequency) तीन से चार गुना अधिक होने का अनुमान है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जलवायु में तेज़ी से परिवर्तन के कारण देश की प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि उत्पादकता और जल संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा।
  • एयरोसोल की मात्रा में वृद्धि:
    • रिपोर्ट के अनुसार, वायु मे एयरोसोल अर्थात कणकीय पदार्थों की मात्रा में जीवाश्म ईंधन दहन, उर्वरकों के प्रयोग में वृद्धि तथा कुछ प्राकृतिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप काफी वृद्धि हुई है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, ‘एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ’ Aerosol Optical Depth- AOD) में मौसम के साथ परिवर्तनशीलता देखने को मिलती है। दिसंबर-मार्च के शुष्क महीनों के दौरान AOD में वृद्धि की दर बहुत अधिक होती है। 

एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (Aerosol optical depth- AOD):

  • एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ कणकीय पदार्थों तथा धुंध के कारण सौर किरण की कमी को मापने का एक मापक है। वायुमंडल में उपस्थित कणकीय पदार्थ (धूल, धुआँ, प्रदूषण) प्रकाश को अवशोषित, विकर्णित अथवा परावर्तित कर सकते हैं। AOD हमें बताता है कि इन एयरोसोल कणों द्वारा सूर्य के प्रत्यक्ष प्रकाश की कितनी मात्रा को पृथ्वी पर पहुँचने से रोका गया है।
  • AOD का मान यदि 0.01 का हो तो यह अत्यंत स्वच्छ वातावरण को जबकि 0.4 का मान बहुत धुंधली स्थिति को दर्शाता है।
  • वर्षा के प्रतिरूप में बदलाव:
    • वर्षा के पैटर्न में व्यापक बदलाव देखने को मिला है। वर्षा की तीव्रता में वृद्धि हुई है लेकिन वर्षा-अंतराल में लगातार वृद्धि हुई है। अरब सागर से उत्पन्न होने वाले अत्यधिक गंभीर चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।
  • समुद्र स्तर में वृद्धि:
    • ग्लेशियर पिघलने तथा महासागरीय तापमान में वृद्धि से हिंद महासागर के स्तर में लगातार वृद्धि हो रही है।
    • मुंबई तट के साथ समुद्र स्तर में प्रति दशक में 3 सेमी. की वृद्धि जबकि कोलकाता तट के साथ प्रति दशक में 5 सेमी. की वृद्धि दर्ज की गई है।

निष्कर्ष:

  •  'भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान'  द्वारा विकसित 'जलवायु पूर्वानुमान मॉडल' 'राष्ट्रीय जलवायु मूल्यांकन' (National Climate Assessment) की दिशा में उठाया गया महत्त्वपूर्ण कदम है। यह मॉडल भारत को वैश्विक तापन, मानसूनी वर्षा, बाढ़, सूखा तथा ग्लेशियरों पर जलवायु के प्रभावों को समझने में मदद करेगा।

स्रोत: द हिंदू