अनुच्छेद 371A एवं नगालैंड में कोयला खनन पर इसका प्रभाव | 01 Mar 2024

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 371A, रैट-होल माइनिंग  

मेन्स के लिये:

अनुच्छेद 371A की सीमाएँ एवं चुनौतियाँ, सतत् खनन प्रथाएँ, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप

स्रोत: द हिंदू

 चर्चा में क्यों? 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371A के कारण नगालैंड में कोयला खनन का विनियमन गंभीर रूप से बाधित है। विशेष रूप से रैट-होल माइनिंग विस्फोट में हाल ही में हुई मौतों के आलोक में, नागा प्रथागत कानून को संरक्षित करने वाला यह खंड सरकार के लिये छोटे पैमाने पर खनन को विनियमित करना और अधिक जटिल बना देता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 371A क्या है?

  • नगालैंड (तत्कालीन नागा हिल्स औएवंर तुएनसांग क्षेत्र) को विशेष प्रावधान प्रदान करते हुए, वर्ष 1962 में 13वें संशोधन के हिस्से के रूप में अनुच्छेद 371A को संविधान (भाग XXI) में प्रस्तुत किया गया था।
  • अनुच्छेद 371A के अनुसार, जब तक नगालैंड विधान सभा एक प्रस्ताव द्वारा निर्णय नहीं लेती, संसद का कोई भी अधिनियम नागाओं की धार्मिक अथवा सामाजिक प्रथाओं, नागा प्रथागत कानून एवं प्रक्रिया, नागरिक एवं आपराधिक न्याय प्रशासन के संबंध में नागालैंड पर लागू नहीं होगा। इसमें नागा प्रथागत कानून के अनुसार किये गए निर्णय और साथ ही भूमि तथा उसके संसाधनों का स्वामित्व एवं हस्तांतरण शामिल है।
  • इसका मतलब यह है कि राज्य सरकार के पास भूमि और उसके संसाधनों पर सीमित अधिकार तथा अधिकार क्षेत्र है, जो स्थानीय समुदायों के स्वामित्व एवं नियंत्रण में हैं व उनके प्रथागत कानूनों और प्रथाओं द्वारा शासित हैं।

किस राज्य में कब लागू हुआ अनुच्छेद 371 और क्यों?

नगालैंड में रैट-होल माइनिंग को कैसे विनियमित किया जाता है?

  • नगालैंड में कोयला खनन:
    • नगालैंड के पास कुल 492.68 मिलियन टन का महत्त्वपूर्ण कोयला भंडार है, लेकिन यह बड़े क्षेत्र में फैले छोटे-छोटे हिस्सों में अनियमित और असंगत रूप से फैला हुआ है।
    • वर्ष 2006 में स्थापित नगालैंड कोयला खनन नीति, कोयला भंडार की बिखरी हुई प्रकृति के कारण रैट-होल माइनिंग की अनुमति देती है, जिससे बड़े पैमाने पर संचालन अव्यवहार्य हो जाता है।
      • रैट-होल माइनिंग संकीर्ण क्षैतिज सुरंगों या रैट-होल से कोयला निकालने की एक विधि है, जिसे अक्सर हाथ से खोदा जाता है और दुर्घटनाओं तथा पर्यावरणीय खतरों का खतरा होता है।
    • रैट-होल माइनिंग/खनन लाइसेंस, जिन्हें स्मॉल पॉकेट डिपाॅज़िट लाइसेंस के रूप में जाना जाता है, विशेष रूप से वैयक्तिक भूमि स्वामियों को सीमित अवधि और विशिष्ट शर्तों के साथ प्रदान किये जाते हैं।
      • नगालैंड कोयला नीति, 2014 (प्रथम संशोधन) की धारा 6.4 (ii) के अनुसार लाइसेंस प्राप्त करने हेतु खनन क्षेत्र 2 हेक्टेयर से अधिक नहीं होना चाहिये तथा 1,000 टन की वार्षिक कोयला उत्पादन सीमा के साथ भारी मशीनरी के उपयोग पर प्रतिबंध है।
    • रैट-होल खनन कार्यों के लिये पर्यावरणीय नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये वन और पर्यावरण सहित संबंधित विभागों से सहमति की आवश्यकता होती है।
    • राज्य सरकार द्वारा जारी उचित मंज़ूरी और परिभाषित खनन योजनाओं के बावजूद, नगालैंड में अवैध खनन जारी है।
      • जीविका के लिये कोयला खनन पर स्थानीय समुदायों की निर्भरता अवैध खनन के संबंध में विनियामक प्रयासों को और जटिल बनाती है क्योंकि कड़े नियम स्थानीय समुदायों की आजीविका को प्रभावित कर सकते हैं जिसका समाधान करने के लिये आर्थिक हितों और पर्यावरणीय संबंधी चिंताओं के बीच एक संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • अनुच्छेद 371A और नगालैंड में रैट-होल खनन पर नियंत्रण:
    • यह अनुच्छेद नगालैंड के समुदायों को उनकी भूमि और संसाधनों पर विशेष अधिकार अक प्रावधान करता है जिससे सरकारों के लिये इन अधिकारों को प्राभावित करने वाले नियम कार्यान्वित करना मुश्किल हो जाता है
    • नगालैंड सरकार लघु स्तर के खनन कार्यों, विशेष रूप से अनुच्छेद 371A से संबंधित प्रावधानों के आधार पर वैयक्तिक भूमि स्वामियों द्वारा किये जाने वाले खनन कार्यों को प्रभावी ढंग से विनियमित करने के लिये संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।
    • रैट-होल खनन के दौरान हाल ही में हुई मौतें अनियमित खनन प्रथाओं से संबधित सुरक्षा जोखिमों को उजागर करती हैं। ये घटनाएँ उचित सुरक्षा उपायों के अभाव को दर्शाती हैं और प्रभावी नियमों के कार्यान्वन की तात्कालिकता को उजागर करती हैं।

नोट:

  • सर्वोच्च न्यायालय एवं राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने वर्ष 2014 में रैट-होल माइनिंग पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि इससे पर्यावरण को नुकसान होता है और यह खनिकों के जीवन के लिये खतरा है। अधिकरण ने इसे अवैज्ञानिक करार दिया।

आगे की राह 

  • अवैध खनन गतिविधियों पर नकेल कसने के लिये निगरानी और प्रवर्तन उपायों को बढ़ाने की आवश्यकता है, जिसमें उल्लंघनकर्त्ताओं के लिये निगरानी, निरीक्षण एवं दंड में वृद्धि शामिल है।
  • सुरक्षा और पर्यावरण मानकों के अनुपालन के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए, अनियमित खनन के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में स्थानीय समुदायों को शिक्षित करने के लिये आउटरीच कार्यक्रम आयोजित करने चाहिये।
  • संधारणीय और ज़िम्मेदार खनन प्रथाओं के लिये व्यापक रणनीति विकसित करने की दिशा में सरकारी एजेंसियों, स्थानीय समुदायों, खनन लाइसेंस धारकों एवं पर्यावरण संगठनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

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  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

Q. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन अभी भी विकास के लिये अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये। (2017)