बंगाल में धान के खेतों में बढ़ रहा है आर्सेनिक संदूषण का स्तर | 30 Jul 2018

चर्चा में क्यों?

हाल के अध्ययनों में पाया गया है कि पश्चिम बंगाल में भूमिगत जल के कारण न केवल धान के खेतों में आर्सेनिक संदूषण का स्तर बढ़ा है बल्कि यह भी देखा गया है कि ‘आर्सेनिक संचयन’ की सांद्रता धान की विविधता और फसल चक्र की विभिन्न अवस्थाओं पर ही निर्भर करती है।

प्रमुख बिंदु:

  • अध्ययन में पाया गया है कि धान के खेतों में आर्सेनिक संदूषण का यह स्तर पहले के अध्ययनों की तुलना में अधिक है।
  • धान के पौधे में आर्सेनिक का उद्ग्रहण जड़ से धान कि बाली की ओर कम होता जाता है और इसका सांद्रण विविध प्रकार की धान की खेती पर निर्भर करता है।
  • यह अध्ययन सामान्य रूप में उपभोग में लाई जाने वाली दो किस्में- मिनिकित और जया पर किया गया था और बाद में इसे अधिक आर्सेनिक प्रतिरोधी पाया गया।
  • प्रारंभिक या वृद्धिमान अवस्था के पहले 28 दिनों में उच्च सांद्रता देखी गई, जबकि प्रजनन काल (29 से 56 दिन) के दौरान सांद्रण में कमी देखी गई और पुनः परिपक्वता की अवस्था में सांद्रण में वृद्धि देखी गई।
  • उल्लेखनीय है कि वृद्धिमान काल की तरुण जड़ में प्रजनन अवस्था में लौह की उच्च सांद्रता वाले जड़युक्त मृदा के पुराने ऊतक की तुलना में अधिक प्रजनन उद्ग्रहण होता है।
  • इस अध्ययन में संदूषित धान के पुआल के निपटारे को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई है, जिसे खाद के रूप में खेत में ही छोड़ दिया जाता है या फिर पशुओं के चारे के रूप प्रयुक्त होता है।