अर्जुन मेन बैटल टैंक ‘MK-1A’ | 17 Feb 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने स्वदेशी रूप से विकसित ‘अर्जुन मेन बैटल टैंक’ (MBT) ‘MK-1A’ भारतीय सेना को सौंप दिया है।

Arjun-MBT

प्रमुख बिंदु

परिचय

  • लॉन्च: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा ‘अर्जुन मेन बैटल टैंक’ परियोजना की शुरुआत वर्ष 1972 में की गई थी तथा लड़ाकू वाहन अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान (CVRDE) को इसकी प्रमुख प्रयोगशाला के रूप में नामित किया गया था।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य बेहतर फायर पावर, उच्च गतिशीलता और उत्कृष्ट सुरक्षा के साथ एक अत्याधुनिक टैंक बनाना है।

अर्जुन टैंक की विशेषताएँ

  • ‘अर्जुन मेन बैटल टैंक’ में स्वदेशी रूप से विकसित 120mm राइफल और आर्मर पियर्सिंग फिन-स्टैबिलाइज़्ड डिस्करिंग सबोट (FSAPDS) युद्धोपकरण शामिल हैं।
    • FSAPDS प्रत्यक्ष शूटिंग रेंज में सभी ज्ञात टैंकों को नष्ट करने में सक्षम है।
  • इसमें एक कंप्यूटर-नियंत्रित एकीकृत अग्नि नियंत्रण प्रणाली भी है।
  • अर्जुन टैंक में गौण युद्धक हथियारों में एंटी-पर्सोनल लक्ष्यों (सॉफ्ट लक्ष्य यानी अपेक्षाकृत कम सुरक्षित लक्ष्य) के लिये 7.62mm मशीन गन और एंटी-एयरक्राफ्ट तथा ज़मीनी लक्ष्यों के लिये 12.7mm मशीन गन का प्रयोग किया गया है। 

Mk1A और MkII

  • अर्जुन ‘Mk1’ के विकास के बाद इसके उन्नत संस्करण यथा- ‘Mk1A’ तथा ‘MkII का विकास किया गया है।
  • अर्जुन ‘Mk1’, जिसमें बेहतर मारक क्षमता और ट्रांसमिशन सिस्टम शामिल है, ने वर्ष 2019 में अपना अंतिम एकीकरण परीक्षण पूरा किया था और इसके उत्पादन के लिये मंज़ूरी दे दी गई है।
  • अर्जुन ‘MkII’ इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर और हाई-पावर लेज़र के साथ एक हल्के वज़न वाला फ्यूचरिस्टिक मेन बैटल टैंक (FMBT) है। 

‘Mk1A’ की विशेषता

  • ‘Mk1A’ संस्करण में पूर्व के संस्करण पर 14 प्रमुख अपग्रेड विशेषताएँ शामिल हैं। डिज़ाइन के अनुसार, इसमें मिसाइल फायरिंग क्षमता भी मौजूद है।
  • हालाँकि सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इस नवीनतम संस्करण में 54.3 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है, जबकि पूर्व के संस्करण में 41 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री का प्रयोग किया गया था।
  • नव विकसित ‘कंचन’ मॉड्यूलर आर्मर, इस टैंक को सभी प्रकार के टैंक-रोधी युद्धोपकारणों से सुरक्षा प्रदान करता है।
    • ‘कंचन’ का निर्माण ‘डिफेंस मेटैलर्जिकल रिसर्च लेबोरेटरी’ (DMRL)- एक DRDO प्रयोगशाला द्वारा किया गया है, जो कि DRDO की एक प्रयोगशाला है।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)

  • DRDO भारत के लिये एक विश्व स्तरीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधार स्थापित करने की दिशा में कार्य करता है और इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी प्रणाली एवं समाधान प्रस्तुत कर भारत के सशस्त्र बलों को निर्णायक बढ़त प्रदान करना है।
  • DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।
  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस