गोरखालैंड वार्ता के लिये वार्ताकार की नियुक्ति | 22 Oct 2025
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) को गोरखालैंड राज्य का दर्जा और 11 गोरखा उप-जनजातियों के लिये अनुसूचित जनजाति का दर्जा सहित प्रमुख मांगों पर दार्जिलिंग पर्वतीय नेताओं के साथ बातचीत करने के लिये वार्ताकार नियुक्त किया है।
- इस कदम का उद्देश्य क्षेत्र में लंबे समय से चले आ रहे पहचान और स्वायत्तता के मुद्दों का राजनीतिक समाधान तलाशना है।
- हालाँकि, पश्चिम बंगाल राज्य सरकार ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए इसे ‘एकपक्षीय’ और सहकारी संघवाद के सिद्धांतों के साथ असंगत बताया है।
गोरखालैंड आंदोलन भारतीय संघीय ढाँचे के लिये जटिल चुनौती क्यों माना जाता है?
- संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 3 संसद को नए राज्य के निर्माण या मौजूदा सीमाओं में परिवर्तन करने का अधिकार देता है।
- राज्य विधानमंडल की राय परामर्शात्मक होती है, बाध्यकारी नहीं, जिससे राष्ट्रीय लचीलापन सुनिश्चित होता है।
- हालाँकि, गोरखालैंड जैसी लगातार सीमा संबंधी मांगें, केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव पैदा करती हैं और भारत के संघीय सद्भाव की परीक्षा लेती हैं।
- इसलिये यह मांग न केवल राजनीतिक है, बल्कि भारतीय संघ के अंदर संवैधानिक समायोजन की भी परीक्षा है।
- एक अलग राज्य की मांग: गोरखालैंड की मांग 1980 के दशक से गोरखा पहचान राजनीति का केंद्र रही है, जो पहचान और स्वशासन की आकांक्षाओं को दर्शाती है।
- प्रस्तावित राज्य में दार्जिलिंग, तराई और दुआर क्षेत्र को पश्चिम बंगाल के अंतर्गत शामिल किया जाना है।
- अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जा की मांग: रईस, लिंबू, गुरुंग, तामांग सहित 11 गोरखा उप-जातियाँ ST मान्यता की मांग कर रही हैं।
- इससे उन्हें आरक्षण के लाभ मिलेंगे तथा शिक्षा और सरकारी नौकरियों तक पहुँच संभव हो सकेगी।
- कई आश्वासनों के बावजूद, मान्यता की प्रक्रिया लंबित बनी हुई है, जिससे समुदाय में असंतोष और निराशा गहराती जा रही है।
- अग्निपथ योजना को लेकर चिंताएँ: संक्षिप्त अवधि वाली अग्निपथ सैन्य भर्ती नीति ने नेपाली मूल के गोरखाओं में असमंजस पैदा किया, जो परंपरागत रूप से सशस्त्र बलों में सेवा करते आए हैं।
- नेपाल ने इस बात को लेकर चिंता जताई कि यह वर्ष 1947 के त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन कर सकती है, जिसमें पेंशन और सेवा अधिकारों की गारंटी दी गई थी।
- भूराजनीतिक संवेदनशीलताएँ: रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि चीन गोरखाओं की भर्ती में रुचि दिखा सकता है, जिससे रणनीतिक चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
- सीमा स्थिरता बनाए रखने और बाह्य प्रभावों को रोकने के लिये भारत–नेपाल–दार्जिलिंग के बीच मज़बूत समन्वय अत्यंत आवश्यक है।
गोरखालैंड आंदोलन क्या है?
- उद्भव (1980 का दशक): अलग गोरखालैंड राज्य की मांग सबसे पहले गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) के संस्थापक सुभाष घीसिंग ने उठाई थी।
- पहचान और प्रशासनिक मुद्दों से प्रेरित आंदोलन ने 1980 के दशक में व्यापक हिंसा एवं दीर्घकालिक हड़तालों का सामना किया।
- वर्ष 2017 का आंदोलन:
- यह आंदोलन वर्ष 2017 में फिर से ज़ोर पकड़ गया, जब गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (GJM) के नेतृत्व में दार्जिलिंग और आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में 104 दिनों तक हड़तालें तथा झड़पें हुईं।
- संस्थागत प्रयास (Institutional Attempts):
- 1988: केंद्र, पश्चिम बंगाल सरकार और GNLF के बीच त्रिपक्षीय समझौते के बाद दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल (DGHC) का गठन हुआ।
- 2011: गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (GTA) ने DGHC का स्थान लिया, जो केंद्र, पश्चिम बंगाल सरकार और GJM के बीच किये गए एक अन्य त्रिपक्षीय समझौते के माध्यम से स्थापित हुआ।
- GTA का उद्देश्य पश्चिम बंगाल की संरचना के अंदर प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान करना था, लेकिन इसकी सीमित शक्तियों और अप्रभावी शासन के लिये आलोचना की गई है।
गोरखा
- उद्भव:
- गोरखा (या गुरखा) नेपाल का एक मार्शल समुदाय है, जो अपने साहस, निष्ठा और सैन्य सेवा के लिये प्रसिद्ध है।
- उनका नाम पश्चिमी नेपाल के गोरखा राज्य से आया, जिसकी स्थापना पृथ्वी नारायण शाह (1743–1775) ने की थी।
- एंग्लो-नेपाल युद्ध (1814–1816) के बाद, ब्रिटिश ने गोरखाओं को अपनी सेना में भर्ती करना शुरू किया।
- स्वतंत्रता के बाद, गोरखा रेजिमेंट्स भारतीय सेना का अभिन्न हिस्सा बन गई।
- जातीय संरचना:
- गोरखा समुदाय में कई जातीय समूह शामिल हैं – गुरुंग, मगर, रईस, लिंबू, तामांग और अन्य।
गोरखालैंड मांग की चिंताओं को संबोधित करने के लिये क्या कदम उठाए गए हैं?
- प्रशासनिक सुधार: दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल (1988) और बाद में गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (GTA, 2011) की स्थापना की गई, ताकि स्थानीय शासन, विकास एवं सांस्कृतिक मामलों में सीमित स्वायत्तता प्रदान की जा सके।
- GTA में नियमित चुनावों का आयोजन स्थानीय गोरखा नेताओं की राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये किया गया।
- संवाद और शांति पहल: केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार और गोरखा नेतृत्व के साथ त्रिपक्षीय वार्ता समय-समय पर आयोजित की, ताकि शिकायतों का समाधान तथा अशांति से बचाव सुनिश्चित किया जा सके।
- सांस्कृतिक और जातीय मान्यता: कई गोरखा त्योहारों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों को संस्कृति मंत्रालय की योजनाओं के तहत मान्यता एवं प्रचार प्राप्त हुआ है।
- संविधान की आठवीं अनुसूची में नेपाली भाषा (1992) को शामिल करने से भाषाई और सांस्कृतिक वैधता प्राप्त हुई।
- अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग की समीक्षा: जनजातीय मामलों के मंत्रालय और भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण ने अनुसूचित जनजाति में शामिल किये जाने के लिये 11 गोरखा उप-जनजातियों की पात्रता का आकलन करने हेतु अध्ययन किया है।
- सुरक्षा और आर्थिक उपाय: आंदोलन आधारित राजनीति पर निर्भरता कम करने के लिये दार्जिलिंग पहाड़ियों में बुनियादी ढाँचे, पर्यटन और आजीविका में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना।
- केंद्र और राज्य ने क्षेत्रीय विकास के एक भाग के रूप में चाय, बागवानी एवं पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ावा दिया है।
गोरखालैंड की मांग को प्रभावी ढंग से पूरा करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- स्थानीय शासन को मज़बूत करना: बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र के समान गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (GTA) को अधिक वित्तीय और विधायी शक्तियों से सशक्त बनाना।
- समावेशी विकास को बढ़ावा देना: पर्यटन के लिये PM-DevINE (पूर्वोत्तर क्षेत्र हेतु प्रधानमंत्री विकास पहल) और PRASAD जैसी योजनाओं के तहत शिक्षा, चाय उद्योग सुधार, बागवानी तथा पर्यावरण-पर्यटन में निवेश करना।
- अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग पर ध्यान देना: पात्र गोरखा उप-जनजातियों को अनुसूचित जनजाति (ST) श्रेणी में शामिल करने के लिये समीक्षा में तेज़ी लाना, वनबंधु कल्याण योजना और ट्राइफेड पहल जैसी योजनाओं से लाभ तक पहुँच सुनिश्चित करना।
- सामरिक और सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करना: एकता और सीमा स्थिरता को मज़बूत करने के लिये पड़ोसी प्रथम नीति के तहत भर्ती, व्यापार तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भारत-नेपाल-दार्जिलिंग सहयोग को गहरा करना।
- युवाओं और समुदायों को सशक्त बनाना: गोरखा आकांक्षाओं को शांति तथा प्रगति की ओर ले जाने के लिये PMEGP, स्किल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया के माध्यम से उद्यमिता एवं कौशल प्रशिक्षण को बढ़ावा देना।
दृष्टि मेंस प्रश्न प्रश्न. गोरखालैंड आंदोलन के ऐतिहासिक विकास पर चर्चा कीजिये और इसकी मुख्य मांगों को पूरा करने के लिये किये गए संस्थागत उपायों का मूल्यांकन कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. गोरखालैंड की मांग क्या है?
गोरखालैंड की मांग में दार्जिलिंग, तराई और दुआर्स को मिलाकर एक अलग राज्य बनाने की मांग की गई है, ताकि गोरखाओं के लिये राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं प्रशासनिक स्वायत्तता सुनिश्चित की जा सके।
2. दार्जिलिंग वार्ता के लिये वार्ताकार (संवाददाता) के रूप में किसे नियुक्त किया गया है?
पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पंकज कुमार सिंह को केंद्र द्वारा स्थायी गोरखालैंड समाधान हेतु वार्ता को सुगम बनाने के लिये नियुक्त किया गया है।
3. गोरखा अनुसूचित जनजाति का दर्जा क्यों मांग रहे हैं ?
कई गोरखा उप-जनजातियाँ संवैधानिक मान्यता, आरक्षण लाभों और अपने सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक हितों की रक्षा के लिये अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा चाहती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न
मेन्स
प्रश्न. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, जिसके साथ हाशिया नोट "जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध" लगा हुआ है, किस सीमा तक अस्थायी है? भारतीय राज्य-व्यवस्था के संदर्भ में इस उपबंध की भावी संभावनाओं पर चर्चा कीजिये। (2016)