मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग के विरुद्ध विधेयक | 06 Aug 2019

चर्चा में क्यों?

राजस्थान विधानसभा ने मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) और ऑनर किलिंग (Honour Killing) के विरुद्ध विधेयक पारित कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस विधेयक के पारित होने से अब राजस्थान में मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग, संज्ञेय और गैर-ज़मानती अपराध बन गए हैं।
  • राजस्थान में इस अपराध के लिये अब आजीवन कारावास तथा 5 लाख रुपए तक के जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है।
  • ऑनर किलिंग पर रोक लगाने के उद्देश्य से विधेयक में दोषी के लिये मौत की सज़ा का भी प्रावधान किया गया है।

क्या होती है मॉब लिंचिंग?

जब अनियंत्रित भीड़ द्वारा किसी दोषी को उसके किये अपराध के लिये या कभी-कभी अफवाहों के आधार पर ही बिना अपराध किये भी तत्काल सज़ा दी जाए अथवा उसे पीट-पीट कर मार डाला जाए तो इसे भीड़ द्वारा की गई हिंसा या मॉब लिंचिंग कहते हैं। इस तरह की हिंसा में किसी कानूनी प्रक्रिया या सिद्धांत का पालन नहीं किया जाता और यह पूर्णतः गैर-कानूनी होती है।

क्यों लाया गया विधेयक?

देश के वर्तमान परिदृश को देखते हुए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह विधेयक राजस्थान सरकार का एक साहसी कदम है। पहलू खान हत्याकांड राजस्थान में मॉब लिंचिंग का एक बहुचर्चित उदाहरण है, जिसमे कुछ तथाकथित गौ रक्षकों की भीड़ द्वारा गौ तस्करी के झूठे आरोप में पहलू खान की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। यह तो सिर्फ राजस्थान का ही उदाहरण है इसके अतिरिक्त देश के कई अन्य हिस्सों में भी ऐसी ही घटनाएँ सामने आई थीं। इसके अलावा राजस्थान में ऑनर किलिंग भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है और वहाँ आए दिन कोई-न-कोई मामला सामने आता ही रहता हैं जब सम्मान और परंपरा के नाम पर तमाम लोगों की मृत्यु कर दी जाती है।

क्या कहता है राजस्थान का लिंचिंग रोधी विधेयक?

  • नए कानून के तहत इस संदर्भ में दर्ज किये गए सभी मामलों की जाँच इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी द्वारा ही की जाएगी।
  • इसके अलावा राज्य का DGP लिंचिंग को रोकने के लिये राज्य समन्वयक (State Coordinator) के रूप में एक IG या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी की नियुक्ति भी करेगा।
  • यदि लिंचिंग का शिकार हुए पीड़ित व्यक्ति को ‘सामान्य चोटें’ या फिर ‘गंभीर चोटें’ आती हैं तो अभियुक्त को क्रमशः सात दिन या फिर दस साल तक की सज़ा हो सकती है।
  • यदि इस हमले के कारण पीड़ित की मृत्यु हो जाती है तो अभियुक्त को उम्रकैद की सज़ा हो सकती है।
  • यह विधेयक षड्यंत्रकारियों को भी जवाबदेह बनता है।

इस संदर्भ में अन्य भारतीय कानून:

  • भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) में लिंचिंग जैसी घटनाओं के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर किसी तरह का स्पष्ट उल्लेख नहीं है और इन्हें धारा- 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 323 (जान-बूझकर घायल करना), 147-148 (दंगा-फसाद), 149 (आज्ञा के विरुद्ध इकट्ठे होना) तथा धारा- 34 (सामान्य आशय) के तहत ही निपटाया जाता है।
  • भीड़ द्वारा किसी की हत्या किये जाने पर IPC की धारा 302 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है और इसी तरह भीड़ द्वारा किसी की हत्या का प्रयास करने पर धारा 307 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है तथा इसी के तहत कार्यवाही की जाती है।
  • IPC की धारा 223A में भी इस तरह के अपराध के लिये उपयुक्त क़ानून के इस्तेमाल की बात कही गई है, सीआरपीसी में भी स्पष्ट रूप से इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
  • भीड़ द्वारा की गई हिंसा की प्रकृति और उत्प्रेरण सामान्य हत्या से अलग होते हैं, इसके बावजूद भारत में इसके लिये अलग से कोई कानून मौजूद नहीं है।

निष्कर्ष

उपरोक्त बिंदुओं से स्पष्ट है कि मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग का हमारे सामाजिक सद्भाव पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, इसलिये राजस्थान सरकार की तरह सभी राज्य सरकारों तथा देश की केंद्र सरकार को गंभीरता से इस पर विचार करना चाहिये और सामाजिक संतुलन तथा सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने हेतु कुछ कड़े कदम उठाने चाहिये।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस