शहरों में आँगनवाड़ी लाभार्थी | 05 Feb 2020

प्रीलिम्स के लिये:

एकीकृत बाल विकास योजना

मेन्स के लिये:

भारतीय शहरों में आँगनवाड़ी लाभार्थियों की स्थिति

चर्चा में क्यों?

समाचार पत्र ‘द हिंदू’ द्वारा सूचना के अधिकार (Right to Information- RTI) के तहत दायर एक याचिका के जवाब में सरकार द्वारा भारतीय शहरों में आँगनवाड़ी लाभार्थियों की स्थिति संबंधी जानकारी प्रदान की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • सरकार ने बताया है कि देश में प्रत्येक 100 आंगनवाड़ी लाभार्थियों में से केवल सात शहरी क्षेत्रों से संबंधित होते हैं।

पृष्ठभूमि:

  • महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा एकीकृत बाल विकास योजना (Integrated Child Development Services-ICDS) के तहत छह सेवाओं का पैकेज प्रदान करने के लिये आँगनवाड़ी केंद्रों या डे-केयर सेंटर्स (Day-Care Centres) की स्थापना की जाती है।
  • ये छः सेवाएँ हैं-
    • पूरक पोषण (Supplementary Nutrition)
    • प्री-स्कूल गैर-औपचारिक शिक्षा (Pre-School Non-Formal Education)
    • प्रतिरक्षा (Immunisation)
    • पोषण (Nutrition)
    • स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education)
    • रेफरल सेवाएँ (Referral Services)
  • इन आँगनवाड़ी केंद्रों का उद्देश्य शिशु मृत्यु दर और बाल कुपोषण को कम करना है।
  • आँगनवाड़ी लाभार्थियों में छह महीने से छह वर्ष की आयु के बच्चे, गर्भवती महिलाएँ और स्तनपान कराने वाली माताएँ शामिल हैं।

सरकार द्वारा प्रदत्त आँकड़े:

  • शहरी क्षेत्रों की स्थिति:
    • सरकार द्वारा दिये गए RTI के जवाब के अनुसार, 30 सितंबर, 2019 को देश में आँगनवाड़ी योजना के तहत पंजीकृत कुल 7.95 करोड़ लाभार्थियों में से केवल 55 लाख लाभार्थी शहरी आँगनवाड़ी केंद्रों में पंजीकृत थे।
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल आबादी में से 32% शहरों में निवास करती है, हालाँकि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि शहरी अवस्थापन की परिभाषा को व्यापक कर दिया जाए तो शहरी आबादी का हिस्सा बहुत अधिक हो जाएगा।
    • देश भर में लगभग 13.79 लाख आँगनवाड़ी केंद्र हैं, जिनमें से 9.31 लाख केंद्र सरकार की वेब-आधारित डेटा प्रविष्टि प्रणाली (Web-enabled Data Entry System) से जुड़े हुए हैं जिसे रैपिड रिपोर्टिंग सिस्टम (Rapid Reporting System) कहा जाता है।
  • पूरे देश में बच्चों की स्थिति:
    • पोषण स्थिति पर हाल ही में हुए एक अखिल भारतीय अध्ययन ‘व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण-2016-18’ (Comprehensive National Nutrition Survey 2016-18) के अनुसार पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में से 35% बच्चे बौनेपन (Stunting) और 17% बच्चे लंबाई के अनुसार कम वज़न (Wasting) की समस्या से प्रभावित पाए गए।
    • यह भी देखा गया कि देश में 5 से 9 वर्ष आयु वर्ग के कुल बच्चों में से 22% बच्चे बौनेपन (Stunting) और 23% बच्चे उम्र के अनुसार कम वज़न (UnderWeight) से ग्रस्त पाए गए।
  • ग्रामीण क्षेत्रों से तुलना:
    • केंद्र सरकार की वेब-आधारित डेटा प्रविष्टि प्रणाली से संबंधित आँगनवाड़ी केंद्रों में से 1.09 लाख शहरी क्षेत्रों में और शेष 8.22 लाख देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं।
    • आँकड़ों से यह भी पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों के बच्चों में ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की तुलना में दो से तीन गुना अधिक मोटापे की समस्या देखी गई है।

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  • कारण:
    • शहरों में यह स्थिति मुख्य रूप से आँगनवाड़ी केंद्रों की भारी कमी के कारण है।
    • शहरी क्षेत्रों में आँगनवाड़ी केंद्रों की कमी के कारण शिशु एवं बाल विकास के लिये सरकार द्वारा चलाए जा रहे प्रमुख कार्यक्रमों तक शहरी आबादी की पहुँच सुनिश्चित नहीं हो पाती है।

आगे की राह:

नीति आयोग ने शहरों में प्रवासन, जनसंख्या घनत्व एवं श्रमिकों और लाभार्थियों के समक्ष लंबे समय से चली आ रही चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए शहरी क्षेत्रों में ICDS कार्यक्रम को मज़बूत करने हेतु एक मसौदा संबंधी कार्य पत्र तैयार किया है।

स्रोत- द हिंदू