भारत की सौर ऊर्जा महत्त्वाकांक्षा पर धूल कणों की छाया | 04 Sep 2017

चर्चा में क्यों ? 

भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों के एक शोध से पता चला है कि वायुमंडल में उपस्थित मानव जनित धूल कणों के सौर ऊर्जा पैनलों पर जमने के कारण ऊर्जा का उत्पादन क्षमता से कम हो रहा है। वैज्ञानिक इसे एक बड़ी क्षति बता रहे हैं।  

प्रमुख बिंदु 

  • वैज्ञानिकों के अनुसार वायुमंडलीय धुंध एवं धूल कणों से सौर ऊर्जा का उत्पादन क्षमता से 25 फीसदी कम हो रहा है। एक अनुमान के अनुसार 3900 मेगावाट ऊर्जा की हानि हो रही है।      
  • गौरतलब है कि सौर ऊर्जा स्वच्छ ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है। 
  • विश्व में स्वच्छ ऊर्जा के विकास को लेकर जिस तरह की गतिविधियाँ चल रही हैं, उसी के क्रम में भारत ने सौर ऊर्जा के उत्पादन एवं विकास के लिये अरबों रुपए का निवेश किया है। 
  • भारत की भौगोलिक स्थिति सौर ऊर्जा की प्राप्ति की दृष्टि से अनुकूल है। 
  • कर्क रेखा भारत के मध्य से होकर गुजरती है, जिससे भारत का आधा भू-भाग उष्ण कटिबंध में तथा शेष भू-भाग समशीतोष्ण कटिबंध में पड़ता है। इससे भारत को लगभग पूरे वर्ष सूर्य की रोशनी प्राप्त होती है। 
  • इस तरह भारत के पास सौर ऊर्जा के दोहन की भौगोलिक अनुकूलताएँ भी हैं जो इसके दोहन क्षमता में अपार वृद्धि कर सकती हैं।