वायु प्रदूषण और जीवन प्रत्याशा | 12 Jun 2019

चर्चा में क्यों?

‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (Center for Science and Environment) नामक पर्यावरण विशेषज्ञों के एक समूह ने अपनी रिपोर्ट ‘एट द क्रॉसरोड’ (At the Crossroads) में यह कहा है की भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली घातक बीमारियों के कारण जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) 2.6 वर्ष तक कम हो गई है।

प्रमुख बिंदु

  • यह रिपोर्ट तीन अलग-अलग संगठनों के अध्ययन पर आधारित है:
    • द ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ स्टडी 2017 (Global Burden of Disease Study 2017)
    • WHO द्वारा प्रकाशित की गई ‘एयर पॉलूशन एंड चाइल्ड हेल्थ’ (Air Pollution and Child Health Report) रिपोर्ट
    • अंतर्राष्ट्रीय श्वसन सोसायटी (International Respiratory Societies) के माध्यम से वैज्ञानिकों द्वारा दिया गया समीक्षा पत्र
  • रिपोर्ट के निष्कर्ष
    • भारत में अब वायु प्रदूषण धूम्रपान से एक पायदान ऊपर स्वास्थ के सभी जोखिमों में मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। यह बाहरी कणिका पदार्थों (Particulate Matter- PM 2.5), ओज़ोन और घरेलू वायु प्रदूषण का संयुक्त प्रभाव है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, बाहरी भौतिक द्रव्य कणों के संपर्क में आने से जीवन प्रत्याशा में लगभग एक साल और छह महीने की कमी होती है, जबकि घरेलू वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से जीवन प्रत्याशा में लगभग एक साल और दो महीने की कमी होती है। देश के घरेलू वायु प्रदूषण में लगभग एक चौथाई योगदान बाहरी वायु प्रदूषण का है।
    • इस संयुक्त जोखिम के कारण भारतीयों सहित दक्षिण एशियाई लोगों की मृत्यु जल्दी हो रही है। उनकी जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) 2.6 वर्षों तक कम हो गई है।                                                                             
  • वायु प्रदूषण शरीर के प्रत्येक अंग को प्रभावित करता है, यह तेज़ी से नुकसान पहुँचाता है और इसका प्रभाव भी लंबे समय तक बरकरार रहता है।
    • अतिसूक्ष्म कण फेफड़ों से गुज़रते हैं और रक्तप्रवाह के माध्यम से शरीर की सभी कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं। वायु प्रदूषण हमारे शरीर के हर एक अंग और लगभग सभी कोशिकाओं को नुकसान पहुँचा सकता है।
    • रिसर्च के अनुसार, शरीर की लगभग सभी बीमारियाँ जैसे- हृदय और फेफड़ों की बीमारी, मधुमेह और मनोभ्रंश, यकृत की समस्याएँ, मस्तिष्क, पेट के अंगों, प्रजनन और मूत्राशय के कैंसर से लेकर भंगुर हड्डियों तक सभी कहीं न कहीं वायु प्रदूषण के ही कारण हैं।
    • विषैली हवा से प्रजनन क्षमता, भ्रूण और बच्चे भी प्रभावित होते हैं।
    • वायु प्रदूषण के कारण होने वाली कुल मौतों के 49% मामलों में चिरकालिक प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग (Chronic Obstructive Pulmonary Disease - COPD) ज़िम्मेदार हैं, इसके बाद फेफड़े के कैंसर से होने वाली मौतें (33%), डायबिटीज़ और इस्केमिक हार्ट डिज़ीज़ (22% प्रत्येक) और स्ट्रोक (15%) भी शामिल हैं।
  • मानव स्वास्थ पर प्रभाव: इस वर्ष लोगों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव के स्पष्ट लक्षण देखे गए हैं।
    • स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 के अनुसार, वर्ष 2017 में 1.2 मिलियन से भी अधिक लोगो की मृत्यु असुरक्षित वायु के संपर्क में आने से हो गई।
    • टाइप 2 मधुमेह- इस अध्ययन ने पहली बार वायु प्रदूषण से जुड़े टाइप-2 मधुमेह से होने वाले खतरों के बारे में भी बताया। भारत, जहाँ टाइप 2 मधुमेह ने महामारी का रूप ले लिया है, पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
    • PM 2.5 के प्रदूषण के कारण दुनिया भर में टाइप 2 मधुमेह से 276,000 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि 15.2 मिलियन लोग DALYs से प्रभावित हुए।
    • लगभग 80% भारतीय ऐसी हवा में साँस लेते हैं जो राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों द्वारा निर्धारित स्तर से भी बदतर है।
    • देश की पूरी आबादी WHO द्वारा बताए गये PM 2.5 के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश 10 µg/m3 की खतरनाक स्थिति में रहती है।
  • अकाल मृत्यु - भारत में सबसे ज़्यादा 5 वर्ष से कम बच्चों की अकाल मृत्यु विषैली हवा के कारण होती है। 5 वर्ष से कम आयु के लगभग एक लाख से भी अधिक बच्चे वायु प्रदूषण का शिकार हुए हैं।
    • वर्ष 2016 में 5 वर्ष से नीचे की उम्र में मरने वाले हर 10 बच्चों में से एक की मृत्यु वायु प्रदूषण की वज़ह से हुई।

स्रोत- द हिंदू बिज़नेस लाइन