खेतिहर मज़दूरों की आत्महत्या के मुख्य कारण- गरीबी और पारिवारिक समस्याएँ | 11 Jan 2017

सन्दर्भ

  • हाल ही में, किसानों की आत्महत्या के संबंध में राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड्स ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) की रिपोर्ट ने एक भयावह तस्वीर पेश की है| एनसीआरबी की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि खेतिहर मज़दूरों में अधिकांश आत्महत्याओं के कारण गरीबी और पारिवारिक समस्याएँ हैं|
  • गौरतलब है कि वर्ष 2015 के आँकड़ों पर आधारित एनसीआरबी की इस रिपोर्ट में पहली बार उन कारणों का भी उल्लेख किया गया है जो खेतिहर मज़दूरों की आत्महत्या के लिये ज़िम्मेवार हैं| 

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • एनसीआरबी के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में पारिवारिक समस्याओं के कारण 1,843 या 40.1% और बीमारी के कारण 872 या 19% मज़दूरों ने आत्महत्या कर ली| अब, यदि हम इन दोनों कारणों को जोड़कर देखें तो गरीबी और पारिवारिक समस्याओं की वज़ह से आत्महत्या करने वाले खेतिहर मज़दूरों की कुल संख्या 4,595 है, जो खेतिहर मज़दूरों की कुल मौतों का 60 प्रतिशत है| 
  • खेतिहर मज़दूरों में आत्महत्या के अन्य प्रमुख कारण हैं- नशीली दवाओं और मादक पदार्थों की लत (6.8 प्रतिशत), गरीबी (3.9 प्रतिशत), दिवालियापन या वित्तीय संस्थाओं से ऋणग्रस्तता (3.4 प्रतिशत), दिवालियापन या गैर-वित्तीय संस्थाओं/साहूकारों से ऋणग्रस्तता (2.2 प्रतिशत),  संपत्ति विवाद (2 प्रतिशत) और विवाह संबंधी मुद्दे ( 2 प्रतिशत)| इनके अलावा, कुछ अन्य कारणों से भी 13.4 प्रतिशत खेतिहर मज़दूरों ने अपनी इहलीला समाप्त कर ली, वहीं 6.1 प्रतिशत आत्महत्याओं के कारण अभी ज्ञात नहीं हो पाए हैं|
  • वर्ष 2015 के दौरान 4,595 कृषि मज़दूरों ने आत्महत्या की, जिनमें 4,018 पुरुष थे और 577 महिलाएँ|
  • अगर अलग-अलग राज्यों की बात करें तो महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा 1,261 कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की, वहीं  मध्य प्रदेश में 709, तमिलनाडु में 604, आंध्र प्रदेश में 400, कर्नाटक में 372, गुजरात में 244 और केरल में 207 कृषि मज़दूरों ने अपनी जीवन लीला खत्म कर ली|

निष्कर्ष

  • ज्ञात हो कि देश में प्रत्येक वर्ष होने वाली कुल आत्महत्याओं में गरीबी और पारिवारिक समस्याओं की वज़ह से होने वाली आत्महत्याओं का प्रतिशत 43 है, वहीं खेतिहर मज़दूरों के संबंध में यह संख्या 60 प्रतिशत है | ये आँकडें दिखाते हैं कि देश में खेतिहर मज़दूरों हालत कितनी दयनीय है|
  • गौरतलब है कि ऋणग्रस्तता के कारण होने वाली आत्महत्याओं में लगभग 40 प्रतिशत खेतिहर मज़दूरों ने साहूकारों तथा असंगठित क्षेत्र से ऋण ले रखा था, वहीं किसानों में ऋणग्रस्तता के कारण होने वाली आत्महत्याओं में लगभग 10 प्रतिशत किसानों ने साहूकारों तथा असंगठित क्षेत्र से ऋण लिया था| एनसीआरबी के ये आँकडें दिखाते हैं कि खेतिहर मज़दूर किसानों की तुलना में साहूकार के चंगुल में जल्दी फँस जाते हैं|
  • आँकड़ों की भाषा में बात करने पर हम निहायत ही असंवेदनशील प्रतीत होतें हैं| वस्तुतः हर एक किसान और एक मज़दूर की जान उतनी ही कीमती है जिनती सीमा पर शहीद होने वाले हमारे जवान की, और शायद इसी बात की पहचान करते हुए हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया था|
  • विसंगतियों से भरी कृषि नीतियाँ, जलवायु परिवर्तन, गरीबी, स्वास्थ्य जनित समस्याएँ आदि कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से किसान और खेतिहर मज़दूर आत्महत्या करते हैं| हालाँकि, यह देखा गया है कि पीडि़त लोग अमूमन समाज के सबसे निचले तबके से होते हैं– गरीब किसान, अधिकांश भूमिहीन खेतिहर मज़दूर, सीमांत या छोटे किसान| कदाचित कभी ऐसा नहीं हुआ कि गलत कृषि नीतियों, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य जनित समस्याओं ने हर एक व्यक्ति को समान रूप से प्रभावित किया हो, अतः गरीब किसानों तथा खेतिहर मज़दूरों की समस्यायों पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है|