अगरकर रिसर्च इंस्टिट्यूट: माइक्रो रिएक्टर | 29 Apr 2020

प्रीलिम्स के लिये: 

माइक्रो रिएक्टर, नैनो कण 

मेन्स लिये: 

माइक्रो रिएक्टर के अनुप्रयोग 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science &Technology-DST) के अधीन पुणे स्थित स्वायत्त संस्थान ‘अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (Agharkar Research Institute -ARI) द्वारा एक ऐसे माइक्रो रिएक्टर का विकास किया गया है जो काफी मात्रा में एक समान आकार के नैनो कणों (Nanoparticles) का विकास करने में सक्षम है। 

Microreactor

मुख्य बिंदु:

  • विकसित किया गया माइक्रो रिएक्टर अपने नियमित प्रवाह द्वारा धातु (Metal), अर्धचालकों (Semiconductor) और पॉलिमर (Polymer) नैनों कणों (Nanoparticles) का निर्माण कर सकता है। 
  • सामान आकर के नैनों कणों को विकसित एवं वितरित करने के लिये इस माइक्रो रिएक्टर में कुछ पैरामीटर्स का प्रयोग किया गया है, जैसे- अभिकारकों की सांद्रता (Concentration of Reactants), प्रवाह दर ( Flow Rate), तीव्रता (Reaction), तापमान (Temperature ) एवं समय (Time)
  • इसके अलावा मोनोडिस्पर्सिटी (Monodispersity) अर्थात एक समान आकर के नैनो कणों को प्राप्त करने के लिये आयामीय विश्लेषण (Dimensional Analysis) का प्रयोग करते हुए एक गणितीय समीकरण का प्रयोग किया गया। 

माइक्रो रिएक्टर-

  • यह एक ऐसा उपकरण है जिसके द्वारा इसके एक मिलीमीटर से कम आकार के साथ रासानियक प्रतिक्रिया संपन्न होती है। 

नैनो प्रौद्योगिकी-

  • नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी अत्यंत छोटी चीजों के अध्ययन एवं अनुप्रयोग से संबंधित है। 
  • इसका उपयोग विज्ञान के अन्य क्षेत्रों जैसे- रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान, सामग्री विज्ञान और इंजीनियरिंग में भी किया जा सकता है।

नैनोमीटर 

  • मीट्रिक प्रणाली में लंबाई मापन की एक इकाई है।
  • 1 नैनोमीटर 10-9 मीटर के समतुल्य होता है।

माइक्रो रिएक्टर में नैनो कणों का महत्त्व:

  • नैनो कणों में विशेष प्रकार के गुण पाए जाते हैं जो उनके आकार के आधार पर निर्धारित होते हैं।
  • नैनो कणों का यही गुण है उन्हें जैव चिकित्सा तकनीकी में उपयोगी बनाता है चूँकि इनके आकार में समानता न होने के कारण तथा उत्पादन की पारंपरिक तकनीकी के कारण इनका प्रभाव कम होता है।
  • जैव चिकित्सा उद्योग में नैनो कणों के आकार को समान बनाए रखना चुनौतीपूर्ण रहा है।
  • इसके अलावा कई अभिकर्मकों (Reagents) के इस्तेमाल के कारण पारंपरिक विधियों से नैनो कणों को विकसित करने में अधिक समय लगता है साथ ही सह उत्पाद के तौर पर विषाक्त पदार्थ उत्पन्न होते हैं।
  • विकसित किये गए माइक्रो रिएक्टर द्वारा अब 5% से भी कम भिन्नता गुणांक (Co-efficient of Variation) के साथ सोना (Gold) और चाँदी (Silver), कैडमियम-टेलुराइड (Cadmium-Telluride), चिटोसन (Chitosan), अलगाइनेट (Alginate) और हाईएल्युरोनिक अम्ल (Hyaluronic Acid) से किसी भी आकार के नैनो कणों को विकसित किया जा सकता है। 

नैनो कणों का विश्लेषण:

  • इस प्रयोग के दौरान एक सामान आकार के सिल्वर नैनो कण को एक प्रभावी रोगाणुरोधी एजेंट के तौर पर देखा गया।
  • एक सामान आकार के चितोसन (Chitosan) और अल्गिनेट ( Alginate) जो कि एक प्रकार के पॉलीसैकेराइड्स हैं, के नैनो कण कही अधिक उच्च स्तरीय दवा कार्यविधि (Drug Entrapment) तथा टिकाऊ स्राव दर (Sustained-Release Rate) के गुण को प्रदर्शित करते हैं ये अपने एक समान एवं अत्यंत सूक्ष्म आकार के कारण कोशिकाओं के भीतर तक पहुँचने में सक्षम हैं साथ ही ये जैव अनुकूलित भी हैं।

महत्त्व:

  • नैनो तकनीकी के इस नए आयाम/दृष्टिकोण द्वारा नैनो मीटर के एक समान वितरण संबंधित विरोधाभास की समस्या का समाधान हो सकेगा। 
  • इसका उपयोग उन रासायनिक प्रतिक्रियाओं के साथ भी किया जा सकता है जहाँ प्रतिक्रिया की गतिशीलता को बनाए रखने के लिये अधिक  नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
  • यह खोज बायोमेडिकल तकनीक में एक प्रमुख आवश्यकता के रूप में भी कार्य करेगी।

अगरकर रिसर्च इंस्टिट्यूट-

  • वर्ष 1946 में महाराष्ट्र एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट के रूप में स्थापित किया गया है।
  • वर्ष 1992 में इसका नाम बदलकर ‘अगरकर रिसर्च इंस्टिट्यूट’ किया गया।
  • वर्ष 1966 से ARI भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा पूरी तरह से वित्त पोषित एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है।
  • वर्तमान समय में यह महाराष्ट्र एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइंस (MACS) के अंतर्गत संचालित है।

स्रोत: पी.आई.बी